एक सर्वे के मुताबिक, देश में हर साल 25 लाख टन पेस्टीसाइड का इस्तेमाल होता है. इस की अनुमानित कीमत तकरीबन 10 करोड़ रुपए आंकी गई है.
एक और दूसरे सर्वे के मुताबिक, जो फलसब्जियां, अनाज हम खाते हैं, उस के जरीए 0.5 मिलीलिटर पेस्टीसाइड रूपी जहर हर दिन गटक रहे हैं. नतीजतन, खेती की लागत बढ़ने के साथ ही हम तेजी से खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं.
खेती के कारण खतरनाक बीमारियों का शिकार सब से ज्यादा पंजाब हुआ है. वहां कैंसर के रोगी सब से ज्यादा हैं. यही वजह है कि बठिंडा और बीकानेर के बीच चलने वाली एक ट्रेन का नाम ही कैंसर ऐक्सप्रैस रख दिया गया है.
ऐसे में हमें अब इस तरह के पेस्टीसाइड अपनाने ही होंगे जिस से न केवल हम सेहतमंद रहें, बल्कि हमारी लागत भी घटे. फसलों में लगने वाले तमाम तरह के कीटों को नियंत्रित करने के लिए एक ऐसा ही उपाय है फैरोमोन ट्रैप, जिस के इस्तेमाल से अनेक फसलों में खासतौर पर सब्जियों में कीट नियंत्रण आसानी से किया जा सकता है.
क्या है फैरोमोन ट्रैप : दरअसल, फैरोमोन मादा कीट द्वारा छोड़े जाने वाला एक ऐसा हार्मोन है, जिस से नर कीट मादा के पास आकर्षित हो कर सैक्स करने के लिए आते हैं. नतीजतन, कीटों की पीढ़ी बढ़ने लगती है और फसलों को नुकसान पहुंचता है. वर्तमान में विज्ञान की वजह से इन हार्मोनों की पहचान कर ली गई है और अब प्रयोगशाला में इन को कृत्रिम तरीके से बनाया जाता है.
फैरोमोन ट्रैप जिसे गंध पाश के नाम से भी जाना जाता है, एक तरह का जाल होता है, जिस में मादा कीट के हार्मोन की गंध आती है. इस में कीट के आकार के मुख्य भाग पर लगे ढक्कन पर मादा कीट की गंध का ल्योर लगाया जाता है, इस से नर कीट आकर्षित होते हैं.
खास बात यह है कि हर प्रकार के कीड़ों का ल्योर अलगअलग होता है. जिस कीट के मादा का ल्योर लगाया जाता है, उस कीट का नर कृत्रिम गंध के कारण आकर्षित हो कर फैरोमोन ट्रैप की कीप में गिर जाता है जो नीचे लगे हुए थैले के कारण फिर निकल नहीं पाता है.
कितने प्रकार के होते हैं ट्रैप : कुछ कीट ऐसे होते हैं, जो अनेक फसलों पर लगते हैं और कुछ कीट ऐसे भी हैं जो कुछ खास फसलों पर ही लगते हैं. अलगअलग कीटों को नियंत्रित करने के लिए अलगअलग तरह के गंधपाश यानी फैरोमोन ट्रैप होते हैं.
कुछ मुख्य फैरोमोन ट्रैप
पेक्टिनोफोरा गासी पिछेला : यह कीट कपास व भिंडी में लगता है. इस का ल्योर पेक्टिनोफोरा गासी नाम से बिकता है.
हैलीओथिस हैलीकोवर्पा (अर्मीजोरा) : यह कीट अमेरिकन वालवर्म व चने का फलीछेदक कीट वगैरह नामों से जाना जाता है. इस का हमला कपास, चना, अरहर, टमाटर, मटर जैसी फसलों में ज्यादा देखा जाता है. इस कीट का ल्योर हेलिकोवर्पा आर्मीजोरा नाम से मिलता है.
स्पोडोप्टेरा लिट्यूरा (प्रोडेनिया) : यह कीट भिंडी, पत्तागोभी, फूलगोभी, तंबाकू, सरसों वगैरह फसलों में पाया जाता है. इसे टोबैको कैटरपिलर के नाम से भी जाना जाता है. इस कीट का फैरोमोन ल्योर बाजार में स्पोडोप्टेरा लिट्यूरा के नाम से मिलता है.
इरिआस स्पीसीज : यह कीट मुख्य रूप से भिंडी व कपास में लगता है.
कैसे होगा प्रयोग
खेतों में इस ट्रैप को सहारा देने के लिए एक डंडा गाड़ना होगा. इस डंडे के सहारे छल्ले को बांध कर इसे लटका दिया जाता है. ऊपर के ढक्कन में बनी जगह पर ल्योर को फंसा दिया जाता है. कीटों को एकत्र करने वाली थैली को छल्ले में लगा कर इस के निचले सिरे को डंडे के सहारे एक छोर पर बांध दिया जाता है.
ध्यान रखने वाली बात यह है कि इस ट्रैप की ऊंचाई उतनी ही रखनी चाहिए कि ट्रैप का ऊपरी भाग फसल की ऊंचाई से 1-2 सैंटीमीटर रहे.
देखा गया है कि नर कीटों को बड़े पैमाने पर इकट्ठा करने के लिए 2-3 ट्रैप प्रति हेक्टेयर सही होता है. ट्रैप को लगाने के बाद थैली में एकत्रित कीटों को नियमित रूप से नष्ट कर के थैली को बराबर खाली करते रहें, जिस से उस में नए कीड़े आ सकें.
एक अनुमान के मुताबिक, अगर किसी भी फसल में फैरोमोन ट्रैप का इस्तेमाल किया जाए तो उस की पैदावार में 10-20 फीसदी का इजाफा पाया गया है.
ऐसे बरतें सावधानी
* फैरोमोन ल्योर को हर महीने बदल देना चाहिए.
* ल्योर को ठंडी व सूखी जगह पर रखें. बेहतर होगा कि फ्रिज में इसे रखा जाए.
* उपयोग कर लिए गए ल्योर को जमीन में गाड़ देना चाहिए.
* कोशिश यह होनी चाहिए कि कीट इकट्ठा करने वाली थैली का मुंह बराबर खुला हो और खाली जगह भी बनी रहे, जिस से ज्यादा से ज्यादा कीट इकट्ठा कर नष्ट किए जा सकें.
क्या बोले माहिर : फैरोमोन ट्रैप से होने वाले फायदे के बारे में शुआट्स, इलाहाबाद के प्रसार निदेशालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. शैलेंद्र सिंह कहते हैं कि इस से पर्यावरण को बिना नुकसान पहुंचाए पैदावार में बढ़ोतरी कर किसान अपनी आमदनी आसानी से बढ़ा सकते हैं. वर्तमान में जहरीली हो रही खेती में यह उपयोग समय की जरूरत है.