अरहर का रकबा 1950-51 में जहां 22 लाख हेक्टेयर था और उत्पादन 17.2 लाख टन था, वहीं 2012-13 में बढ़ कर यह रकबा 38.9 लाख हेक्टेयर और उत्पादन 30.2 लाख टन हो गया. यह इजाफा 16.9 लाख हेक्टेयर है.
भारत में अरहर उत्पादन में महाराष्ट्र की भागीदारी 32 फीसदी की है. उत्तर प्रदेश में इस का रकबा 7.3 लाख हेक्टेयर और उत्पादन 15-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
अरहर उगाने वाले प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब व हरियाणा हैं. उन इलाकों में जहां सिंचाई नहीं होती है, वहां इस फसल की ज्वार, बाजरा और उड़द के साथ मिला कर बोआई की जाती है. इस की पत्तियां झड़ कर मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा में इजाफा करती हैं. उन्नत तकनीक अपना कर किसान ज्यादा से ज्यादा उपज ले सकते हैं.
कैसी हो मिट्टी
अरहर की फसल नम और सूखी जगह पर की जा सकती है. फसल की शुरुआती दशा में बढ़वार के लिए गरम नम जलवायु और पौधों पर फूल आने से ले कर और दाने बनते समय तक सूखे मौसम और तेज धूप की जरूरत होती है. इस फसल के लिए पानी न रुकने वाली हलकी मिट्टी से ले कर भारी मिट्टी भी खेती के लिए मुनासिब रहती है.
ऐसे करें खेत की तैयारी
आमतौर पर अरहर की फसल के लिए जमीन की तैयारी मानसून शुरू होते ही एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें और देशी हल या ट्रैक्टर द्वारा 2 बार जुताई करें. इस के बाद पाटा लगा कर खेत को इकसार कर लें.
जमीन की उर्वराशक्ति बनाए रखने के लिए गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद 5-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से खेत को तैयार करते समय ही मिला दें. इस के बाद खेत की जुताई के समय बोआई से पहले क्लोरोपाइरीफास 1.5 फीसदी चूर्ण 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला दें, जिस से कीड़ों का प्रकोप नहीं होता है.
चुनें उन्नतशील किस्में ही
अगेती प्रजातियों में टाइप-21, मानक, पारस, पंत अरहर 291, यूपीएएस 120, प्रगति पूसा 6, पूसा 33, पूसा 84, पूसा 92 खास हैं. वहीं पछेती प्रजातियों में, जो 260 से 275 दिन में पक कर तैयार होती है, खास हैं: टाइप 7, टाइप-17, बहार, अमर, नरेंद्र अरहर 1, आजाद, पूसा 9, मालवीय विकास (एमए 6), मालवीय चमत्कार (एमएएल 13), आशा (आईसीपीएल 87, 119), लक्ष्मी, नंबर 148.
बोआई का उचित समय
अरहर की बोआई मानसून आते ही कर दें. आमतौर पर बोआई का मुनासिब समय जून से जुलाई के दूसरे सप्ताह तक रहता है. अगर किसी कारणवश देर हो जाए तो इस फसल की बोआई अगस्त में भी कर सकते हैं.
अरहर की बोआई बीज की मात्रा, बीज के आकार और क्वालिटी के हिसाब से करें. आमतौर पर बीज के आकार और बढि़या क्वालिटी वाला बीज 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कतार से बोने के लिए लगता है. अरहर के साथ सहफसली खेती में अरहर के बीज की दर आम फसल के बराबर रखनी चाहिए.
बीजोपचार : बोआई के पहले बीज को कवकनाशी दवा बाविस्टिन या थायरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. इस के बाद राइजोबियम और पीएसबी कल्चर की मात्रा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित करने से उपज में इजाफा होगा.
बोआई का तरीका : आमतौर पर अरहर के बीज कतारों में 4 से 6 सैंटीमीटर की गहराई पर बोने चाहिए. जल्दी पकने वाली प्रजातियों को 30 सैंटीमीटर कतार से कतार की दूरी और 10 सैंटीमीटर पौधों से पौधों के फासले पर बोने चाहिए. मध्यम और देर की अवधि वाली किस्मों के लिए कतारों के बीच फासला 60 से 75 सैंटीमीटर और पौधों के बीच 15 से 20 सैंटीमीटर रखना चाहिए. बोआई हल के पीछे लाइनों में या सीड ड्रिल से करें.
उर्वरक की मात्रा : मिट्टी की जांच कराने के बाद ही उर्वरक की सही मात्रा डालना फायदेमंद होगा. जमीन की दशा को ठीक रखने के लिए 5 टन गोबर की सड़ी खाद या 2 टन वर्मी कंपोस्ट या 2 टन बायोगैस स्लरी खेत में डालें.
मिट्टी जांच की सिफारिश के मुताबिक ही कैमिकल उर्वरक डालें.
आमतौर पर दलहन फसलों में प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन व 60 किलोग्राम फास्फोरस की जरूरत होती है. इस की भरपाई 100 किलोग्राम डीएपी से भी हो जाती है.
बोआई से पहले अरहर के बीज को राइजोबियम जैव उवर्रक की 10 ग्राम मात्रा और फास्फोरस घोलक जीवाणु की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर के बोएं.
खरपतवार पर नियंत्रण
खरीफ की फसल में खरपतवार एक बड़ी समस्या है. अरहर की फसल जब 20 से 60 दिन की हो जाए, उस समय बहुत ही देखभाल की जरूरत है. खरपतवार से 20 से 40 फीसदी तक उत्पादन में कमी पाई गई है.
अरहर में 2 बार निराईगुड़ाई करें. पहली 25 से 30 दिन पर करें और दूसरी 45 से 60 दिन की होने पर निराई करें.
सिंचाई का पुख्ता इंतजाम
बारिश होने की वजह से अरहर की फसल में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. परंतु देर से पकने वाली प्रजातियों जैसे आशा, लक्ष्मी वगैरह किस्मों में नमी की कमी में एक सिंचाई करने से पैदावार में इजाफा हो जाता है.
अरहर की फसल में पहली सिंचाई शाखा बनने पर करें. दूसरी सिंचाई बोआई से 30 दिन बाद या फूल आने के 70 दिन बाद करें.
110 दिन बाद खेत में फली बनते समय नमी की कमी नहीं होनी चाहिए. ज्यादा बारिश होने की दशा में पानी खेत में ही रुकने दें.
अरहर के साथ दूसरी फसलों की बोआई: अधिक दिनों की बारिश वाली फसल होने व नुकसान के चलते किसानों का ध्यान कम समय की फसलों की ओर ज्यादा होता है. साथ ही, मौसम बदलने से तापमान बढ़ने के कारण कम फूल व कम दाना बनने से पैदावार लगातार कम हो रही है.
बारिश पर आधारित रकबों में जहां आमतौर पर अरहर की फसल ली जाती है, वहां उन्नत तकनीकी पर आधारित अरहरसोयाबीन 2:4 या अरहरज्वार 2:2 अंतर्वर्तीय फसल तकनीक को अपना कर प्रति इकाई क्षेत्र से फसल चक्र के सिद्धांत के अनुरूप दाल वाली फसलों के साथ ज्वार ले कर जमीन की उर्वराशक्ति का सही इस्तेमाल कर सकते हैं.
* ज्वार या मक्का के साथ अरहर की एक कतार, ज्वार या मक्का की 1 या 2 कतारें या फिर अरहर की 2 कतारें और ज्वार के साथ मक्का की 4 कतारें बोएं.
* अरहर की 2 कतारें, मूंगफली या सोयाबीन की 4 कतारें बो सकते हैं.
* अरहर की 1 कतार के साथ मूंग या उड़द की 2 कतारें बोएं.
* अंतर्वर्तीय फसलों की खेती करने पर सभी फसलों की कतारों की दूरी 30 सैंटीमीटर रखनी चाहिए.
कटाई व उपज : जब 80-85 फीसदी फलियों का रंग भूरा हो जाए व नीचे को झुक जाएं तब इसे काटने का उचित समय समझें. इस प्रकार उन्नत सस्य क्रियाएं अपनाने पर अरहर की 15-20 क्विंटल उपज हासिल होती है.
भंडारण : भंडारण के समय दानों को धूप में सुखाएं और जब नमी 10 फीसदी रह जाए, तब सूखी व साफ जगह पर स्टोर करने के लिए रख दें.