आलू की एक किस्म केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला, हिमाचल प्रदेश ने ईजाद की है, जिसे ‘कुफरी मोहन’ नाम दिया गया है. यह मध्यम अवधि वाली यानी 90 दिन में उगने वाली किस्म है. इस किस्म के कंद देखने में सफेद क्रीम रंग के, अंडाकार व एकरूपता लिए होते हैं.

यह किस्म पछेती अंगमारी यानी लेट ब्लाइट की प्रतिरोधी है. यह किस्म उत्तरी व पूर्वी मैदानों में उगाने के लिए सही पाई गई है. उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में ‘कुफरी बहार’ और पूर्व मैदानी इलाकों में ‘कुफरी ज्योति’ की तुलना में यह किस्म ज्यादा उपज देती है.

साल 2017-18 में इस किस्म को सिंधुगंगा केमैदानी इलाकों में कारोबारी खेती करने के लिए सिफारिश की गई है. यह किस्म प्रति हेक्टेयर 40 क्विंटल तक उपज दे देती है.

ऐसी हो जलवायु

आलू के सफल उत्पादन के लिए ठंडी जलवायु की जरूरत होती है. आलू की ज्यादा पैदावार लेने के लिए कम तापमान की जरूरत होती है, क्योंकि 20 डिगरी सैल्सियस से ज्यादा तापमान पर कंदों का बनना रुक जाता है.

कम तापमान, मध्यम प्रकाश अवधि के दिनों और नाइट्रोजन की कमी वाली अवस्था में कंद की प्रक्रिया जल्दी शुरू हो जाती है. आलू की फसल पर पाले का बुरा असर पड़ता है.

चुनें सही जमीन

वैसे तो आलू को तमाम तरह की जमीनों में उगाया जा सकता है, पर इस की उच्च गुणवत्ता वाली ज्यादा पैदावार लेने के लिए सही जलनिकास वाली जीवांशयुक्त रेतीली दोमट जमीन अच्छी मानी गई है. जैसेजैसे जमीन के पीएच मान में बढ़ोतरी होती जाती है, वैसेवैसे ही पैदावार में कमी होती जाती है.

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