गाजर (Carrot) में बोआई के 90-100 दिनों बाद रोपाई के लिए जड़ें तैयार हो जाती हैं. बोई गई किस्म से मेलखाती जड़ों को जमीन से निकाल कर रंग, आकार व रूप के आधार पर छांट लेते हैं. छांटी गई जड़ों का नीचे से एक तिहाई भाग और पत्तियों को 5-8 सेंटीमीटर रख कर काट देते हैं. छांटी गई जड़ों की रोपाई करने से पहले उन्हें फफूंदीनाशक से उपचारित कर लें.
रोपाई से पहले हैरो या कल्टीवेटर द्वारा खेत को अच्छी तरह तैयार करें. जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए. खेत की तैयारी के समय 150-200 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं.
इस के अलावा प्रति हेक्टेयर की दर से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन रोपाई के 21 दिनों बाद शाखाओं के निकलते समय और 25 किलोग्राम नाइट्रोजन फूल आना शुरू होने से पहले छिड़काव द्वारा दिया जाना चाहिए. गाजर की छांटी गई जड़ों को 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाते हैं. गाजर की रोपाई का सही समय मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी तक होता है. जड़ों की रोपाई करने के बाद खेत को सींचा जाता है. रोपाई के 15-20 दिनों बाद बढ़ते पौधों पर मिट्टी चढ़ाना जरूरी है.
बेकार पौधों को निकालना
फूलों के खिलने के समय जो पौधे बहुत जल्दी फलन की अवस्था में आते हैं और जो पौधे काफी बाद में फूल की अवस्था में आते हैं, उन को खेत से निकाल देना चाहिए. जिन पौद्यों में बीमारी (खासकर बीजों से पैदा होने वाली बीमारी जैसे ब्लैक लैग या ब्लैक रोट) के लक्षण दिखाई दें, उन्हें भी खेत से निकाल देना चाहिए. हर अवस्था में जो भी बेकार पौधे दिखाई दें उन्हें निकालते रहना चाहिए.
परपरागित फसल होने के कारण गाजर का शुद्ध बीज लेने के लिए यह जरूरी है कि 2 किस्मों के बीच कुछ दूरी जरूर रखी जाए. आमतौर पर आधार बीज उत्पादन के लिए गाजर में 1000 मीटर की दूरी रखते हैं, जबकि प्रमाणित बीज के लिए गाजर में 800 मीटर की दूरी रखते हैं.
परागण में मदद के लिए मधुमक्खियों का इस्तेमाल : गाजर में परपरागण होता है, जिस में मधुमक्खियां व अन्य कीड़े परागण में मदद करते हैं. इस से अच्छी क्वालिटी वाले बीजों की कुल पैदावार बढ़ जाती है. परागण के लिए खेत में फूल आना शुरू होने के समय मधुमक्खियों के 2-4 बक्से प्रति एकड़ की दर से रखना फायदेमंद होता है.
कीट व रोग
आमतौर पर इस फसल में कीटों व रोगों का प्रकोप कम होता है. कभीकभी माहू, चेपा व फुदका पत्तियों व तनों से रस चूसते हैं. इन से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.25 मिलीलीटर या रोगार 2.0 मिलीलीटर दवा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. पत्ती कुतरने वाले कीट से बचाव के लिए कार्बेरिल 2.0 ग्राम या डाइमिथोएट 30ईसी या मैलाथियान 50ईसी या मिथाइल डेमेटोन 25ईसी दवा का 2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. बीज, पौध व जड़ सड़न रोग से बचाव के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम या कार्बंडाजिम 2 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों का उपचार करें. पत्ती धब्बा रोग से बचाव के लिए कार्बंडाजिम या डाइथेन एम 45 के 0.25 फीसदी के घोल का छिड़काव करें.
बीज फसल की कटाई
फलियों को समय से तोड़ कर उन से बीज निकालना ठीक रहता है. इस में लापरवाही बरतने पर बीज की उपज व गुणवत्ता में कमी आती है. बीज की फसल मार्चमई के दौरान तैयार हो जाती है. फसल को सुबह के समय काटना ठीक रहता है. खलिहान में पौधों को अच्छी तरह सुखा कर फलियों से बीजों को अलग कर के साफ किया जाता है.
बीज की उपज व भंडारण
गाजर में प्रति हेक्टेयर 500-550 किलोग्राम बीज की औसत पैदावार हो जाती है. साफ किए गए बीजों को 7-8 फीसदी तक सुखा कर, नमीरोघी थैलों में भरा जाता है. भंडारण के दौरान बीजों को कीटों से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड चूर्ण 0.1 ग्राम या मेलाथियान चूर्ण 0.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से ले कर बीजोपचार करें. फफूंदीजनक रोगों से बचाव के लिए थीरम या कार्बंडाजिम चूर्ण 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से ले कर बीजोपचार करें. बीजों का भंडारण सूखी व ठंडी जगह पर करें और समयसमय पर भंडारित बीजों की जांच करते रहें.