बैगन की खेती (Brinjal Cultivation) से अच्छी उपज लेने के लिए उस में कीटरोगों की रोकथाम करना बहुत जरूरी है. क्योंकि बैगन की खेती(Brinjal Cultivation) लंबे समय तक फल देती है. इसलिए अगर समय रहते फसल में कीटरोगों की रोकथाम नहीं की गई तो हमें अच्छा मुनाफा नहीं मिलेगा.

तना व फल छेदक : इस कीट की इल्ली शुरू में अंडे से निकलने के बाद तने केऊपरी सिरे से तने में घुस जाती है. कीट के कारण तना मुरझा कर लटक जाता है व बाद में सूख जाता है. फल आने पर इल्लियां उन में छेद बना कर घुस जाती हैं और अंदर ही अंदर फल खाती हैं. उन के मल से फल सड़ जाते हैं. नियंत्रण के लिए रोग लगे फलों को तोड़ कर नष्ट करें. इल्लियों को इकट्ठा कर के नष्ट करें. कीटों का हमला होते ही ट्राइजोफास 40 ईसी 750 मिलीलीटर या क्वीनालफास 25 ईसी 1.5 लीटर दवा को 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए. फल वाली दशा में फल तोड़ने के बाद ही कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए.

जैसिड : ये कीड़े पत्तियों का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं. बचाव के लिए खेत को खरपतवार मुक्त रखें ताकि कीटों के घर खत्म हो जाएं. शुरू की दशा में 5 मिलीलिटर नीम का तेल व 2 मिलीलिटर चिपचिपे पदार्थ का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. खड़ी फसल में आक्सी मिथाइल डिमेटान मेटासिस्टाक्स या डायमेथोऐट रोगर की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.

Brinjal Cultivation

लाल मकड़ी : लाल मकड़ी माइट का रंग लाल होता है. इस के शिशु और प्रौढ़ दोनों नुकसान पहुंचाते हैं. इस कीट का प्रकोप मुलायम पत्तियों पर ज्यादा होता है और इन की संख्या पत्तियों की निचली सतह पर ज्यादा होती है. ये पौधों की कोमल पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से हरा पदार्थ खत्म हो जाता है और सफेद धब्बे जैसे दिखाई देने लगते हैं. पौधों की बढ़वार रुक जाती है. कीट का हमला अधिक होने पर सल्फर की 2 से 2.5 ग्राम या सल्फेक्स नामक  दवा की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

सफेद मक्खी : ये कीट पौधों की मुलायम पत्तियों से रस चूसते हैं, जिस से वे पीली पड़ कर सूख जाती हैं. साथ ही ये कीट विषाणु जनित रोगों का फैलाव भी रोगी पौधे से स्वस्थ पौधे में करते हैं. शुरू की दशा में नीम की निबौली के सत के 5 फीसदी के घोल का छिड़काव करना चाहिए. रोकथाम के लिए इथोफेनाप्राक्स 10 ईसी या इथियान 50 ईसी या आक्सीडिमेटान मिथाइल 25 ईसी की 1 लीटर मात्रा को 600 से 700 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

Brinjal Cultivation

नेमेटोड सूत्र कृमि : इस के कारण पौधों की जड़ों में गांठें बन जाती हैं. पौधे बौने रह जाते हैं और कमजोर दिखाई पड़ते है. पत्तियां हरीपीली हो कर मुरझा जाती हैं. इस से पौधे नष्ट तो नहीं होते, लेकिन गांठों के सड़ने पर सूख जाते हैं. जहां पर इस के प्रकोप का खतरा हो, वहां 25 क्विंटल नीम की खली प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाल कर मिट्टी में भलीभांति मिला देनी चाहिए. नेमागान 12 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से ले कर भूमि का पौधे रोपने से 3 हफ्ते पहले शोधन करें. रोगी पौधों को खेत से उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.

खास रोग व इलाज

आर्द्र गलन : यह बीमारी पौधशाला में अधिक लगती है. इस से पौधे जड़ों के पास में सड़ने लगते हैं. यह रोग फाइटोपथेरा पीथियम स्क्लेरोशियम फ्युजेरियम की विभिन्न प्रजातियों से होता है. रोकथाम के लिए बीजों का थीरम की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें. थीरम या कैप्टान की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर 7 से 11 दिनों के अंतर पर 2 बार क्यारी में छिड़कें. बीजों को 50 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर 30 मिनट तक उपचारित कर के बोना चाहिए. इस बीमारी को रोकने के लिए ट्राईकोडर्मा की 4 से 5 ग्राम मात्रा से 1 किलोग्राम बीजों का शोधन करें. ट्राइकोडर्मा की 10 से 20 ग्राम मात्रा 1 किलोग्राम कंपोस्ट या गोबर की खाद में मिला कर 1 वर्गमीटर खेत के शोधन के लिए इस्तेमाल करें.

फोमाप्सिस झुलसा : इस के लक्षण पत्ती, फल व तने पर दिखते हैं. पत्ती पर गोल धब्बे, तने का सूखना व फल का सड़ना इस के लक्षण हैं. संक्रमित क्षेत्र में छोटेछोटे बिंदु के समान उभरे लक्षण दिखते हैं. इस के लिए रोग रहित किस्मों का चुनाव करें और बीजों को बावस्टीन की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. खेत में फल आने से पहले समय पर ही मेंकोजेब 0.25 फीसदी 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडाजिम 0.1 फीसदी 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव 10 दिनों के अंतर पर करें.

Brinjal Cultivation

बैगन का छोटी पत्ती रोग : इस रोग का प्रकोप बैगन की पत्तियों पर होता है, जिस में पत्तियां काफी छोटी हो जाती हैं. इस में पौधों की शाखाएं छोटी रह जाती हैं और पत्तियों का झुंड बन जाता है. पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं. फूल व फल नहीं बनते हैं. इस रोग का फैलाव कीटों द्वारा ग्रसित पौधों से स्वस्थ पौधे में तेजी से होता है. लिहाजा रोग को फैलाने वाले रस चूसक कीटों की रोकथाम के लिए डाईमेथाएट 30 ईसी या आक्सीडेमेटान मिथाइन 25 ईसी की 1.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. पौधों की रोपाई से पहले जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के 100 पीपीएम यानी 1 ग्राम मात्रा प्रति 10 लीटर पानी के घोल में भिगोना चाहिए और रोपाई के 4 से 5 हफ्ते बाद दवा का छिड़काव करना चाहिए. प्रभावित पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें. रोगरोधी जातियां जैसे पूसा परपल, क्लस्टर, मंजरी गोटा, अर्का शील व बनारस जाईट को लगाना चाहिए.

जीवाणु उकठा रोग : यह रोग पौधों की निचली पत्तियों से शुरू होता है, जिस में बाद में पूरी पत्तियां पीली हो कर सूखने लगती हैं. तने को काट कर देखने पर दूधिया रंग का लसलसा पदार्थ दिखाई देता है. फसलचक्र में सरसों कुल की सब्जियां जैसे फूलगोभी लगानी चाहिए. पौधे की जड़ों को रोपाई से पहले स्ट्रेप्टोसाइक्लिन नामक दवा के 100 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में आधे घंटे तक डुबाने के बाद रोपाई करनी चाहिए. उकठा रोधी या सहनशील जातियां जैसे पंत सम्राट लगाएं. कार्बेंडाजिम की 1 ग्राम मात्रा या 2.5 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करने से भी फायदा होता है.

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