माहूं या चेंपा कीट : यह सरसों का खास कीट है. इस कीट के लगने से फसल उत्पादन में सब से ज्यादा नुकसान होता है. ये कीट झुंड में रहते हैं व तेज रफ्तार से बढ़ते हैं. इन के झुंड पत्तियों, फूलों व फलियों पर चिपके हुए पाए जाते हैं. ये धीरेधीरे पूरे पौधे को ढक लेते हैं. कीट लगी पत्तियां मुड़ी हुई दिखाई देती हैं. फलियों में दाने कमजोर पड़ कर सिकुड़ जाते हैं. ज्यादा कीट होने पर पौधों की बढ़वार रुक जाती है, फूल नहीं बनते और यदि बनते भी हैं तो फलियां नहीं बनती हैं या बिना दाने वाली फलियां बनती हैं.
रोकथाम : फसल की 15 अक्तूबर तक बोआई करें व ज्यादा मात्रा में उर्वरकों को न डालें. इस से कीटों का असर कम होता है. खेत में पीले ट्रैप लगाएं. माहूं के परभक्षी कीट कोक्सीनेला, इंद्रगोप क्राइसोपरला सिरफिड मक्खी वगैरह को फसल में बाहर से ला कर छोड़ें. जरूरत पड़ने पर डाइमैथोएट 30 पायस सांद्रण ईसी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 0.5 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर की दर से 600-800 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.
लीफ माइनर मटर का पर्णखनक : इस कीट का आक्रमण बोआई से फसल के आखिर तक होता है. इस कीट की सूंडि़यां पत्तियों के अंदर सुरंग बनाती हुई अंदर से ऊतकों को खा कर पूरी पत्ती में सफेद गैलरी सी बना देती हैं.
रोकथाम : लीफ माइनर लगी पत्तियों को तोड़ कर जला दें. डाइमैथोएट 30 पायस सांद्रण ईसी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर दवा को 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 600-800 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.
आरा मक्खी : इस मक्खी की सूंड़ी ही फसल को नुकसान पहुंचाती है. मादा पत्तियों के किनारे की कोशिकाओं में अंडे देती है. अंडों से 5-7 दिनों में मटमैली लटें निकलती हैं. लटें पत्तियों को तेजी से खाती हैं, जिस से पत्तियों में तमाम छेद हो जाते हैं.
तेजी से फैलने से पत्तियों के स्थान पर शिराओं का जाल ही बचा रह जाता है. सरसों की फसल जमते ही इन का हमला शुरू हो जाता है. इसलिए फसल की शुरुआत में इस से भारी नुकसान होता है.
रोकथाम : कटाई के बाद गहरी जुताई करें, जिस से प्यूपा जमीन के ऊपर आ जाते हैं और जो धूप से मर जाते हैं और चिडि़यों द्वारा खा लिए जाते हैं. कीट ज्यादा लगने की दशा में मेलाथियान 50 ईसी 500 मिलीलीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए. जरूरत पड़ने पर दोबारा छिड़काव करना चाहिए.
पेंटेंड बग या चितकबरा कीट : इस के प्रौढ़ व शिशु दोनों ही समूह में इकट्ठा हो कर पौधों से रस चूसते हैं, जिस से पौधे छोटी अवस्था में कमजोर व पीले पड़ कर सूख जाते हैं.
अंकुरण के 1 हफ्ते के अंदर अगर इन का आक्रमण होता है, तो पूरी फसल चौपट हो जाती है. दोबारा यह कीट फरवरी के आखिर में या मार्च के पहले हफ्ते में दिखाई देता है और पकती फसल की फलियों से रस चूसता है.
रोकथाम : गरमियों में खेत की गहरी जुताई करें. इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस, रसायन की 5 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से नुकसान काफी कम होता है. इस कीट की रोकथाम के लिए 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 1.5 फीसदी क्यूनालफास चूर्ण का बुरकाव करें.
बिहार की रोएंदार सूंड़ी : इस कीट की सूंडि़यां ही फसल को नुकसान पहुंचाती हैं. छोटी सूंडि़यां समूह में रह कर नुकसान पहुंचाती हैं. इस कीट की सूंडि़यां झुंड में इकट्ठा हो कर पत्तियों के हरे हिस्से को खाती हैं. पत्तियां कागज जैसी व पारदर्शी हो जाती हैं. यह कीट फसल की शुरू की दशा यानी सितंबरनवंबर में ज्यादा आक्रमण करता है.
रोकथाम : सूंडि़यों को खत्म करने के लिए 1.5 फीसदी क्यूनालफास चूर्ण का खेत के चारों तरफ घेरा सा बना देना चाहिए ताकि दूसरे खेतों में सूंडि़यां न जा पाएं. ज्यादा हमला होने पर फसल पर मेलाथियान 50 ईसी की 1.0 लीटर मात्रा को 500 लीटर पानी में डाल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़कें.