धान की फसल को सब से ज्यादा जिस रोग से नुकसान पहुंचता है, वह है कडुआ रोग. अगर यह रोग फसल में लग जाए, तो धान की पूरी फसल को बरबाद कर के छोडती है. साथ ही, अगलबगल की फसल को भी अपने चपेट में ले लेती है. इसलिए किसानों को धान की फसल को कंडुआ रोग से बचाने के लिए बीजों का शोधन जरूर करना चाहिए.
धान फसल में लगने वाला कंडुआ रोग फफूदजनित है, जिस से 60 से 90 फीसदी तक फसल प्रभावित हो जाती है. यह सामान्यत: तापमान अधिक होने एवं हवा में आर्द्रता अधिक होने के कारण तेजी से फैलता है. धान में यूरिया का ज्यादा प्रयोग भी इस रोग को बढ़ाता है.
यह रोग प्राथमिक तौर पर बीज से शुरू होता है, इसलिए बीज शोधन अत्यंत जरूरी है. धान बीज शोधन के लिए 25 किलोग्राम बीज के लिए सब से पहले 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन दवा को 40 से 45 लिटर पानी में घोल लेते हैं, फिर इस में 16 से 18 घंटे तक धान बीज को भिगो कर निकालने के बाद छान कर छाया में सुखाते हैं. इस के बाद 60 ग्राम कार्बेंडाजिम धान में मिला कर जूट की बोरियों को भिगो कर ढक देते हैं. 15 से 18 घंटे बाद जब बीज में सफेद अंकुरण दिखाई देने लगे, तो नर्सरी डालने के बाद रोग का खतरा कम हो जाता है.
किसान अगर काला नमक धान या अन्य सुगंधित धान की रोपाई करने वाले हैं, तो इस की नर्सरी डालने का सब से मुफीद समय जून माह का तीसरा हफ्ता होता है. सुगंधित धान की नर्सरी डालने से पहले स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 फीसदी के साथ ट्रेट्रासाईक्लीन हाईड्रोक्लोराइड 10 फीसदी की 4 ग्राम के साथ थिरम 37.5 फीसदी डब्ल्यूपी + कार्बोक्सिन 37.5 डब्ल्यूपी बीटावेक्स पावर की 250 मिलीलिटर मात्रा 100 लिटर पानी के घोल में बीज को रातभर भिगो दें. दूसरे दिन बीज को छान कर गीले बोरे में लपेट कर ठंडे कमरें में रखना चाहिए. समयसमय पर पानी का छींटा देते रहना चाहिए. लगभग 36-48 घंटे में बीज अंकुरित हो जाने पर बोआई करनी चाहिए. 21 से 25 दिन में रोपने योग्य नर्सरी तैयार हो जाएगी.