जब कभी दाल, तेल, सब्जी, फल, मांस व अंडे आदि की कमी महसूस होती है, तो भारीभरकम आयात कर के उन की कमी पूरी की जाती है, जबकि हमारे किसान इन चीजों की कमी को पूरा कर सकते हैं, बशर्ते उन्हें फसल की उत्पादन लागत से थोड़ा फायदा मिलने की उम्मीद हो.
देश में तेजी से नए शहरों का विकास हो रहा है, साथ ही ग्रामीण जनता भी शहरों की तरफ भाग रही है. देश की आजादी के समय ग्रामीण आबादी तकरीबन 85 फीसदी थी, जो कि घट कर आज 65 फीसदी तक रह गई है.
अब भोजन की थाली में पोषण का खयाल रखा जाने लगा है. आज भोजन पेट भरने के साथ ही शारीरिक तंदुरुस्ती का भी महत्त्वपूर्ण साधन है. तंदुरुस्त शरीर पाने के लिए दूध, फल, सब्जी, तेल, मांस व अंडे की मांग में काफी इजाफा हुआ है. आएदिन इन चीजों की पूर्ति में कमी के कारण इन के दामों में तेजी देखने को मिलती है. इन की कीमत में आई तेजी को रोकने के लिए सरकार आयात का सहारा लेती है.
यदि सरकार इन चीजों को बेचने की बेहतर सुविधाएं मुहैया कराए, तो देश के किसान इन का भरपूर उत्पादन करेंगे.
अगर पिछले 20 साल के आंकड़े देखें तो मक्का, फल, दूध, मांस, अंडा, मछली व तेल आदि की मांग में चौगुनी वृद्धि देखने को मिली है, जबकि गेहूं व दाल आदि की मांग में मामूली बढ़ोतरी देखी गई है.
यदि कुछ चुनिंदा फसलों को देखें तो उन में से मक्का व सोयाबीन की मांग में साल दर साल तकरीबन 12 से 15 फीसदी का इजाफा हो रहा है, क्योंकि पोल्ट्री उद्योग के साथ ही कई सौफ्ट ड्रिंकों में भी इन दोनों फसलों का भरपूर इस्तेमाल हो रहा है. इसी तरह पोल्ट्री उद्योग की मांग में भी 12 से 15 फीसदी का साल दर साल जबरदस्त इजाफा देखने को मिल रहा है. आज देश में पोल्ट्री उद्योग और तकरीबन 1 करोड़ 60 लाख लोगों को रोजगार मुहैया करा रहा है.
जब बेमौसम बारिश या सूखे के कारण फसलों के उत्पादन पर असर पड़ता है, तो उन फसलों के दामों में अप्रत्याशित तेजी देखने को मिलती है, क्योंकि आज भी देश में भंडारण के लिए अच्छे गोदामों का अभाव है.
सरकारी स्तर पर यदि ढांचागत क्षेत्र में कुछ बदलाव किए जाएं, तो सफलता मिल सकती है.
गोदाम और कोल्ड चेन का निर्माण : देश में आज भी गोदामों की बहुत कमी है. गेहूं, चावल और चीनी के सही भंडारण के लिए ही गोदामों की कमी है, तो इस स्थिति में मक्का, बाजरा और सोयाबीन के लिए गोदामों की उपलब्धता दूर की बात है.
अगर सरकार सिर्फ गोदामों की व्यवस्था ही सही कर दे तो किसान इस बढ़ती मांग को पूरा कर सकते हैं, जिस में उन को भी भारी लाभ होगा.
जैसा कि बताया जा चुका है कि देश में गोदामों की काफी कमी है. कमोबेश वही स्थिति कोल्ड स्टोरेज की भी है. तकरीबन 40 फीसदी सब्जियां कोल्ड स्टोरेज के अभाव में खुले में ही सड़ जाती हैं.
प्रदेश सहकारी समिति के गोदामों का इस्तेमाल सिर्फ उर्वरकों के स्टोरेज के लिए ही किया जाता है, जबकि आधे से ज्यादा गोदामों की हालत जर्जर और दयनीय है, जबकि केंद्रीय भंडारण निगम व भारतीय खाद्य निगम सिर्फ सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गेहूं, चावल और चीनी का भंडारण करते हैं. किसानों के माल के भंडारण की जिम्मेदारी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह राज्य भंडारण निगम के पास है, जिस की कूवत जरूरत के मुकाबले सिर्फ एकचौथाई ही है. सरकार को किसानों व उपभोक्ताओं की भलाई के लिए प्राइवेट सेक्टर की मदद करनी चाहिए ताकि इस क्षेत्र में अधिक से अधिक लोग आकर्षित हो सकें.
अब सारा दारोमदार प्राइवेट सेक्टर के हाथ में है कि वह अधिक से अधिक भंडारण में निवेश करे, मगर सवाल यह उठता है कि वह अपना निवेश क्यों करे, जब तक उसे अपना निवेश सुरक्षित और कमाऊ न लगता हो.
इसलिए जरूरत है कि सरकार कुछ खास उपाय करे जैसे कि निवेश की गई रकम पर कम से कम 5 साल का ब्याज सरकार सब्सिडी के तौर पर दे, साथ ही साथ पहले 3 साल तक गोदाम में 50 फीसदी सरकारी माल रखने की गारंटी दे, जिस से सिर्फ 2 साल के अंदर ही कम से कम 10 लाख टन के गोदाम बन कर तैयार हो जाएं. यदि सरकार गोदामों का इंतजाम पक्का कर दे तो किसानों की आर्थिक तरक्की में बहुत बदलाव परिवर्तन देखने को मिलेगा.