सर्दी के मौसम में शीत लहर और पाले से मानव, पशु, पक्षी, फसल आदि सभी प्रभावित होते हैं. सावधान न रहने पर बहुत नुकसान हो सकता है. ये सभी इस से बचने के लिए उपाय कर लेते हैं, लेकिन फसलों को बचाने लिए किसानों को सावधानी रखनी होगी.

इस विषय पर आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के सेवानिवृत्त वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष  प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि पाले से  टमाटर, मिर्च, बैगन आदि सब्जियों, पपीता, केले के पौधों एवं मटर, चना, अलसी, सरसों, जीरा, धनिया, सौंफ आदि में 50 फीसदी से ज्यादा नुकसान हो सकता है.

अरहर में 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी एवं गेहूं व जौ में 10 से 20 फीसदी तक नुकसान हो सकता है. पाले के प्रभाव से पौधों की पत्तियां एवं फूल झुलसे हुए दिखाई देते हैं. यहां तक कि अधपके फल सिकुड़ जाते हैं. उन में झुर्रियां पड़ जाती हैं और कई फल गिर जाते हैं. फलियों एवं बालियों में दाने नहीं बनते हैं और कभीकभी बन रहे दाने सिकुड़ जाते हैं.

प्रो. रवि प्रकाश मौर्य ने बताया कि रबी फसलों में फूल आने एवं बालियां/फलियां आने और बनते समय पाला पड़ने की सर्वाधिक संभावना रहती है. अत: इस समय किसानों को  चौकन्ना  रह कर फसलों की पाले से सुरक्षा के उपाय अपनाने चाहिए. जब तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है, तो रात को पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है.

पाला पड़ने वाला है या नहीं, इस बात को किसान कैसे जान सकते हैं, इस पर उन्होंने जानकारी दी कि  वैसे तो आमतौर पर पाले का अनुमान दिन के बाद के वातावरण से लगाया जा सकता है. सर्दी के दिनों में जिस दिन दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे और हवा का तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए. दोपहर के बाद अचानक हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात के बाद से ही हवा रुक जाए, तो पाला पड़ने की संभावना अधिक रहती है.

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