सर्दियों में पाले का असर पौधों पर सब से ज्यादा होता है. यही वजह है कि सर्दी में उगाई जाने वाली फसलों को आमतौर पर 80 फीसदी तक का नुकसान हो जाता है, इसलिए समय रहते फसलों का पाले से बचाव करना बेहद जरूरी हो जाता है.

सर्दियों में जब तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है तो रात में पाला पड़ने की आशंका ज्यादा रहती है. वैसे, आमतौर पर पाला पड़ने का अनुमान वातावरण से लगाया जा सकता है.

सर्दियों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे, हवा का तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए, दोपहर बाद अचानक ठंडी हवा चलनी बंद हो जाए और आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात से हवा रुक जाए तो पाला पड़ सकता है. रात को खासकर तीसरेचौथे पहर में पाला पड़ने की आशंका ज्यादा रहती है.

अध्ययनों से पता चला है कि साधारण तापमान चाहे कितना भी गिर जाए, लेकिन शीत लहर चलती रहे तो फसलों को कोई नुकसान नहीं होता है. पर अगर हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ हो तो पाला जरूर पड़ेगा जो रबी सीजन की फसलों के लिए ज्यादा नुकसानदायक है.

खेतों में पाला पड़ने से होने वाले बुरे नतीजे जो इस तरह है :

* पौधे की पत्तियों और फूलों का झुलसना.

* पौधे की बंध्यता.

* फलियों और बालियों में दानों का बनना.

* बने हुए दानों के आकार में कमी.

* पराग कोष के विकास का ठहराव.

* प्लाज्मा झिल्ली की संरचना में यांत्रिक नुकसान.

* पौधों का मरना या गंभीर नुकसान.

* उपज और उत्पाद की क्वालिटी में कमी.

पाले से संरक्षण के कारगर उपाय

आमतौर पर पाले से नुकसान हुए पौधों का संरक्षण प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों माध्यमों से किया जा सकता है. जब अंकुरण की परिस्थिति हो तब सक्रिय विधियों का उपयोग पाले के अंकुरण की परिस्थिति पैदा होने से पहले किया जाता है जिस के लिए निष्क्रय व सक्रिय विधियों का उपयोग किया जा सकता है.

निष्क्रय विधियां

जगह का चुनना : पाले के प्रति संवेदनशील फसलें उगाने के लिए ऐसी जगह चुनी जानी चाहिए जो पाले के लिए जमाव मुक्त हो. बडे़ जलाशयों के पास की जगह आमतौर पर पाले से कम प्रभावित होती है, क्योंकि पानी के ऊपर की हवा जमीन के ऊपर की हवा की तुलना में तेजी से ठंडी होती है.

ठीक से लगे वायुरोधी पेड़ जलवायु को पौधों के अनुकूल बना देते हैं. इन के चलते फसल समय से पहले ही पक जाती है और पाले का जोखिम कम हो जाता है.

Winter Farmingफसल प्रबंधन : फसलों की ऐसी प्रजातियों और किस्मों को चुना जाना चाहिए जो कि पाले से पहले ही पक कर तैयार हो जाए. जैसे, जब संकर मक्का बोया जाता है तो वह पाला पड़ने से पहले ही पक कर तैयार हो जाता है.

मिट्टी प्रबंधन : मिट्टी की अवस्था फसल के ऊपरी और निचले भागों को पाले से बचाने के लिए एक उत्तरदायी कारक है. ढीली मिट्टी की सतह ताप के चालन में कमी करती है, इसलिए रात के समय ढीली मिट्टी की सतह का तापमान जमी हुई मिट्टी की अपेक्षा कम होता है.

यही वजह है कि  पाले से बचाव के लिए मिट्टी को जोतना नहीं चाहिए. जरूरत से ज्यादा गीली मिट्टी होने पर सूरज की ऊर्जा का अधिकतम भाग नमी वाष्पन में चला जाता है. ऐसी स्थिति में रात में फसल के लिए गरमी कम मिल पाती है.

दूसरी ओर जरूरत से ज्यादा सूखी मिट्टी भी ताप की कम चालक होती है. इस की वजह से ऊर्जा की कम मात्रा को ही संचित कर पाती है. ऐसी स्थिति में सर्दियों की फसलों को पाले का बुरा नतीजा भुगतना पड़ सकता है.

फसल बोआई और कटाई : पाला संवेदनशील फसलों को पाले की जमाव मुक्त अवधि में ही बोना चाहिए ताकि फसल को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके. इस प्रक्रिया को अपनाने से फसल अपेक्षाकृत कम जोखिम अवधि के दौरान अपना जीवनकाल पूरा करती है.

सक्रिय विधियां

फसल के नीचे आवरण : इस विधि का प्रमुख मकसद सतह से ताप की क्षति को कम करना होता है. इस विधि में उपयोग किए जाने वाले आवरण कई तरह के हो सकते हैं. जैसे, भूसे का आवरण, प्लास्टिक का आवरण, काला सफेद चूर्ण का आवरण वगैरह.

* भूसे का आवरण रात में गरमी को जमीन से बाहर जाने से रोकता है, जिस की वजह से फसल के तापमान में कमी आ जाती है.

* पारदर्शी प्लास्टिक 85-95 फीसदी तक सूरज की विकिरणों को संचित कर उन्हें जमीन तक पहुंचा सकती है. उन्हें वापस वातावरण में जाने नहीं देती और इस तरह जमीन के तापमान में बढ़वार होती है. यह पाले से सुरक्षा के नजरिए से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. इस के उलट काली प्लास्टिक सूरज की विकिरणों को अवशोषित करती है. इस वजह से जमीन के कारण तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है.

* काला चूर्ण सूरज की विकिरणों को दिन के समय अवशोषित करता है और रात में उत्सर्जित. नतीजतन, रात के समय जमीन के तापमान में बढ़ोतरी होती है जो पाले से पाले की सुरक्षा की नजर से बेहद महत्त्वपूर्ण है. इस के उलट सफेद चूर्ण सूरज की विकिरणों को परावर्तित कर देता है और उन्हें जमीन तक पहुंचने ही नहीं देता.

छिड़काव द्वारा सिंचाई

जब पाला पड़ने की आशंका हो तब खेत की सिंचाई करनी चाहिए क्योंकि नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी सुरक्षित रहती है क्योंकि जब पानी बर्फ में जम जाता है तो प्रक्रिया में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है जो 80 कैलोरी प्रति ग्राम के बराबर होता है. इस वजह से मिट्टी के तापमान में बढ़वार होती है.

इस तरह पर्याप्त नमी होने पर शीत लहर व पाले से नुकसान की आशंका कम रहती है. सर्दी में फसल की सिंचाई करने से 0.5-2.0 डिगरी सैल्सियस तक तापमान बढ़ाया जा सकता है.

पवन मशीन : पवन मशीन का उपयोग फसल की सतह पर उपस्थित ठंडी हवा को गरम हवा की परत में बदलने के लिए किया जाता है. यह विधि तभी कारगर हो सकती है, जब सतह के पास की हवा के मध्यम तापमान अंतर अधिक हो. इस विधि से 1-4 डिगरी सैल्सियस तक तापमान बढ़ाया जा सकता है.

गंधक का छिड़काव : जिन दिनों पाला पड़ने की आशंका हो, उन दिनों फसल पर 0.1 फीसदी गंधक के घोल का छिड़काव करना चाहिए. इस के लिए 1 लिटर गंधक के तेजाब को 1,000 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़काव करना चाहिए.

इस छिड़काव का असर 2 हफ्ते तक रहता है. अगर इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की आशंका बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15 दिन के अंतर पर दोहराते रहें.

गेहूं, चना, सरसों, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होगा, बल्कि पौधों में लोह तत्त्व की जैविक व रासायनिक सक्रियता में बढ़ोतरी हो जाती है. यह पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने और फसलों को जल्दी पकाने में भी मददगार होती है.

अगर हमें मौसम के पूर्वानुमान से न्यूनतम तापमान, हवा की गति, बादलों की स्थिति की जानकारी मिल जाए तो उचित समय पर फसलों में उपयुक्त प्रबंधन कर के हम फसल को पाले से होने वाले नुकसान से आसानी से बचा सकते हैं.

इस के अलावा हम उपयुक्त प्रबंधन द्वारा समयसमय पर फसल को अनुकूल वातावरण दे कर फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों को बढ़ाने में कामयाब हो सकते हैं. इस तरह से समय पर पाले के बुरे असर से सर्दियों में फसलों को बचा कर किसानों की माली हालत को मजबूत बनाया जा सकता है.

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