Kharif Crops : भारत में खासतौर से 2 प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं यानी रबी व खरीफ  की फसलें. रबी की फसलें सर्दी के मौसम में व खरीफ  की फसलें बारिश के मौसम में उगाई जाती हैं. सर्दी की वजह से रबी की फसलों पर कीड़ों का हमला कम होता है. लेकिन खरीफ की फसलें बारिश के मौसम में उगाई जाती हैं, लिहाजा उन में कीटों का प्रकोप अधिक होता है. करीब 20 से 50 फीसदी तक फसलों को कीटों से नुकसान का अनुमान लगाया गया है. यहां खरीफ  फसलों के खास कीटों की पहचान व रोकथाम के बारे में जानकारी दी गई है.

सफेद गिडार : यह कीट खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली सभी फसलों को नुकसान पहुंचाता है. यह कीट तमाम फसलों जैसे मूंगफली, गन्ना, ज्वार, बाजरा, लोबिया, अरहर, राजमा, मिर्च, बैगन व भिंडी आदि को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट की सूंड़ी व वयस्क दोनों ही अवस्थाएं बहुभक्षी स्वभाव की होती हैं. इस कीट की सूंड़ी जमीन के अंदर रहती है और जीवित पौधों की जड़ों को खाती है. सूंड़ी द्वारा जड़ को काट देने से पूरा पौधा पीला पड़ कर सूखने लगता है.

मादा वयस्क कीट संभोग के 3-4 दिनों बाद गीली मिट्टी में 10 सेंटीमीटर गहराई में अंडे देना शुरू करती है. 1 मादा औसतन 10-20 अंडे देती है. अंडों से 7 से 13 दिनों के बाद छोटी सूंड़ी निकलती है, जिसे पहली  अवस्था सूंड़ी कहते हैं. सूंड़ी की पहली अवस्था करीब 2 हफ्ते तक रहती है. इस कीट की दूसरी व तीसरी अवस्थाएं पौधों की बड़ी जड़ों को काटती हैं. सूंड़ी का पूरा समयकाल करीब 12-15 हफ्ते का होता है. ये जुलाई से मध्य अक्तूबर तक पौधों की जड़ों को खाती हैं.

रोकथाम

* सफेद सूंड़ी से फसलों को बचाने के लिए वयस्क नियंत्रण सब से सस्ता व कारगर तरीका है. इस के लिए पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी की 0.2 फीसदी या क्विनालफास 25 ईसी की 0.05 फीसदी मात्रा का छिड़काव करें.

* वयस्क कीट प्रकाश प्रपंच के ऊपर भारी संख्या में उड़ते देखे जा सकते हैं. इस के लिए मई के अंत में प्रकाश प्रपंच लगा देना चाहिए.

* जीवाणु, बैसिलस पोपिली द्वारा वयस्क कीट को नियंत्रित किया जा सकता है. बोआई से पहले ब्युवेरिया ब्रोंगनियार्टी की 1 किलोग्राम मात्रा व मेटारायजियम एनासोप्ली की भी 1 किलोग्राम मात्रा को प्रति एकड़ की दर से इस्तेमाल करें.

* सूत्रकृमि के पाउडर या घोल के फार्मुलेशन से बनाए गए घोल को 2.5-5×109 आईजे प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में इस्तेमाल करने से कीट पर काबू पाया जा सकता है.

* कीटनाशी रसायन क्लोरपायरीफास 10 ईसी, क्विनालफास 25 ईसी व इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल द्वारा बीजों को उपचारित कर के रोकथाम की जा सकती है.

* फसल को बोने से पहले दानेदार कीटनाशी रसायन फोरेट 10 जी की 25 किलोग्राम मात्रा से प्रति हेक्टेयर की दर से जमीन उपचारित कर के नियंत्रण किया जा सकता है.

दीमक : यह कीट खरीफ में उगाई जाने वाली सभी फसलों को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट से तमाम फसलों जैसे मूंगफली, गन्ना, ज्वार, बाजरा, लोबिया, अरहर, राजमा, मिर्च, बैगन व भिंडी आदि को नुकसान पहुंचता है. जड़ वाली फसलों को दीमक ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. यह छोटे व कोमल पौधों को जमीन की सतह के नीचे से काट कर बरबाद कर देती है. यह फसलों की जड़ों को बेहद नुकसान पहुंचाती है. इस के असर से पौधों की पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं. इस की वजह से फसल के उत्पादन में भारी कमी आती है. इस का प्रकोप खेतों की सूखी दशा में ज्यादा होता है. दीमक का आक्रमण बारिश के बाद सितंबरअक्तूबर महीने में सब से ज्यादा होता है.

रोकथाम

* 1 किलोग्राम बिवेरिया व 1 किलोग्राम मेटारिजयम को करीब 25 किलोग्राम गोबर की सड़ी हुइ खाद में अच्छी तरह मिला कर छाया में 10 दिनों के लिए छोड़ दें, इस के बाद प्रभावित खेत में प्रति एकड़ की दर से बोआई से पहले इस्तेमाल करें.

* प्रकोप ज्यादा होने पर क्लेरोपाइरीफास 20 ईसी की 3-4 लीटर मात्रा को बालू रेत में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* बीजों को बोने से पहले इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस 0.1 फीसदी से उपचारित कर लेना चाहिए.

तंबाकू की सूंड़ी: यह कीट तमाम फसलों जैसे मूंगफली, ज्वार, बाजरा, लोबिया, अरहर, सोयाबीन, कपास व मक्का वगैरह को नुकसान पहुंचाता है. इस के वयस्क पतंगों के पंख सुनहरेभूरे रंग के सफेद धारीदार होते हैं. हर मादा 1000-2000 अंडे गुच्छों में पत्तियों के नीचे देती है. इस के अंडों के गुच्छे बादामी रोओं से ढके रहते हैं. अंडे 3-5 दिनों बाद फूटते हैं. सूंड़ी मटमैले से काले रंग की होती है. उस के शरीर पर हरीनारंगी धारियां होती हैं. नीचे दोनों तरफ काले धब्बे होते हैं. इस की साल में 6-8 पीढि़यां पनपती हैं. सूंडि़यां झुंड में पत्तियों की निचली सतह पर हरा पदार्थ खा कर व चूस कर नुकसान पहुंचाना शुरू करती हैं. अंत में पत्तियों की शिराएं ही बचती हैं. पत्तियों के बाद ये फूलों की कलियों, डंठलों वगैरह को खाती हैं.

रोकथाम

* 5 किलोग्राम धान का भूसा और 1 किलोग्राम शीरा और 0.5 किलोग्राम कार्बारिल को मिला कर पतंगों को आकर्षित करें.

* एसएल-एनपीवी 250 एलई का प्रति हेक्टेयर की दर से 8-10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

* 1 किलोग्राम बीटी का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* प्रकोप बढ़ने पर फिपरोनिल 5 एससी या क्वालीनोफास 25 ईसी 1.5-2.0 प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें.

* फसल में जहर चारा 12.5 किलोग्राम राइसबीन, 1.25 किलोग्राम जगेरी, कार्बेरिल 50 फीसदी डब्ल्यूपी 1.25 किलोग्राम और 7.5 लीटर पानी के घोल का शाम के समय छिड़काव करें, जिस से जमीन से सूंड़ी निकल कर जहर चारा खा कर मर जाएगी.

अमेरिकन सूंड़ी : इस कीट द्वारा तमाम फसलों जैसे मूंगफली, ज्वार, बाजरा, लोबिया, अरहर, सोयाबीन, कपास, मक्का, दलहन व फली वाली फसलों को नुकसान पहुंचता है. मादा पतंगा पौधे के कोमल अंगों पर 1-1 कर के सफेद अंडे देती है. 1 मादा 500 से 700 तक अंडे देती है. ये अंडे 3-4 दिनों में फूटते हैं. 25-60 दिनों में इस का जीवनचक्र पूरा हो जाता है. इस का प्यूपा मिट्टी में बनता है. हर साल इस की 7-8 पीढि़यां बनती हैं. इस की सूंडि़यां हरे से पीले रंग की होती हैं. इस के शरीर पर उभरे निशान होते हैं.

रोकथाम

* कीट का आक्रमण होने या अंडे दिखाई पड़ते ही ट्राइकोग्रामा किलोनिस 1.5 लाख अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से 1 हफ्ते के अंतराल पर 6-8 बार छोड़ें.

* पहली अवस्था की सूंड़ी दिखाई देते ही  एनपीवी की 250 एलई या  3 ग 1012 पीओबी प्रति हेक्टेयर की दर से 7-8 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

* 1 किलोग्राम बीटी का छिड़काव करें. इस के अलावा 5 फीसदी नीम की निबोली के सत का इस्तेमाल कर सकते हैं.

* ज्यादा प्रकोप होने पर कार्बेरिल 50 डब्ल्यूपी की 2.5 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर, पायराकलोफोस 50 ईसी की 1.5 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर या क्वालीनोफास 25 ईसी की 1-1.5 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* स्पाइनोसैड 45 एससी, इंडोक्सकार्ब 14.5 एससी व थायोमेंक्जाम 70 डब्ल्यूएससी की 1 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर की दर से इस्तेमाल करें.

बिहारी बालदार सूंड़ी : यह कीट खरीफ  मौसम में उगाई जाने वाली सभी फसलों को नुकसान पहुंचाता है. यह कीट तमाम फसलों जैसे मूंगफली, ज्वार, बाजरा, लोबिया, अरहर, कपास, मूंग व उड़द आदि को नुकसान पहुंचाता है. इस कीट के वयस्क सफेद पंख वाले होते हैं, जिन पर छोटेछोटे बिंदु होते हैं. मादा पत्तियों की निचली सतह पर समूह में पीलापन लिए हुए सफेद रंग के अंडे देती है.

1 मादा अपने जीवनकाल में 800-1000 अंडे देती है. अंडे 3-5 दिनों में फूट जाते हैं. अंडों से निकली छोटी सूंडि़यां शुरू में एक जगह पर झुंड में चिपकी रहती हैं, फिर 1-2 दिनों में अलगअलग बिखर जाती हैं. पूर्ण विकसित सूंड़ी गहरे नारंगी या काले रंग की होती है, जिस के शरीर पर चारों तरफ  घने बाल होते हैं. यह पौधे की पत्तियों की निचली सतह से क्लोरोफिल खा जाती है. नतीजतन पत्तियां जाल सी दिखाई देती हैं.

रोकथाम

* पहली अवस्था की सूंड़ी दिखाई देते ही एसओएनपीवी की 250 एलई या  3 ग 1012 पीओबी प्रति हेक्टेयर की दर से 7-8 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

* फसल में फालिडाल धूल 2 फीसदी का 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* स्पाइनोसैड 45 एससी, इंडोक्सकार्ब 14.5 एससी व थायोमेंक्जाम 70 डब्ल्यूएससी की 1 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर की दर से इस्तेमाल करें.

धान का पीला तना बेधक : मादा गुच्छों में 100 से 200 तक अंडे देती है. सूंड़ी तने में छेद कर के अंदर घुस जाती है और अंदर ही अंदर खा कर नुकसान करती रहती है. अगर कीट का हमला फसल की बढ़वार की अवस्था पर होता है, तो पौधे का नया बढ़ने वाला भाग (बीच की पत्ती) सूख जाता है, जिसे मृत गोभ कहते हैं. इस गोभ को आसानी से बाहर खींचा जा सकता है. फसल की बाली अवस्था में हमला होने पर कुछ पौधों की बालियां अंदर ही अंदर सूख जाती हैं और बाहर नहीं निकलती हैं. जब पौधों में बालियां निकलने के बाद कीट का हमला होता है, तब बालियां सूख कर सफेद दिखाई देती हैं और उन में दाने नहीं पड़ते हैं. इन्हें सफेद बाली (व्हाइट ईयर हेड) कहते हैं.

रोकथाम

* खेत में 20 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं ताकि तना छेदक के प्रौढ़ नर ट्रैप में इकट्ठे हो कर मरते रहें.

* रोपाई के 1 महीने बाद या तना छेदक के अंडे दिखाई देने पर ट्राईकोग्रामा जेपोनिकम के 1,00,000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राईकोकार्ड लगाना चाहिए. इस प्रक्रिया को 5-6 बार 8-10 दिनों के अंतर पर दोहराना चाहिए.

मक्के का गुलाबी तना बेधक : इस कीट की सूंड़ी जमीन के पास तने में घुस कर पिथ खाती है, जिस से बीच की पत्ती कट जाती हैं. पत्ती पीली पड़ कर मृत केंद्र बनाती है और बाहर खींचने पर अलग हो कर निकल जाती है. जिस स्थान यह सूंड़ी घुसती है, वहां इस का मल इकट्ठा हो जाता है. इस का प्यूपा तने के अंदर बनता है. प्यूपा में बदल कर पहले सूंड़ी तने में छेद बनाती है. यह छेद वयस्क पतंगों के बाहर निकलने के लिए होता है. इस कीट का प्रकोप रबी व बसंत के मौसम में बोए जाने वाले मक्के में अधिक होता है.

रोकथाम

* बोआई के समय कार्बोफ्यूरान 3 जी को 33 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं.

* ट्राइकोकार्ड (ट्राइकोकार्ड कीलोनिस/जेपोनिकम ) अंड परजीवी के 75000-1,00,000 प्यूपे प्रति हेक्टेयर की दर से 10 दिनों के अंतराल में छोड़ने चाहिए.

* ज्यादा प्रकोप होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, सायपरमेथ्रिन 10 ईसी को प्रति लीटर पानी की दर से मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 20 दिनों के अंतराल पर 2-4 बार छिड़काव करें.

Kharif Crops

गन्ने का जड़ बेघक : इस की मादा रात में पत्तियों के निचले भाग पर व तनों पर हलके पीले रंग के चपटे अंडे देती है. सूंड़ी पौधे के जमीन के अंदर वाले भाग पर आक्रमण कर के घुसती है, यह पौधों को छोटी अवस्था में ही नुकसान पहुंचाती है, जिस से केंद्रीय पर्णचक्र सूख जाता है. मृत केंद्र को खींचा जाए तो नीचे से पूरा पौधा टूट जाता है. यही इस की पहचान है. बाहर से सूंड़ी के घुसने का निशान नहीं दिखता. तने पर लिपटी पत्ती पर अंदर की ओर खाए जाने का कोई निशान नहीं पाया जाता है. ग्रसित पौधों की सूखी मध्य कलिका आसानी से खींची नहीं जा सकती व उस से किसी तरह की बदबू भी नहीं आती. इस के द्वारा सर्वाधिक नुकसान मई से जुलाई के दौरान होता है.

गन्ने का अगोला चोटी बेधक  : इस कीट का पतंगा सफेद रंग का होता है. मादा पत्ती के नीचे की तरफ अंडे देती है. अंडा फूटने के बाद सूंड़ी पहले पत्ती में मोटे सिरे पर छेद कर के खाते हुए बढ़वार बिंदु तक पहुंच जाती है. फिर सूंड़ी अगोला झुंड के बीच आक्रमण करती है. अगोला के बीच मे ‘मृत गोभ’ (डेड हर्ट) बन जाता है. मृत गोभ को तोड़ा जाए तो उस से बदबू आती है. जुलाई में तीसरी पीढ़ी द्वारा आक्रमण होने पर बढ़वार रुक जाती है और बराबर से छोटीछोटी शाखएं निकलती हैं, जिन्हें ‘बंची टाप’ कहते हैं, बंची टाप तीसरीचौथी पीढ़ी में पाया जाता है. इस से पौधों की बढ़वार रुक जाती है और पैदावार कम मिलती है. इस कीट का हमला मार्च से शुरू हो कर नवंबर तक रहता है. इस की तीसरी पीढ़ी सब से ज्यादा नुकसान पहुंचाती है.

गन्ने के बोरर कीटों की रोकथाम

* ट्राइकोकार्ड (ट्राइकोकार्ड कीलोनिस/जेपोनिकम ) अंड परजीवी के 75000-1,00,000 प्यूपे प्रति हेक्टयर की दर से 10 दिनों के अंतराल में छोड़ने चाहिए.

* जरूरत होने पर क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी की 4-5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टयर की दर से बोआई के 30-40 दिनों बाद सिंचाई से पहले इस्तेमाल करें.

* गन्ने में बोरर कीटों के लिए कोराजन की 0.5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* प्रकाश प्रपंच व फिरोमोन ट्रैप (5-6 फिरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से) का इस्तेमाल करें.

* नीम उत्पादित कीट रोग विष जैसे एनकेई या नीम गोल्ड की 5 फीसदी मात्रा का इस्तेमाल करें.

* ज्यादा हमला होने पर  फिपरोनिल 5 एससी (रिजंट) या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 1 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर, क्विनालफास 25 ईसी की 2 मिलीलीटर मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से कीटनाशियों को मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से 20 दिनों के अंतराल पर 2-4 बार छिड़काव करें.

मूंगफली का पर्ण सुरंगक : यह छोटे आकार का करीब 1 सेंटीमीटर लंबा कीट होता है. यह पत्तियों में सुरंग बनाता है. विकसित सूंडि़यां रेशमी धागों द्वारा पत्तियों को आपस में जोड़ कर उन के अंदर प्यूपे में बदल जाती हैं. इस कीट की सूंड़ी अवस्था नुकसान पहुंचाती है. इस की सूंडि़यां पत्तियों में सुरंग बना कर पत्तियों को जालीनुमा बना देती हैं, जिस से पौधों का विकास रुक जाता है.

रोकथाम

* मेलाथियान धूल 5 फीसदी की 25-30 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टयर के हिसाब से बुरकाव करें.

* जरूरत होने पर थायोमिथाक्सोम 25 डब्लूपी 100जी या डाईमैथोएट 30 ईसी का 1.0-1.5 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 1.0 मिलीलीटर का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

गंधी बग : इस कीट के प्रौढ़ लगभग 15 मिलीमीटर लंबे पीलापन लिए हरे रंग के होते हैं. बच्चे हरे रंग के होते हैं. वयस्क कीट दानों से रस चूस लेते हैं, फलस्वरूप बाली दानों से खाली रह जाती है. इस कीट के हमले से दानों के टूटने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है. इस कीट से एक खास तरह की गंध आती है, जिस से इस कीट को गंधी बग कहते हैं.

रोकथाम

* 1.5 किलोग्राम लहसुन को पीस कर रात भर पानी में भिगो दें. सुबह पानी को छान कर उस में 250 ग्राम गुड़ व 200 ग्राम कपड़े धोने का साबुन मिला दें. पानी की मात्रा को 150 लीटर कर के उस का छिड़काव फसल पर करें. ऐसा करने से गंधी बग कीट दानों से रस नहीं चूस पाएगा.

* नीम की निबोली की 5 किलोग्राम मात्रा कूटपीस कर रात भर 25 लीटर पानी में भिगोएं. निबोली का सफेद रस निकाल कर उसी पानी में डालें. पानी में 250 ग्राम कपड़े धोने का साबुन मिला कर पानी को छान लें व इस पानी की मात्रा को 100 लीटर कर के फसल पर छिड़काव करें.

* बिवेरिया बेसियाना की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 500-600 लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करें.

* अगर कीट आर्थिक क्षति स्तर पर पहुंच जाए तो मेलाथियान 5 फीसदी धूल का बुरवाव 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से शाम के समय करें.

माहूं : माहूं के अर्भक (निम्फ) छोटे व काले होते हैं और झुंड में पाए जाते हैं. इस के निम्फ  व वयस्क पत्ती, फूल व डंठल से रस चूसते हैं, जिस से पत्तियां किनारों से मुड़ जाती हैं. ये चिपचिपा मधुरस पदार्थ अपने शरीर से बाहर निकालते हैं, जिस से पत्तियों के ऊपर काली पनपती फफूंद देखी जा सकती है. इस से पौधों की प्रकाश संश्लेषण क्रिया पर असर पड़ता है.

रोकथाम

* माहूं का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें, जिस से माहूं ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं.

* परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50,000-10,0000 अंडे या सूंडि़यां प्रति हेक्टयर की दर से छोड़ें.

* नीम का अर्क 5 फीसदी या 1.25 लीटर नीम का तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें.

* जरूरत होने पर डाईमैथोएट 30 ईसी की 1.0-1.5 लीटर मात्रा या इमिडाक्लोप्रिड की 1.0 लीटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

सफेद मक्खी : इस के निम्फ धुंधले सफेद होते हैं. इन के शरीर पर सफेद मोमीय पर्त पाई जाती है. निम्फ व वयस्क पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में पाए जाते हैं, जो पत्तियों की कोशिकाओं से रस चूसते हैं. फलस्वरुप पत्तियां कमजोर हो कर गिर जाती हैं. ये मोजेक रोग फैलाती हैं.

रोकथाम

* पीले चिपचिपे 12 ट्रैप प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

* क्राइसोपरला कार्निया के 50,000 -10,0000 अंडे प्रति हेक्टयर की दर से छोड़ें.

* ग्रसित पौधों पर नीम का तेल 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या मछली रोसिन सोप 25 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

* कीटों की संख्या ऊपर जाते ही अगेती अवस्था में मिथाइल डिमेटान 25 ईसी का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

* मध्य या बाद की दशा में थायोमिथाक्सोम 25 डब्लूपी 100 जी या एक्टमप्रिड 20 एसपी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

जैसिड्स : इन की मादा निचले किनारे पर पत्ती की शिराओं के अंदर पीले से अंडे देती है. ये अंडे 6-10 दिनों में फूटते हैं. बच्चे कीट 7 से 9 दिनों के बाद वयस्क बन जाते हैं. पंखदार वयस्क 2 से 3 हफ्ते तक जीवित रहते हैं. इस के बच्चे व वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों के किनारे मुड़ जाते हैं और लालभूरे हो जाते हैं. पत्तियां सूख कर गिर जाती हैं.

रोकथाम

* क्राइसोपरला कार्निया परभक्षी के 50,000 अंडे प्रति हेक्टयर की दर से छोड़ें.

* जरूरत पड़ने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल का छिड़काव करें.

तेला थ्रिप्स : ये छोटे व काले रंग के कीट पत्तियों को कुरेद कर खाते हैं. वयस्क कीट भूरे रंग का कटे पंख वाला होता है. इस की इल्ली व वयस्क पत्तियों की सतह फाड़ कर रस चूसते हैं. इस से पत्तियां मुड़ जाती हैं और सूख कर नीचे गिर जाती हैं.

रोकथाम

* बीजों को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्लूएस 7 ग्राम प्रति किलोग्राम से उपचारित करने से फसल 8 हफ्ते तक सुरक्षित रहती है.

* क्राइसोपरला कार्निया परभक्षी के 50,000-75,000 अंडे प्रति हेक्टयर की दर से छोड़ें.

* जरूरत पड़ने पर थायोमिथाक्सोम 25 डब्लूपी 100 जी या डाईमैथोएट 30 ईसी का 1.0-1.5 लीटर या मेटासिसटाक्स का 1.5-2.0 लीटर प्रति हेक्टयर की दर से छिड़काव करें.

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