सरसों भारत की एक अहम तिलहनी फसल है. यह फसल ज्यादातर पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में उगाई जाती है. राजस्थान में सरसों आमतौर पर सभी जिलों में पैदा की जाती है, लेकिन जोधपुर, अलवर, भरतपुर, सवाई माधोपुर, पाली, जालौर व श्रीगंगानगर जिलों में इस की फसल बडे़ पैमाने में ली जाती है.
सरसों को अनिश्चित फसल माना जाता है, क्योंकि यह कीटनाशक जीवों, अंगमारी रोगों और जलवायु के हालात से प्रभावित होती है. इस पर कई तरह की कवक यानी फफूंदी और कीट हमला करते हैं. ये कवक और कीडे़ पूरी फसल को खराब कर सकते हैं.
सरसों की फसल में दोमट औैर हलकी मिट्टी मुफीद होती है औैर इस की प्रति हेक्टेयर इलाके में बोआई के लिए 4 से 5 किलोग्राम बीज सही रहता है. सरसों में पौध संरक्षण के लिए बोआई के पहले बीजों को मैंकोजेब 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से उपचारित कर लेना फायदेमंद रहता है.
बीजों की बोआई आमतौर पर सितंबर से अक्तूबर माह के अंत तक कर देनी चाहिए, क्योंकि देरी से बोआई करने पर उपज में भारी कमी के साथ चैंपा व सफेद रोली का प्रकोप भी अधिक होता है.
बोआई के 20-25 दिन बाद निराईगुड़ाई कर के खरपतवार को खत्म करना सही रहता है. इन सभी उपचारों से प्राथमिक तौर पर सरसों की फसल को कीड़ों से बचाया जा सकता है, परंतु फिर भी इलाके व जलवायु के आधार पर कई तरह के कवक और कीडे़ सरसों की फसल पर हमला करते हैं, जिन का उपचार बहुत जरूरी है.
सरसों की फसल पर कई प्रकार के कीट हमला करते हैं. आरा मक्खी (मस्टर्ड या फ्लाई) और चित्रित मत्कुण (पेंटेड बग) सरसों की फसल में अंकुरण के 7 से 10 दिन में ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं.
यह कीट, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘एथोलिया प्रोक्सिया’ कहते हैं, पत्ती पर हमला कर इस के पूरे हिस्सों में छेद कर देता है और धीरेधीरे पत्तियों में महज शिराएं यानी अंदरूनी ढांचा ही बचा रहता है.
इस की रोकथाम करने के लिए मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी) या मैलाथियान (5 फीसदी) या कार्बारिल (5 फीसदी) चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सुबह या शाम को छिड़कना फायदेमंद रहता है.
सरसों पर लगने वाला दूसरा कीट डायमंड बैक मोथ या हीरक तितली है. इस की रोकथाम के लिए क्विनालफास (25 ईसी) एक लिटर प्रति हेक्टेयर के अनुसार छिड़कना फायदेमंद रहता है.
सरसों की फसल को ज्यादा प्रभावित करने वाला कीट मोयला (एफिड्स) है, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘लैपाफिस हरिसीमी’ कहते हैं. इस कीट के निम्फ और व्यस्क दोनों ही पत्ती, तना व फली सहित पूरे पादप पर हमला कर उस का रस चूसते हैं. इस कीट के हमले से धीरेधीरे पौधा सूख जाता है और कभीकभी पूरी फसल ही खराब हो जाती है.
मोयला कीट की उचित रोकथाम के लिए मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी) या कार्बारिल (5 फीसदी) या मैलाथियान (5 फीसदी) चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना फायदेमंद रहता है. इस के स्थान पर मैलाथियान (50 ईसी) 1250 मिलीलिटर या फास्फोमिडान (85 डब्ल्यूएससी) 250 मिलीलिटर या डाईमिथोएट (30 ईसी) 875 मिलीलिटर या फार्मोथियान (25 ईसी) प्रति लिटर या कार्बारिल (50 फीसदी) घुलनशील ढाई किलोग्राम या इंडोसल्फान (35 ईसी) प्रति 250 मिलीलिटर या क्लोरोपायरीफास (प्रति 20 ईसी) 600 मिलीलिटर पानी में मिला कर छिड़काव करना फायदेमंद रहता है.
सरसों पर दीमक और जमीन के दूसरे कीडे़ जैसे लीफ माइनर भी हमला करते हैं. इस के मैगट पत्ती को खा जाते हैं, जबकि दीमक पूरे पौधे को खोखला कर देती है.
इस की रोकथाम करने के लिए क्लोरोपायरीफास (20 ईसी) 600 मिलीलिटर पानी में मिला कर खेत में बिखेर कर जुताई करना फायदेमंद रहता है.
फसलों को कीट रहित रखने के लिए खड़ी फसल में अंकुरण के 7 से 10 दिन बाद कीटनाशकों का पहला छिड़काव और दिसंबर के अंतिम सप्ताह में दूसरा छिड़काव करना चाहिए.
आमतौर पर एफिड्स दिसंबर के अंतिम सप्ताह में हमला शुरू कर देते हैं. इस तरह के छिड़काव में मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी) या मैलाथियान (5 फीसदी) या कार्बारिल (5 फीसदी) चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह या शाम के समय छिड़काव करना फायदेमंद रहता है.
इस के स्थान पर मैलाथियान (50 ईसी) प्रति 250 मिलीलिटर या डाईमिथोएट (30 ईसी) 875 मिलीलिटर या फास्फोमिडान (85 डब्ल्यूएससी) 250 मिलीलिटर या क्लोरोपायरीफास (20 ईसी) 600 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर पानी में मिला कर छिड़काव करना भी सही रहता है.
दूसरे छिड़काव के 15 दिन बाद या फूल आने के बाद मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी) या कार्बारिल (5 फीसदी) या मैलाथियान (5 फीसदी) चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुसार छिड़़काव करना फायदेमंद रहता है. इस के स्थान पर मैलाथियान (50 ईसी) प्रति 250 मिलीलिटर या डाईमिथोएट (30 ईसी) 875 मिलीलिटर या फिर फार्मोथियान (25 ईसी) प्रति लिटर या कार्बारिल 50 फीसदी घुलनशील चूर्ण 2.5 किलोग्राम या फास्फोमिडोन (85 डब्ल्यूएससी) 250 एमएल या इंडोसल्फान (35 ईसी) 1.25 लिटर या क्लोरोपायरीफास (20 ईसी) 600 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर पानी में मिला कर छिड़काव करना फायदेमंद रहता है.
यदि तीसरे छिड़काव के बाद भी एफिड्स (चेंपा) का प्रकोप रहे, तो एक बार फिर से छिड़काव करना सही रहता है. एफिड्स के अच्छे नियंत्रण के लिए 10 कतारों के बाद चने की 2 कतार बोना फायदेमंद रहता है और इस से छिड़काव में भी सुविधा रहती है.
सरसों पर अनेक प्रकार की फफूंदी भी रोग फैलाती है, जिस से बहुत नुकसान होता है. ‘आल्टरनेरिया ब्रेसिकी’ नामक कवक से अंगमारी रोग लगता है. इस रोग में पत्तियों पर भूरी चित्तियां दिखाई देती हैं, जो बाद में काली पड़ जाती हैं.
इसी तरह ‘एल्बूगो कैंडिडा’ नामक फफूंद से भी श्वेत किट्ट रोग होता है. सरसों में तिलासिता (डाउनी मिल्ड्यू), झुलसा (ब्लाइट) और सफेद रोली का भी बहुत प्रकोप रहता है.
इन रोगों में लक्षण प्रकट होते ही 2 किग्रा मैंकोजेब या फिर ढाई किलोग्राम जिनेब प्रति हेक्टेयर पानी में मिला कर छिड़काव करना फायदेमंद रहता है. रोग के अधिक होने पर 20 दिन बाद फिर छिड़काव करना अच्छा रहता है.
सरसों की फसल में छाछया रोग के लक्षण दिखाई देने पर 20 किलोग्राम गंधक का चूर्ण प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना सही रहता है. इस के स्थान पर ढाई किलोग्राम घुलनशील गंधक (80 फीसदी) या 750 मिलीलिटर डाईनोकेप (कैराथेन 30 ईसी) पानी में मिला कर छिड़काव करना फायदेमंद रहता है. कुछ खरपतवार भी सरसों की फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, जिन्हें उखाड़ कर नष्ट करना अच्छा रहता है.
सरसों की फसल में कीट नियंत्रण के लिए कीट प्रतिरोधी और रोग प्रतिरोधी किस्मों की बोआई करना काफी फायदेमंद रहता है. पीआर 15 (क्रांति) तुलासिता रोग और सफेद रोली रोधक किस्म है.
इसी तरह मोयला कीट के प्रकोप को कम करने या उस से बचाव के लिए पीआर 45 और आरएच 30 किस्में द्वारा खड़ी फसल में छिड़काव द्वारा खरपतवारों को खत्म कर अच्छी पैदावार ली जा सकती है. साथ ही, खतरनाक कीड़ों से फसल की हिफाजत भी की जा सकती है.