इस समय तापमान में उतारचढ़ाव, छाई हुई बदली एवं बूंदाबांदी होने के कारण सरसों की फसल पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. इस फसल की खेती करने वाले किसान ध्यान दें कि इन दिनों सरसों में माहू यानी चेपा कीट के मुख्य रूप से लगने का ज्यादा डर है. इस कीट के शिशु एवं प्रौढ़ पीलापन लिए हुए हरे रंग के होते हैं, जो झुंड के रूप में पौधों की पत्तियों, फूलों, डंठलों, फलियों में रहते हैं.
यह कीट छोटा, कोमल शरीर वाला और हरे मटमैले भूरे रंग का होता है. बादल घिरे रहने पर इस कीट का प्रकोप तेजी से होता है. इस की रोकथाम के लिए कीटग्रस्त पत्तियों को प्रकोप की शुरुआती अवस्था में ही तोड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
सरसों के नाशीजीवों के प्राकृतिक शत्रुओं जैसे इंद्रगोप भृंग, क्राईसोपा, सिरफिड फ्लाई का फसल वातावरण में संरक्षण करें. पीला स्टिकी ट्रेप 30 प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं. इस पर माहू कीट आकर्षित हो कर चिपक जाते हैं. एजाडिरेक्टीन (नीम तेल) 0.15 फीसदी 2.5 लिटर या इमिडाक्लोप्रिड 200 मिलीलिटर को 600-700 लिटर पानी मे घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से फसल को कीटों से सुरक्षित रखा जा सकता है.
सरसों में झुलसा रोग का प्रकोप ज्यादा हो सकता है. इस रोग में पत्तियों और फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिन में गोल छल्ले केवल पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं, जिस से पूरी पत्ती झुलस जाती है.
इस रोग पर नियंत्रण करने के लिए 2 किलोग्राम मैंकोजेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी या 2 किलोग्राम जीरम 80 फीसदी डब्ल्यूपी या 2 किलोग्राम जिनेब 75 फीसदी डब्ल्यूपी या 3 किलोग्राम कौपर औक्सीक्लोराइड 50 फीसदी डब्ल्यूपी को 600-700 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
पहला छिड़काव रोग का लक्षण दिखाई देने पर और दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 15 से 20 दिनों के अंतराल पर करें. अधिकतम 4 से 5 बार छिड़काव करने से फसल को सुरक्षित रखा जा सकता है.