गन्ना लंबी अवधि वाली फसल है, जिस के कारण इस फसल में रोगों की संभावनाएं बनी रहती हैं. गन्ना फसल में ये रोग अपने क्षेत्रानुसार अलगअलग भी हो सकते हैं, इसलिए समय रहते रोगों का निदान जरूरी है, तभी हम अच्छी उपज भी ले सकेंगे.
लाल सड़न रोग ऐसे पहचानें लक्षण
* लाल सड़न एक फफूंदजनित रोग है. इस रोग के लक्षण अप्रैल से जून महीने तक पत्तियों के निचले भाग (लीफ शीथ के पास) से ऊपर की तरफ मध्य सिरे पर लाल रंग के धब्बे मोतियों की माला जैसे दिखते हैं.
* जुलाईअगस्त महीने मेें ग्रसित गन्ने की अगोले की तीसरी से चौथी पत्ती एक किनारे या दोनों किनारों से सूखना शुरू हो जाती है. नतीजतन, धीरेधीरे पूरा अगोला सूख जाता है.
* तने के अंदर का रंग लाल होने के साथ ही उस पर सफेद धब्बे भी दिखाई देते हैं. तना अंदर से सूंघने पर सिरके या अल्कोहल जैसी गंध आती है.
प्रबंधन के उपाय
* किसान अवमुक्त रोग रोधी गन्ना किस्म की ही बोआई करें.
* लाल सड़न रोग से अधिक प्रभावित क्षेत्रों में किस्म को. 0238 की बोआई न करें. इस के स्थान पर अन्य स्वीकृत गन्ना किस्म की रोगरहित नर्सरी तैयार कर बोआई का काम करें.
* बोआई के पहले कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को 0.1 फीसदी कार्बंडजिम 50 डब्ल्यूपी या थियोफनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी के साथ रासायनिक शोधन जरूर करें.
* मृदा का जैविक शोधन मुख्यत: ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास कल्चर से 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 100-200 किलोग्राम कंपोस्ट खाद में 20-25 फीसदी नमी के साथ मिला कर जरूर करें.
* बोआई के पहले कटे हुए गन्ने के टुकड़ों को सेट ट्रीटमैंट डिवाइस (0.1 फीसदी कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी या थियोफनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी, 200 एचजीएमएम पर 15 मिनट) या हौट वाटर ट्रीटमैंट (52 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 2 घंटे) या एमएचएटी (54 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान, 95-99 फीसदी आर्द्रता पर ढाई घंटे) के साथ शोधन जरूर करें.
* अप्रैल से जून माह तक अपने खेत की लगातार निगरानी करते रहें. पत्तियों के मध्य सिरे के नीचे रुद्राक्ष/मोती के माला जैसे धब्बे के आधार पर पहचान कर पौधों को जड़ सहित निकाल कर नष्ट कर दें और गड्ढे में 10 से 20 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर डाल कर ढक दें या 0.2 फीसदी थियोफनेट मिथाइल के घोल की ड्रैचिंग करें.
* रोग दिखाई देने पर ऊपर बताई गई प्रक्रिया जुलाईअगस्त महीने में भी लगातार जारी रखें.
* अप्रैल से जून महीने तक 0.1 फीसदी थियोफनेट मिथाइल 70 डब्ल्यूपी या कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी का पर्णीय छिड़काव करें.
* ज्यादा वर्षा होने पर लाल सड़न रोग से संक्रमित खेत का पानी किसी दूसरे खेत में रिसाव को रोकने के लिए उचित मेंड़ बनाएं.
* लाल सड़न रोग से प्रभावित क्षेत्रों में 10 फीसदी संक्रमण से ज्यादा वाले रोगग्रस्त फसल की पेड़ी न लें.
* लाल सड़न रोग से संक्रमित खेत में तुरंत कोई अन्य रोग रोधी गन्ना किस्म की बोआई कम से कम एक साल तक न करें और सुविधानुसार गेहूं, धान, हरी खाद या उपयुक्त फसलों के साथ फसलचक्र अपना कर ही बोआई करें.
* संक्रमित गन्ने की कटाई के बाद उस अवशेषों को खेत से पूरी तरह बाहर कर के नष्ट कर दें और गहरी जुताई कर फसलचक्र अपनाएं.
* अन्य प्रदेशों से बीज गन्ना लाने से पहले वैज्ञानिकों/शोध संस्थानों से अनुशंसा प्राप्त करनी चाहिए.
पोक्का बोइंग रोग ऐसे पहचानें लक्षण
* यह फफूंदीजनित रोग है.
* इस रोग के स्पष्ट लक्षण विशेष रूप से जुलाई से सितंबर महीने (वर्षाकाल) तक प्रतीत होते हैं.
* पत्रफलक के पास की पत्तियों के ऊपरी व निचले भाग पर सिकुड़न के साथ सफेद धब्बे दिखाई देते हैं.
* चोटी की कोमल पत्तियां मुरझा कर काली सी पड़ जाती हैं और पत्ती का ऊपरी भाग सड़ कर गिर जाता है.
* ग्रसित अगोला के ठीक नीचे की पोरियों की संख्या अधिक व छोटी हो जाती हैं. पोरियों पर चाकू से कटे जैसे निशान भी दिखाई देते हैं.
प्रबंधन के उपाय
* किसी एक फफूंदीनाशक का घोल बना कर 15 दिन के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें.
* इस रोग के लक्षण प्रतीत होते ही कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी का 0.1 फीसदी (400 ग्राम फफूंदीनाशक) का 400 लिटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें.
* कौपर औक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी के 0.2 फीसदी (800 ग्राम फफूंदीनाशक) का 400 लिटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़कें.
पत्ती की लालधारी व बैक्टीरियल टौप रौट रोग
ऐसे पहचानें लक्षण
* यह बैक्टीरियाजनित रोग है और इस रोग का असर जून से वर्षा ऋतु के अंत तक रहता है.
* पत्ती के मध्यशिरा के समानांतर गहरे लाल रंग की जलीय धारियां दिखाई देती हैं.
* इस के संक्रमण से गन्ने के अगोले के बीच की पत्तियां सूखने लगती हैं और बाद में पूरा अगोला ही सूख जाता है.
* पौधे के शिखर कलिका से तने का भीतरी भाग ऊपर से नीचे की ओर सड़ जाता है.
* गूदे के सड़ने से बहुत ज्यादा बदबू आती है और तरल पदार्थ सा प्रतीत होता है.
प्रबंधन के उपाय
* यांत्रिक प्रबंधन में संक्रमित पौधों को काट कर खेत से निकाल दें.
* रासायनिक प्रबंधन के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड 50 डब्ल्यूपी का 0.2 फीसदी (800 ग्राम फफूंदीनाशक) और स्ट्रैप्टोसाइक्लिन का 0.01 फीसदी (40 ग्राम दवा) का 400 लिटर पानी के घोल के साथ प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें.
घासीय प्ररोह रोग
ऐसे पहचानें लक्षण
* यह रोग फाइटोप्लाज्मा द्वारा संक्रमित होता है. इस का प्रभाव वर्षाकाल में अधिक होता है.
* रोगी पौधों की पत्तियों का रंग सफेद हो जाता है.
* थानों की वृद्धि रुक जाती है. गन्ने बौने और पतले हो जाते हैं और ब्यांत बढ़ जाने से पूरा थान झाड़ीनुमा हो जाता है.
प्रबंधन के उपाय
* ग्रसित पौधों को खेत से निकाल कर दूर नष्ट करें.
* आर्द्र वायु उष्मोपचार शोधन तकनीकी के अंतर्गत बीज गन्ने को 54 डिगरी सैंटीग्रेड वायु का तापमान, 95-99 फीसदी आर्द्रता पर ढाई घंटे तक उपचारित करें.
* जल उष्मोपचार से बीज गन्ने को 52 डिगरी सैंटीग्रेड तापमान पर 2 घंटे के लिए शोधन करें.
* रोग की अधिकता की दशा में वाहक कीट के नियंत्रण के लिए कीटनाशक इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 200 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर का 625 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
कंडुआ रोग
ऐसे पहचानें लक्षण
* यह फफूंदीजनित रोग है.
* रोगी पौधों की पत्तियां छोटी, नुकीली और पंखे के आकार की होती जाती हैं. गन्ना लंबा व पतला हो जाता है.
* गन्ने के अगोले के ऊपरी भाग से काला कोड़ा निकलता है, जो कि सफेद पतली झिल्ली द्वारा ढका होता है.
प्रबंधन के उपाय
* बोआई के समय गन्ने के टुकड़ों को प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी या कार्बंडाजिम 50 डब्ल्यूपी के 0.1 फीसदी घोल में 5-10 मिनट तक उपचारित करें.
* ग्रसित पौधों में बन रहे काले कोड़ों को बोरों से ढक कर खेत से निकाल कर दूर नष्ट करें.
* प्रोपिकोनाजोल 25 ईसी के 0.1 फीसदी घोल का 15 दिनों के अंतराल पर 2 बार छिड़काव करें.
* आर्द्र वायु उष्मोपचार या जल उष्मोपचार से शोधन करें.