सर्दी के मौसम में फसलों को शीतलहर और पाले से बचाना बहुत जरूरी है. इन के प्रकोप से भी फसलों को नुकसान होता है. टमाटर, आलू, मिर्च बैगन, पपीता, केला, मटर व चना आदि का शीतलहर व पाले से सब से ज्यादा 80 से 90 फीसदी तक नुकसान हो सकता है. इस से अरहर में 70 फीसदी, गन्ने में 50 फीसदी और गेहूं व जौ में 10 से 20 फीसदी तक नुकसान हो सकता है.

पाले की वजह से पौधों की पत्तियां व फूल खराब हो कर झड़ जाते हैं. पाले के असर से अधपके फल सिकुड़ जाते हैं और उन में झुर्रियां पड़ जाती हैं. इस से फलियों व बालियों में दाने नहीं बनते हैं और रहे दाने सिकुड़ कर और पतले हो जाते हैं.

रबी की फसलों में फूल निकलने और बालियां या फलियां आने व उन के विकास के वक्त पाला पड़ने की सब से ज्यादा उम्मीद रहती है. उस वक्त किसानों को सावधानी बरत कर फसलों की हिफाजत के तरीके अपनाने चाहिए.

सर्दी के मौसम में जब बहुत ज्यादा ठंड पड़ने लगती है और हवा रुक जाती है, तब रात में पाला पड़ने का खतरा रहता है. किसान पाला गिरने का अंदाजा मौसम से लगा सकते हैं.

सर्दी के दिनों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे और फिर दोपहर बाद अचानक बंद हो जाए और असामान साफ रहे, फिर उस दिन आधी रात से ही हवा रुक जाए, तो पाला पड़ने की आशंका ज्यादा रहती है. रात को खासतौर से तीसरे और चौथे पहर में पाला पड़ने का खतरा रहता है.

बचाव के तरीके

* जिस रात पाला पड़ने की आशंका हो उस रात 12 से 2 बजे के आसपास खेत की उत्तरीपश्चिमी दिशा से आने वाली ठंडी हवा की दिशा में खेत के किनारे पर बोई हुई फसल के आसपास मेंड़ों पर कूड़ाकचरा या घासफूस जला कर धुआं करना चाहिए ताकि खेत में धुआं आने से वातावरण में गरमी आ जाए. सुविधा के लिए मेंड़ पर 10 से 20 फुट के अंतर पर कूड़ेकरकट के ढेर लगा कर धुआं करें.

* जब पाला पड़ने की आशंका हो, तब खेत में सिंचाई करनी चाहिए. इस से जमीन में काफी देर तक गरमी रहती है, इस वजह से खेत का तापक्रम एकदम कम नहीं होता है. इस तरह से नमी होने पर शीतलहर व पाले से नुकसान का खतरा कम रहता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक सर्दी में फसल में सिंचाई करने का 0.5 से 2 डिगरी सेंटीग्रेड तक तापमान बढ़ जाता है.

* जिन दिनों पाला पड़ने की आशंका हो उन दिनों फसलों पर गंधक के तेजाब का 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करना चाहिए. इस के लिए 1 लीटर गंधक के तेजाब को 1000 लीटर पानी में घोल कर 1 हेक्टेयर क्षेत्र में प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़कें. ध्यान रखें कि पौधों पर घोल की फुहार अच्छी तरह लगे. छिड़काव का असर 2 हफ्ते तक रहता है. यदि इस के बाद भी शीतलहर व पाले की आशंका बनी रहे, तो 15 दिनों के अंतर से छिड़काव करते रहें.

* सरसों, गेहूं, चना, आलू, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने के लिए गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होता है, बल्कि पौधों में लौह तत्त्व की जैविक और रासायनिक सक्रियता भी बढ़ जाती है, जो पौधों को रोगों से लड़ने की कूवत देती है और फसल को जल्दी पकाने में मददगार होती है.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...