धान की खेती हमारे देश में तकरीबन 42.3 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में होती है. देश में खाद्यान्न उत्पादन का तकरीबन 42 फीसदी धान है और देश में तकरीबन 75 फीसदी लोगों का भोजन भी चावल ही है.
धान खरीफ की फसल है. जिस तरह धान की फसल लेने के लिए नम व गरम आबोहवा की जरूरत होती है, ठीक उसी तरह से कीट की बढ़वार और प्रजनन के लिए भी इसी तरह की जलवायु की जरूरत होती है. इसी वजह से धान की फसल पर अनेक कीटों का हमला होता है.
यही वजह है कि फसल को कम नुकसान पहुंचाने वाले कीट भी नुकसान पहुंचाने लगते हैं. कीटों की वजह से धान की फसल में तकरीबन 10-15 फीसदी उत्पादन में कमी आ जाती है.
मुख्य कीट और बचाव
पीला तना बेधक :
इस कीट की मादा के अगले जोड़ी पंख पीले रंग के होते हैं जिन के मध्य में काले रंग का बिंदु होता है. कीड़े के पिछले पंख भूसे के रंग जैसे होते हैं. मादा कीट की उदर की नोक पर भूरे पीले रंग का गुच्छा होता है.
इस कीट की पूरी तरह से विकसित सूंड़ी का रंग पीला सफेद होता है. इस कीड़े के प्रौढ़ रात में घूमते हैं. कीड़े की मादा रात में 7 से 9 बजे के बीच अपने अंडे मुलायम पत्तियों की नोक पर देती है.
मादा गुच्छों में 100 से 200 अंडे देती है. अंडे 7-8 दिन में फूट जाते हैं और उन से सूंडि़यां निकल आती हैं. नवजात सूंड़ी पत्ती की ऊपरी सतह पर चढ़ कर रेशमी धागों के सहारे दूसरे पौधों पर पहुंच जाती है.
शुरुआती अवस्था में इस कीट की सूंड़ी पत्ती के ऊपर धारी सी बना कर खाती है. तकरीबन 1 हफ्ते बाद सूंड़ी तने में छेद कर के अंदर घुस जाती है और नुकसान पहुंचाती है.
इस कीट का प्रकोप फसल की बढ़वार अवस्था में होता है और पौधे का नया बढ़ने वाला भाग यानी बीच की पत्ती वाला भाग सूख जाता है. इसे मृत गोभ कहते हैं. इस गोभ को आसानी से बाहर खींचा जा सकता है.
फसल की बाली में प्रकोप होने पर कुछ पौधों की बालियां अंदर ही अंदर सूख जाती हैं और बाहर नहीं निकलती हैं. पौधों में बालियां निकलने के बाद जब कीट का हमला होता है तब बालियां सूख कर सफेद दिखाई देती हैं और उन में दाने नहीं पड़ते हैं. इन्हें सफेद बाली कहते हैं. इस कीड़े द्वारा नुकसान करने पर फसल के उत्पादन में भारी कमी आ जाती है.
भूरा फुदका :
इस कीड़े का रंग हलका भूरा होता है. आकार पच्चर की तरह होता है. इस कीट की मादा पत्ती की मध्य शिरा के पास खुरच कर या पत्ती के पर्णच्छंद को खुरच कर 250 से ले कर 300 तक समूह में अंडे देती है.
एक समूह में 15-30 अंडे होते हैं. ये अंडे बेलनाकार व सफेद रंग के होते हैं. अनुकूल वातावरण में अंडे 5-8 दिन में फूट जाते हैं. इस कीट के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पौधे के तने से रस को चूस कर फ्लोयम व जाइलम को बंद कर देते हैं.
इस कीट के प्रकोप से पत्तियां सूख कर भूरी हो जाती हैं और फसल की इस अवस्था को फुदका झुलसा रोग कहा जाता है.
इस कीट का प्रकोप अगर फसल की बढ़वार अवस्था में होता है तो पौधों में बालियां नहीं निकलती हैं. अगर कीट का हमला फूल के गुच्छे निकलने के बाद होता है तो ज्यादातर बाली में दाने नहीं बनते हैं. इस कीट के हमले से कभीकभी पूरी फसल चौपट हो जाती है.
सफेद पीठ वाला फुदका :
इस कीड़े के हर अगले पंख के पिछले सिरे के मध्य में एक सुस्पष्ट काला धब्बा होता है जो अगले पंखों के एकसाथ आने पर मिल जाता है. इस कीड़े का पृष्ठक हलके पीले रंग का होता है. इस कीड़े के प्रौढ़ काले भूरे रंग के होते हैं व शरीर का रंग हलका पीला होता है. इस कीड़े के अगले व पिछले पंखों के जोड़ पर सफेद रंग की पट्टी होती है.
एक मादा अपने जीवनकाल में 500-600 अंडे देती है. 5-6 दिन बाद अंडों से शिशु निकलते हैं. शिशु का रंग हलका भूरा होता है. इस कीड़े के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों का रस चूसते हैं. नतीजतन, नीचे की पत्तियां पीली पड़ कर मुरझा जाती हैं और छोटे पौधे सूख जाते हैं, वहीं बड़े पौधे से कल्ले निकलने में देरी हो जाती है. इस वजह से बालियों की तादाद कम रह जाती है और फसल का उत्पादन घट जाता है. इस कीट के प्रकोप से चावल की क्वालिटी भी प्रभावित होती है.
हरा फुदका :
हरा फुदका कीड़े के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पच्चर की शक्ल और हरे रंग के होते हैं. इन के अगले पंखों के ऊपर काले रंग के धब्बे होते हैं और पंखों के बाहरी किनारे भी काले रंग के होते हैं. ये कीड़े रोशनी के प्रति काफी आकर्षित होते हैं. इस कीड़े के शिशु व प्रौढ़ दोनों ही पत्तियों से रस चूसते हैं. इस के चलते पौधे पीले पड़ जाते हैं और छोटे भी रह जाते हैं. जब कीड़े का प्रकोप ज्यादा होता है तो पौधे की पत्तियां भूरे रंग की हो जाती हैं.
यह कीड़ा टुग्रो नामक विषाणु का वाहक है. फसल में इस विषाणु के हमले के फलस्वरूप पौधे पीले पड़ जाते हैं और उन का फुटाव भी कम पड़ जाता है. टुग्रो प्रभावित पौधों से जो बालयां निकलती हैं, उन में दानों की तादाद भी कम होती है.
पत्ती लपेटक :
इस कीड़े का प्रौढ़ भूरे नारंगी रंग का होता है. इस कीट के पंख के किनारे भूरे रंग के होते हैं. इस कीड़े की मादा संगम के बाद 1-2 दिन के बाद अंडे देना शुरू कर देती है. मादा कीड़ा 300 अंडे तक देती है जो हलके पीले रंग के होते हैं. अंडे पत्ती की मध्य शिरा के आसपास दिए जाते हैं. अंडे 6-8 दिन में फूटने लगते हैं. सूंड़ी की अवधि 15-17 दिन रहती है.
इस कीट की प्रथम अवस्था सूंड़ी इधरउधर घूमती है और अपनी लार द्वारा रेशमी धागा बना कर पत्ती के किनारों को जोड़ लेती है और अंदर ही रह कर पत्ती के हरे भाग को खुरचखुरच कर खाती है. इस से पत्ती पर शुरू में सफेद धारी दिखाई देती है और धीरेधीरे ये पत्तियां सूख जाती हैं. पत्तियों के सूखने से पौधा कमजोर पड़ जाता है और फसल का उत्पादन घट जाता है.
गंधी बग : इस कीड़े के प्रौढ़ तकरीबन 15 मिलीमीटर लंबे व पीलापन लिए चपटे हरे रंग के होते हैं. इस कीट के शिशु भी हरे रंग के होते हैं. मादा कीट पत्तियों की निचली सतह पर लाइनों में अंडे देती है. एक मादा अपने जीवनकाल में तकरीबन 150 से 250 अंडे देती है. इस कीड़े को अगस्त से नवंबर माह तक खेतों में देखा जा सकता है.
शुरुआती अवस्था में यह कीट धान के खेतों की मेंड़ों पर उगे खरपतवारों पर अपना जीवनयापन करते हैं. लेकिन जैसे ही सितंबरअक्तूबर माह में जब बालियां दूधिया अवस्था में होती हैं, वयस्क कीड़े दानों से रस चूस लेते हैं. इस के फलस्वरूप बाली दानों से खाली रह जाती है. इस कीड़े के हमले से दानों के टूटने की संभावना बढ़ जाती है. इस कीड़े से एक विशेष प्रकार की गंध आती है. इसी वजह से इस कीड़े को गंधी बग भी कहते हैं.
कीड़ों से बचाव के ऐसे उपाय
कीड़ों के आने का पता लगाएं:
* पीला तना भेदक कीड़े की निगरानी के लिए 5 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं.
* खेत में फूल आने से पहले प्रकाश प्रपंच लगा कर कीड़ों को आकर्षित कर मार देना चाहिए.
* खेत व नर्सरी में कीड़ों की तादाद का पता लगाने के लिए जाल ट्रैप से स्वीप कर पता लगा लें.
कृषि क्रियाएं :
* धान के कीड़े प्रतिरोधी किस्मों की रोपाई और बोआई करनी चाहिए.
* स्वस्थ बीज व स्वस्थ नर्सरी पौधों का इस्तेमाल करना चाहिए.
* फसल में संतुलित मात्रा में उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. ज्यादा यूरिया के इस्तेमाल से पत्ती लपेटक कीट का प्रकोप फसल पर देखा जाता है, जबकि पोटाश का इस्तेमाल करने पर कीड़े का प्रकोप कम होता है.
* गरमी में गहरी जुताई करनी चाहिए, जिस से कीड़े की सुषुप्तावस्था को नष्ट किया जा सके.
* फसल की जल्दी रोपाई कर देनी चाहिए ताकि कीड़े के हमले से पहले पौधे की लंबाई सही बढ़ चुकी हो.
* गाल मिज के हमले के समय खेत में पानी भरा हो तो उसे तुरंत निकाल देना चाहिए क्योंकि पानी भरे खेत में गाल मिज का हमला ज्यादा पाया जाता है.
* मुख्य खेत में पौधे की रोपाई से पहले नर्सरी पौधे की ऊपर की तरफ यानी नोक की तरफ से 1.5-2.0 इंच पत्तियों को काट देना चाहिए ताकि मुख्य खेत में कीट के अंडे न पहुंच पाएं.
* खेत में पक्षियों के बैठने के लिए बांस के डंडे यानी बर्डपर्चर लगा देने चाहिए, ताकि पक्षी डंडों पर बैठ कर कीटों को खाते रहें. फसल में बाली निकलने पर?डंडों को उखाड़ कर रख लेना चाहिए.
यंत्रों से रोकथाम :
* धान के खेत के आसपास मेंड़ों पर खड़े खरपतवारों के साथसाथ घास को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए ताकि खरपतवार और घास पर पनपने वाले कीड़े धान की फसल को नुकसान न पहुंचाएं.
* कीटों के समूह को एकत्र कर नष्ट कर देना चाहिए.
* पीला तना बेधक कीट के प्रकोप से बचने के लिए लंबी बढ़ने वाली प्रजातियों को बांध कर रखना चाहिए.
* पानी के साथसाथ जो सूडि़यां खोल सहित दूसरे खेत में बह कर जाती हैं, उन को रोकना चाहिए.
* फूल आने से पहले खेत में खोल सहित सूंडि़यों को रस्सी से हिला कर इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए.
व्यावहारिक विधि
* पीला तना बेधक कीट के प्रकोप से बचने के लिए खेत में 20 फैरोमौन ट्रैप प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लगाएं ताकि तना बेधक कीट के प्रौढ़ नर ट्रैप में इकट्ठा हो कर मरते रहें. पौधों की रोपाई के 20 दिन बाद और 10-12 दिन बाद ल्यूर को बदलते रहना चाहिए.
जैविक विधि द्वारा रोकथाम
* सूंड़ी परजीवी प्लेटीगेस्टर ओराइजी का इस्तेमाल गाल मिज के प्रकोप वाली फसल में करना चाहिए.
* भूरा फुदका कीट के लिए क्रटोरहिनस लिविडिपेनिस 50-75 अंडे प्रति वर्गमीटर के अंतराल पर और 3 परभक्षी मकड़ी लाइकोसा स्यूडोनोलेटा प्रति पौधा खेत में छोड़ना चाहिए.
* 1.5 किलोग्राम लहसुन को पीस कर रातभर पानी में भिगो दें. सुबह पानी को छान कर उस में 250 ग्राम गुड़ और 200 ग्राम कपड़े धोने वाला साबुन मिला दें. पानी की मात्रा को 150 लिटर कर के उस का छिड़काव फसल पर करें. ऐसा करने से गंधी बग दानों से रस नहीं चूस पाएगा.
* अगर फसल के अंदर मित्र जीव जैसे मिरिड बग और तमाम तरह की मकडि़यां नियंत्रण कर रही हैं तो इन का संरक्षण करना चाहिए.
* नीम की निंबोली की 5 किलोग्राम मात्रा कूटपीस कर रातभर 25 लिटर पानी में भिगोएं. निंबोली का सफेद रस निकाल कर उसी पानी में डालें. पानी में 250 ग्राम कपड़े धोने वाला साबुन मिला कर पानी को छान लें और इस पानी की मात्रा को 100 लिटर कर के फसल पर छिड़काव करें.
* बिवेरिया बेसियाना की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 500-600 लिटर पानी में मिला कर छिड़कें.
* फसल रोपने के एक महीने बाद या खेत में तना बेधक कीट के अंडे दिखाई देने पर ट्राईकोग्रामा जपोनिकम के 75000-1,00000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से ट्राइकोकार्ड को काट कर पत्तियों के नीचे लगाना चाहिए. इस प्रक्रिया को 5-6 बार 8-10 दिन के अंतराल पर दोहराना चाहिए.
कीटनाशी द्वारा रोकथाम
* नर्सरी में बोते समय कार्बोफ्यूरान 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से या फोरेट 12.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नर्सरी में डालना चाहिए.
* कीट की तादाद के आधार पर फोलीडाल या कार्बारिल 5 फीसदी धूल का 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव करें.
* यदि तना बेधक कीट का प्रकोप दिखाई दे तो कौरटौप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी की 18 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर के हिसाब से सूखी रेत या राख में मिला कर खेत में बिखेर देनी चाहिए.
* कीटनाशक का प्रयोग करते समय खेत में हलका पानी खड़ा रहना चाहिए. 0.5 मिलीलिटर कोराजन की मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से छिड़कना चाहिए.
* यदि पौधे के प्रति झुंड पर 10 कीट दिखाई दें तो फसल के ऊपर इथोफेनप्रौक्स 20 ईसी की 1 मिलीलिटर या डाईक्लोरोवास 1 मिलीलिटर व वीपीएमसी की 1 मिलीलिटर के मिश्रण को एक लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें या क्विनालफास 25 ईसी (1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से) या इथोफेनप्रौक्स 20 ईसी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल (1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से) का छिड़काव करें.