खरीफ फसल की कटाई और रबी फसल की बोआई के बीच के समय में  तोरिया की खेती ली जाती है. तोरिया शुद्ध और अंतरवर्ती फसल के रूप में भी उगाया जाता है. इस में 42 से 45 फीसदी तक तेल होता है और इस की खली पशुओं के आहार के रूप में काम में लाई जाती है.

तोरिया के उत्पादन में उन्नत विधियां अपनाने पर बढ़ोतरी की जा सकती है. यहां तोरिया की उन्नत तकनीक से खेती कैसे करें का विस्तार से  उल्लेख किया गया है.

तोरिया एक नकदी फसल है. इस की अच्छी किस्मों की बोआई कर के सही मात्रा में खाद डाल कर व समय से कीट और बीमारी पर उचित नियंत्रण करने से पैदावार बढ़ाई जा सकती है.

बीज की मात्रा व बोआई

तोरिया के 4 किलोग्राम बीज (जिन के 1,000 दानों का वजन 4-5 ग्राम हो) या 5-6 किलोग्राम बीज (जिन के 1,000 दानों का वजन 4-5 ग्राम हो) प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित व असिंचित दोनों हालात में बोआई के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं.

बोआई से पहले बीजोें को 2 ग्राम मैंकोजेब या 3 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. इस के बाद सफेद गेरूई व तुलासिता रोगों से बचाव के लिए बीज को 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोआई करें.

पेंटेड बग की रोकथाम के लिए बीजों को एमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोआई करें.

वहीं दूसरी ओर जैविक उर्वरक के रूप में एजोटोबैक्टर 200 ग्राम पीएसबी व माइकोराइजा 200 ग्राम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजों को उपचारित कर के बोआई करनी चाहिए.

जमीन का उपचार

जमीन से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए बायोपेस्टीसाइड्स ट्राइकोडर्मा विरडी 1 फीसदी डब्ल्यूपी या ट्राइकोडर्मा हरजिएनम 2 फीसदी डब्ल्यूपी की 2.5 किलोग्राम मात्रा 60-70 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिला कर बोआई से तकरीबन 10-15 दिन पहले प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डालने से तोरिया के जमीन से होने वाले रोगों की रोकथाम होती है.

बोआई का समय

तोरिया की बोआई सितंबर के पहले पखवाड़े से ले कर सितंबर के अंत तक की जाती है. बोआई में लाइन से लाइन की दूरी 30-40 सैंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सैंटीमीटर व गहराई 5 सैंटीमीटर (असिंचित इलाकोें में बीज की गहराई नमी के हिसाब से) रखनी चाहिए. भवानी प्रजातियों को सितंबर के दूसरे पखवारे में ही बोएं.

खाद व उर्वरक 

तोरिया में रासायनिक खाद, जैविक खाद व जैविक उर्वरक की मिलीजुली मात्रा देनी चाहिए.

सिंचित दशा में 8-10 टन व असिंचित दशा में 4-5 टन अच्छी तरह गोबर की सड़ी खाद के साथसाथ 2.5-3.0 किलोग्राम बाइवेरियाब्रेसियाना को (इस्तेमाल करने से 15-20 दिन पहले नमी वाली जगह में बोरे से ढक कर रखें) इस्तेमाल करने से दीमक और जमीन के अंदर के कीड़ों को काफी हद तक काबू में किया जा सकता है.

अगर मिट्टी में जस्ते की मात्रा 0.6 पीपीएम से कम है, तो अंतिम जुताई के समय तकरीबन 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए. जहां तक तोरिया में संतुलित उर्वरकों के इस्तेमाल करने की बात है, तो मिट्टी की जांच के मुताबिक उर्वरकों को इस्तेमाल करना चाहिए.

मिट्टी की जांच न होने की दशा में सिंचित इलाकों में 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम सल्फर और 2 किलोग्राम बोरान प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डालें.

वहीं दूसरी ओर बारानी इलाकों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस, 30-40 किलोग्राम पोटाश और सल्फर के लिए 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. साथ ही, 5 टन केंचुआ खाद या 10 टन गोबर की सड़ी खाद व 75 फीसदी संतुलित उर्वरक इस्तेमाल करने से 5-10 फीसदी पैदावार में इजाफा होता है.

असिंचित इलाकों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश, 2 किलोग्राम बोरोन प्रति हेक्टेयर करना चाहिए, वहीं सल्फर के लिए 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करना चाहिए.

बारानी इलाकों में उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई के समय देनी चाहिए. फास्फोरस को सिंगल सुपर फास्फेट के जरीए देने पर सल्फर की कमी भी दूर हो जाती है.

यदि डीएपी का इस्तेमाल किया गया हो, तो बोआई से पहले 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर देना चाहिए. सिंचित दशा में नाइट्रोजन की आधी मात्रा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय नाई या चोंगा द्वारा बीज से 2-3 सैंटीमीटर नीचे देना फायदेमंद होता है.

वहीं नाइट्रोजन की बाकी बची हुई मात्रा को पहली सिंचाई के समय बोआई के 25 दिन बाद टौप ड्रैसिंग के समय इस्तेमाल करना चाहिए. फूल आने के वक्त थायोयूरिया के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करने से उपज ज्यादा होती है.

विरलीकरण

तोरिया में बोआई के तकरीबन 15-20 दिनों के अंदर ही घने और कमजोर पौधों को निकाल कर पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सैंटीमीटर कर देना जरूरी है.

सही तौर पर 2.5-3.0 लाख पौध प्रति हेक्टेयर पर या 25-30 पौधे प्रति वर्गमीटर होने से सही उपज मिलती है. साथ ही, तोरिया की खेती के साथ मधुमक्खीपालन काफी फायदेमंद होता है.

खरपतवार नियंत्रण

पौधों की तादाद ज्यादा होने की दशा में बोआई के तकरीबन 15-20 दिनों पर विरलीकरण के साथसाथ खरपतवारों को भी निराई कर के खेत से निकाल देना चाहिए. रासायनिक तरीके से खरपतवारों की रोकथाम के लिए फ्लूक्लोरेलिन की 1.25 लिटर मात्रा पर्याप्त पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई  से पहले जमीन में मिला दें या 0.7 किलोग्राम मात्रा पर्याप्त पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के बाद इस्तेमाल करना चाहिए.

पेंडीमिथेलीन 30 ईसी की 3.30 लिटर मात्रा को बोआई के बाद फौरन बाद छिड़काव करना चाहिए.

वहीं सूखी बोआई की स्थिति में बोआई कर के फ्लूक्लोरेलिन का छिड़काव कर के सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के तकरीबन 20-25 दिन बाद आइसोप्रोट्यूरान की 0.75 किलोग्राम मात्रा का पर्याप्त पानी में घोल बना कर छिड़काव कर सकते हैं.

सिंचाई

पहली सिंचाई बोआई के 30-40 दिनों बाद (फूल आने से पहले) और दूसरी सिंचाई बोआई के 70-80 दिन बाद (फलियां बनने की अवस्था में) करें.

वहीं दूसरी ओर बलुई दोमट मिट्टी में तकरीबन 12 मीटर की दूरी पर नोजल लगा कर फव्वारा सेट 7 घंटे चला कर 2 बार सिंचाई करने पर सतही विधि के बराबर उपज के साथसाथ 40 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है.

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