गांव में आज भी कृषि ही आजीविका का मुख्य साधन है. लगातार हो रहे अनुसंधान और नई किस्मों के आने से कृषि के स्तर में विकास हुआ है, लेकिन अब किसानों को खाद, बीज, दवाइयों, कृषि औजारों, पानी, बिजली आदि पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है.

खेती आज किसान के लिए घाटे का सौदा होती जा रही है, इसलिए इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. भविष्य को ध्यान में रखते हुए, इस को मुनाफे में बदलने की आवश्यकता है.

भारत में कृषि पर सब्सिडी 10 फीसदी से भी कम है. अमेरिका व अन्य देशों में कृषि सब्सिडी भारत की अपेक्षा ज्यादा है. वहां उन्नत तकनीक के कारण उत्पादन लागत भी कम आती है यही कारण है कि विदेशी वस्तुएं भारतीय वर्षों की अपेक्षा काफी सस्ती होती है.

अप्रैल 2005 से विश्व व्यापार संगठन की संधि पूरी तरह से लागू होने से पूरे विश्व की कृषि एक बड़ी मंडी का रूप धारण कर चुकी है. वहीं वर्तमान सरकार ने भी किसानों की आमदनी दुगनी करने के लिए कई कदम उठाए हैं. उन का लाभ भी किसानों को मिल रहा है ऐसी स्थिति में किसानों के लिए जरूरी है कि वे अंतरराष्टीय कृषि प्रतिस्पर्धा में कम लागत से अधिक उत्पादन ले कर उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करें जिस से विश्व बाजार में अच्छा मूल्य मिल सके और उन की साख भी बनी रहे.

यहां पर बताई जा रही विविध तकनीकों को अपना कर अधिक उपज ग्रहण कर सकते हैं जिस से किसान की लागत कम आएगी और मुनाफा बढ़ेगा.

मिट्टी की जांच कराएं

खेती करने से पहले खेत की मिट्टी की प्रयोगशाला में जांच अवश्य करानी चाहिए. मृदा रिपोर्ट के आधार पर फसलों का चुनाव करें एवं मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की आवश्यकता के आधार पर खाद व पोषक तत्व डालें. सही जानकारी होने से खर्च में कमी आएगी और मृदा में सुधार होगा, जिस से उत्पादन अच्छा प्राप्त होगा.

प्रमाणित बीजों का करें प्रयोग

बीजों की पारंपरिक विधि को छोड़ कर, किसान प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें. बीज को 2 से 3 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार कर लें. इस से कई बीमारियों से छुटकारा मिलता है. नर्सरी डालने से पहले नर्सरी का उपचार अवश्य कर लें, ज्यादातर बीमारियां और कीड़े नर्सरी से फैलते हैं. पौधे लगाते समय यह ध्यान रखें कि वे रोगी ना हो और उपचारित कर के ही पौधों की रोपाई करें. यदि नर्सरी अच्छी होगी तो निश्चित रूप से फसल भी अच्छी होगी.

उचित समय पर करें बुवाई

किसी भी फसल की सही समय पर बुवाई अति आवश्यक है. यदि किसी कारण से बुआई में देरी हो जाए तो फसल उत्पादन पर खर्चा तो उतना ही जाता है, लेकिन पैदावार जरूर कम हो जाती है. गेहूं की देरी से बुवाई करने पर 4 किलोग्राम प्रति दिन प्रति बीघा की दर से पैदावार में कमी देखी गई है. अगेती और पछेती किस्मों का भी ध्यान रखना चाहिए। वर्षा ना होने पर यदि बुआई में देरी हो जाए तो पछेती किस्मों को लगा कर पूरा लाभ लिया जा सकता है.

सहयोगी फसलें उगाएं

एक ही खेत में एक से अधिक फसलें उगाने की पुरानी परंपरा है, जैसे गेहूंचना एक साथ उगाना. मुख्य फसल की दो पंक्तियों के बीच में जल्दी पकने और बढ़ने वाली फसलें बोई जा सकती हैं. स्तंभ आकार औषधि पौधे जो बड़े हैं, उन के नीचे बेल वाली जैसे करेला आदि की फसलें लगा सकते हैं. छाया की आवश्यकता वाली फसलें अदरक, सफेद मूसली, अश्वगंधा, हल्दी आदि लगा कर अधिकतम भूमि का प्रयोग कर के, उत्पाद की गुणवत्ता के साथसाथ शुद्ध लाभ बढ़ाया जा सकता है. किसी कारणवश एक फसल खराब भी हो जाए तो उस के नुकसान की भरपाई दूसरी फसल की उपज से हो जाती है. अत: जहां तक संभव हो सहफसली खेती पर ध्यान देना चाहिए. आजकल किसान गन्ने के साथ सहफसली खेती ले कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं.

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फसल चक्र में दलहनी फसलों का करें समावेश

लगातार धान गेहूं और आलू की खेती करने से भूमि की उर्वरा शक्ति कमजोर हो जाती है. इसलिए फसल चक्र में दाल वाली फसलें शामिल करने से प्रति बीघा 25 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन खाद की वृद्धि के साथसाथ भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ती है. इसलिए फसल चक्र को जरूर अपनाना चाहिए.

पौधों की उचित संख्या लगाएं

खेत में पौधों की संख्या का उपज पर सीधा असर पड़ता है. बीज की उचित मात्रा और सही गहराई पर बोने से उपज में बढ़ोतरी होती है. छिटकवां विधि से बिजाई ना कर के, लाइनों में बिजाई करनी चाहिए. इस से खरपतवार निकालने में आसानी रहती है और यदि पौधों की संख्या अधिक हो तो उन की छटाई कर के अधिक उपज ली जा सकती है.

संतुलित मात्रा में करें खाद का प्रयोग

किसान जरूरत से अधिक खाद डालते हैं, इस से पैसे का नुकसान होने के साथसाथ कीड़ों तथा बीमारियों का प्रकोप भी बढ़ जाता है. अधिकतर कृषक सही जानकारी के अभाव में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश का संतुलित मात्रा में प्रयोग न करके एक ही खाद डाल देते हैं. वैज्ञानिकों की सिफारिश के अनुसार खाद डालने के समय मात्रा और विधि का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. बुवाई से पहले बीज को बायोफर्टिलाइजर्स से उपचारित कर के नाइट्रोजन फास्फोरस और पोटाश का फसल आवश्यकता की संस्तुति के आधार पर प्रयोग किया जा सकता है. इस के अलावा लोहा, जिंक और मैग्नीशियम आदि सूक्ष्म तत्त्वों का आवश्यकतानुसार प्रयोग करें, जिस से बीमारी और कीड़े कम लगते हैं. इस से कम खर्च में अधिक उत्पादन लिया जा सकता है.

पानी का करें उचित प्रयोग

वर्षा के पानी को इकट्ठा कर के किसान सिंचाई के लिए प्रयोग कर सकते हैं. गहरी जुताई और मेड बंदी से खेत में पानी रोका जा सकता है. कम पानी चाहने वाली किस्मों को बढ़ावा देना चाहिए. वर्षा के पानी को इकट्ठा न कर पाने के अभाव में 50 से 60 प्रतिशत का पानी बेकार चला जाता है. इस से भूमि बंजर और खेती के अयोग्य हो जाती है. आधुनिक सिंचाई के तरीकों में फव्वारा और ड्रिप सिंचाई का फसल और जमीन के अनुरूप इस्तेमाल करना चाहिए, इस से पानी की बचत होती है तथा फसल को उस की आवश्यकतानुसार पानी मिल जाता है.

कंपोस्ट गोबर और हरी खाद का करें प्रयोग

खेतों में घास पात के अवशेषों से कंपोस्ट तैयार की जा सकती है. गोबर की खाद में 0.5 प्रतिशत नाइट्रोजन 0.25 प्रतिशत फास्फोरस और 0.5 प्रतिशत पोटाश की मात्रा होती है, साथ ही भूमि की भौतिक दशा में भी सुधार होता है. वर्ष में एक बार हरी खाद का प्रयोग करने से आगामी फसल में एक तिहाई खाद कम डालनी पड़ती है. गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल में 2 से 3 किलोग्राम प्रति बीघा हरी खाद को बो दें और 40 से 50 दिन बाद उस की जुताई कर के अगली फसल उगाएं.

फसल विविधीकरण और समन्वित कृषि प्रणाली को अपनाएं

परंपरागत फसलों से जहां कम आमदनी होती है, वही सब्जी, फलों, मसालों, औषधीय और सुगंधित फसलों की खेती कर के अधिक आय अर्जित की जा सकती हैं. खेती के अतिरिक्त अन्य कार्य से जैसे-पिगरी, पोल्ट्री, मधुमक्खी पालन, रेशम कीट पालन, मछली पालन, मशरूम उत्पादन एक दूसरे के पूरक हैं इन में अतिरिक्त आमदनी होगी उत्पादन लागत में कमी होगी. वैज्ञानिक तरीके अपना कर कम लागत में अधिक पैदावार ली जा सकती है. अधिक उत्पादन की लालसा में किसी के वैज्ञानिक दौर में कृषक अंधाधुंध रासायनिक कीटनाशक, खरपतवार नाशक, और हारमोंस का प्रयोग कर के प्रदूषण और उत्पादन की गुणवत्ता के साथसाथ अपने धन भी नाश करते हैं. कृषि के बदलते परिवेश में जरूरी है कि ऐसी टिकाऊ खेती करें जिस में उपलब्ध सीमित संसाधनों का कम लागत में प्रयोग कर के उत्तम गुणवत्ता वाला अधिक उत्पादन हो और अंतरराष्ट्रीय बाजार पर हमारी पकड़ मजबूत हो सके. इन बातों को ध्यान में रख कर यदि हम खेती किसानी करेंगे तो निश्चित रूप से हमें उत्पादन अच्छा प्राप्त होगा और बाजार में उस की कीमत भी अच्छी मिलेगी.

इस के अलावा किसानों को कार्बनिक खेती पर अर्थात प्राकृतिक खेती पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि उस से कम लागत में अच्छा मुनाफा मिल जाता है. इस के लिए वर्मी कंपोस्ट और नीम या मूंगफली आदि की खली के प्रयोग से मिट्टी में जीवाणुओं की वृद्धि होती है. प्राकृतिक पदार्थों में गोमूत्र, नीम, धतूरा और तंबाकू का प्रयोग करें. कीड़ों बीमारियों का समन्वित प्रबंधन रासायनिक दवाओं से करने पर उत्पाद का दाम कम मिलता है, अत: कार्बनिक दवाओं का ही प्रयोग करें. कीड़ों और बीमारियों की रोकथाम के लिए कर्षण क्रियाओं की भौतिक और जैविक विधियों का अधिकतम प्रयोग करना चाहिए. गर्मियों में खेत की गहरी जुताई करें और प्रतिरोधी प्रजातियां ही लगाएं. जीवाणुओं तथा प्राकृतिक भक्षक कीटों का प्रयोग करें. ट्रैप का प्रयोग कर के कीड़ों को एकत्रित कर के नष्ट किया जा सकता है. इस से लागत भी कम आएगी और उत्पाद की कीमत भी अच्छी मिलेगी.

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