इस बार देश के कई इलाकों में बरसात सामान्य से कम हुई है, जिस के कारण या अन्य किसी कारण से किसान खरीफ में कोई खास फसल नहीं ले पाए या कई किसान जो बरसाती सीजन के अनुसार फसल लगाते हैं, उन्हें भी धोखा ही मिला. ऐसे में वे किसान खाली पडे़ खेतों में तोरिया/लाही की फसल ले सकते हैं.

तोरिया खरीफ एवं रबी के मध्य में बोई जाने वाली तिलहनी फसल है, जिस में मुनाफे की संभावना हमेशा रहती है.

खेत की तैयारी

इस के लिए खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताई देशी हल, कल्टीवेटर/हैरो से कर के पाटा दे कर मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए.

प्रमुख प्रजातियां

तोरिया की प्रमुख प्रजातियां टी.-9,भवानी, पीटी -303, पीटी -30 एवं तपेश्वरी है, जो 75 से 90 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, जिन की उपज क्षमता 4 से 5 क्विंटल प्रति एकड़ है.

बीज की मात्रा एवं बीजोपचार

तोरिया का बीज डेढ़ किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए. बीजजनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए. इस के लिए 2.5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को उपचारित कर के ही बोएं.

बोआई का समय

अच्छी फसल लेने के लिए तोरिया की बोआई सितंबर माह के पहले पखवारे में ही की जानी चाहिए.

भवानी प्रजाति की बोआई सितंबर माह के दूसरे पखवारे में ही करें.

खाद एवं उर्वरक

मिट्टी परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए. यदि मिट्टी परीक्षण न हो सके, तो 16 क्विंटल गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग प्रति एकड़ में करें. 44 किलोग्राम यूरिया, 125 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट एवं 30 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें.

बोआई के 25 से 30 दिन के बीच पहली सिंचाई के बाद टौप ड्रेसिंग के रूप में 44 किलोग्राम यूरिया प्रति एकड़ में देना चाहिए.

बोआई की विधि

तोरिया की बोआई 30 सैंटीमीटर की दूरी पर 3 से 4 सैंटीमीटर की गहराई पर कतारों में करनी चाहिए और पाटा लगा कर बीज को ढक देना चाहिए. घने पौधों को बोआई के 15 दिन के भीतर निकाल कर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सैंटीमीटर कर देना चाहिए और खरपतवार नष्ट करने के लिए एक निराईगुड़ाई भी साथ में कर देनी चाहिए.

ऐसे करें सिंचाई

फूल निकलने से पूर्व की अवस्था पर पानी की कमी के प्रति तोरिया (लाही) विशेष संवेदनशील है. अतः अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इस अवस्था पर सिंचाई करना आवश्यक है. वर्षा होने से हानि से बचने के लिए उचित जल निकास की व्यवस्था करें.

Farmingकीट एवं रोग प्रबंधन

नाशीजीवों की सही पहचान कर उचित प्रबंधन करना चाहिए.

यों करें कटाईमड़ाई

जब फलियां 75 फीसदी तक सुनहरे रंग की हो जाएं, तो फसल को काट कर सुखा लेना चाहिए. तत्पश्चात मड़ाई कर बीजों को सुखा कर भंडारित करें.

सरसों की प्रोसैसिंग कर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. आजकल सरसों का तेल भी ऊंचे दामों पर मिलता है. सरसों पिलाई के बाद उस की खली पशुओं के आहार में काम आती है. कुछ लोग तो सरसों खरीद कर उस का तेल, खली आदि बेच कर अच्छाखासा मुनाफा भी कमाते हैं. यही उन के रोजगार का जरीया भी बनता है.

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