कई फसलों खासकर  सरसों, बैगन, टमाटर, फूलगोभी, पत्तागोभी, तंबाकू,  शलजम वगैरह पर हमला करने वाले ओरोबैंकी यानी ब्रूमरेप खरपतवार की खास बात यह है कि इस की हर किस्म पूरी तरह से परजीवी होती है.

ओरोबैंकी सेरेनुआ इस की एक दूसरी किस्म है, जो बिहार इलाके में सरसों की फसल पर परजीवी है. सरसों की फसल में इस के प्रकोप से 10 से 70 फीसदी तक का नुकसान होता है. यह परजीवी सरसों उगाए जाने वाले सभी इलाकों जैसे राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल व ओडिशा में पाया जाता है.

ओरोबैंकी से ग्रस्त सरसों के पौधे छोटे रह जाते हैं और कभीकभी मर भी जाते हैं. ओरोबैंकी के चूपकांग यानी हास्टोरिया सरसों की जड़ों में घुस कर पोषक तत्त्व हासिल करते हैं. पौधों को उखाड़ कर देखें, तो ओरोबैंकी की जड़ें सरसों की जड़ों के अंदर घुसी हुई दिखती हैं. सरसों के पौधों के नीचे मिट्टी से निकलते हुए ओरोबैंकी परजीवी दिखाई पड़ते हैं.

ओरोबैंकी का तना गूदेदार होता है और इस की लंबाई 15 से 50 सैंटीमीटर होती है. तना हलका पीला या बैगनीलालभूरे रंग का होता है, जो पतली भूरी पत्तियों की परतों से ढका रहता है. फूल पत्तियों के कक्ष से निकलते हैं, जो सफेद नली के आकार के होते हैं.

यह अंडाकार बीजयुक्त फलियां बनाता है, जो तकरीबन 5 सैंटीमीटर लंबा होता है व जिन में सैकड़ों की संख्या में छोटेछोटे काले बीज होते हैं. ये बीज मिट्टी में कई सालों तक जिंदा रहते हैं.

ओरोबैंकी के बीज मिट्टी में 10 साल से भी ज्यादा समय तक जिंदा रह सकते हैं. इस के बीजों का जमाव तभी होता है, जब सरसों कुल के पौधों की जड़ें सरसों की जड़ों की ओर बढ़ती हैं व करीबी संबंध बना कर उन से जुड़ जाती हैं. इस से ओरोबैंकी फसल द्वारा बनाए गए भोजन को ले कर अपनी बढ़वार करता है. वह तकरीबन एक महीने तक मिट्टी में ही बढ़वार कर अंगूठे के आकार के जमीनी तने में भोजन इकट्ठा करता रहता है.

इस के बाद सरसों की 50 से 60 दिन की अवस्था के दौरान यह मिट्टी से बाहर निकल कर बढ़ता है. बाहर आने के बाद भी यह हरे पत्ते नहीं बना कर परजीवी ही बना रहता है. इस के बाद इस में फूल आ जाते हैं और अनगिनत छोटेछोटे बीज बन जाते हैं. यह सारी प्रक्रिया तनों के उगने से ले कर बीज बन कर बिखरने तक 2 महीने में पूरी हो जाती है.

रोकथाम के उपाय

 

Sarson

*           नए इलाकों में ओरोबैंकी के बीज का प्रवेश नहीं होने देना चाहिए और परजीवी के बीजरहित सरसों के शुद्ध बीज का इस्तेमाल करना चाहिए.

*           ओरोबैंकी परजीवी को हाथ से उखाड़ कर या निराईगुड़ाई द्वारा जमीन के ऊपर के तने को काट कर बीज बनने से पहले ही खत्म कर देना चाहिए.

*           यदि बीज बन गए हों, तो पौधों को सावधानी से निकालना चाहिए, जिस से बीज मिट्टी में नहीं मिलें.

*           जिन इलाकों में बहुत ज्यादा हमला होता है, वहां सरसों की फसल टै्रप क्रौप के रूप में बोनी चाहिए. 30 से 40 दिन में परजीवी के पौधे बाहर निकलते दिखाई दें, तो गहरी जुताई कर के सरसों सहित इस के जमीनी तने को खत्म कर इस के बाद दूसरी फसल बो दें.

*           जब तक ओरोबैंकी पर पूरी तरह काबू नहीं हो जाता, सरसों की जगह पर अरंडी की फसल बोएं, क्योंकि अरंडी एक सालाना फसल है. इस से परजीवी को रोकने में मदद मिलेगी.

*           कुछ पौधों, जैसे मिर्च को बोने से ओरोबैंकी के बीजों का जमाव हो जाता है, लेकिन मिर्च की फसल को इस परजीवी से कोई नुकसान नहीं होता है. इस तरह मिट्टी में मौजूद ओरोबैंकी के बीजों को जमा कर इस फसल का टै्रप फसल के रूप में इस्तेमाल कर परजीवी के पौधों को खत्म किया जा सकता है. इस तरह मिर्चसरसों का फसल चक्र अपनाने से इस परजीवी पर कुदरती तौर पर काबू पाया जा सकता है.

*           लंबे समय तक फसल चक्र अपना कर इस की ज्यादती को रोका जा सकता है.

*           पौधों की मिट्टी की सतह के पास 25 फीसदी ताम्रघोल का छिड़काव कर के यह परजीवी खत्म किया जा सकता है.

*           ओरोबैंकी पौधों पर सोयाबीन के तेल की 2 बूंदें डाल देने से पौधा मर जाता है.

*           सरसों की रोगरोधी किस्म दुर्गामणि की बोआई करें.

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