अरबी एक कंद वाली फसल है. भारत में इस की खेती लगभग सभी जगहों में की जाती है. गरमी और बारिश के मौसम में इस के पौधों का अच्छा विकास होता है. इस के कंद में प्रमुख रूप से स्टार्च एवं पत्तियों में विटामिन ए, कैल्शियम, फास्फोरस और आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है.
भूमि एवं जलवायु : अरबी की खेती के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि सब से उपयुक्त मानी जाती है, जिस का पीएच मान 5.5 से 7 के मध्य हो.
उष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु अरबी की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है. अधिक गरमी और सर्द जलवायु इस के पौधों के लिए हानिकारक होती है.
सर्दियों के मौसम में पाला से पौधों की बढ़वार रुक जाती है. अरबी के कंद 20 से 25 डिगरी सैल्सियस तापमान में अच्छी वृद्धि करते हैं.
खेत की तैयारी व उर्वरक प्रबंधन : अरबी की रोपाई से पूर्व खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करनी चाहिए. इस से खेत में मौजूद पुराने फसल अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाएं. इस के बाद खेत में 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद अवश्य मिला दें. इस के पश्चात 2-3 जुताई कल्टीवेटर से कर के मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए.
बोआई से पूर्व प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस एवं 60 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें और पौधों के विकास के समय रोपाई के 60 दिन बाद खेत में सिंचाई करते समय 20 से 25 किलोग्राम यूरिया का टौप ड्रैसिंग के रूप में प्रयोग करने से अच्छा उत्पादन मिलता है.
कंद रोपाई का समय और विधि : अरबी के कंद की रोपाई के लिए जूनजुलाई का महीना सब से उचित होता है. गरमी के मौसम में पैदावार प्राप्त करने के लिए कंद की रोपाई फरवरीमार्च माह में की जाती है.
अरबी की रोपाई करने के लिए खेत में 45-60 सैंटीमीटर की दूरी रखते हुए नालीनुमा मेंड़ों को तैयार कर लेते हैं. इन मेंड़ों के मध्य नाली में 30 से 45 सैंटीमीटर की दूरी पर कंद की रोपाई कर मिट्टी से ढक देते हैं.
कंद की मात्रा एवं उपचार : अरबी की रोपाई कंद के रूप में की जाती है. रोपाई के लिए एक हेक्टेयर खेत में लगभग 15 से 20 क्विंटल कंद की जरूरत होती है. यह मात्रा कंद के आकार और रोपाई की विधि पर निर्भर करती है. कंदों की रोपाई से पहले उन्हें कार्बंडाजिम की 2 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी में घोल बना कर उपचारित कर के ही रोपाई करनी चाहिए. इस से कंद के सड़ने से बचाव होता है.
सिंचाई प्रबंधन : अरबी की रोपाई करते समय भूमि में उचित नमी रखें और मौसम के अनुसार गरमियों में सप्ताह में 2 बार और बरसात में जरूरत के मुताबिक हलकी सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है. अरबी के खेत में जलभराव होने पर जल निकास की उचित व्यवस्था करें.
कीट व रोग नियंत्रण
थ्रिप्स : यह कीट पत्तियों के निचले भाग पर चिपक कर पत्तियों से रस चूसते हैं. इस से पत्तियों का विकास रुक जाता है और पत्तियां पीली पड़ जाती हैं.
इस कीट पर नियंत्रण पाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी की दर से छिड़काव करें.
झुलसा रोग : इस में पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देने लगते हैं. रोग का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियां काले रंग की हो कर सूख जाती हैं और पौधे का विकास रुक जाता है.
इस के नियंत्रण के लिए कार्बंडाजिम और मैंकोजेब की 3 ग्राम मात्रा प्रति लिटर पानी की दर से मिला कर छिड़काव करें.
कंद सड़न : खेत में अधिक समय तक ज्यादा नमी रहने के कारण कंद सड़न की समस्या आ जाती है. इस के प्रभाव से प्रारंभ में पौधे मुरझाने लगते हैं और अधिक प्रकोप होने पर पौधे सूख कर पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं.
इस के नियंत्रण के लिए खेत में जलभराव न होने दें और एलियट 1 ग्राम प्रति लिटर पानी अथवा कार्बंडाजिम 2 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से ड्रैचिंग करें.
खुदाई : अरबी के कंद उन की किस्मों के अनुसार लगभग 5-6 माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जब पौधों की पत्तियां पीले रंग की दिखाई देने लगें, उस समय कंदों की खुदाई कर लेनी चाहिए.
खुदाई के बाद कंदों को साफ पानी में धो कर छंटाई कर लें. छंटाई करते समय मातृ कंद एवं पुत्री कंद को काट कर अलग कर लें. इस से बाजार में अच्छा भाव मिलता है. अरबी की हरी पत्तियों से भी अच्छा लाभ कमाया जा सकता है.
उन्नतशील किस्में
नरेंद्र अरबी-1 : यह किस्म रोपाई के 160 से 170 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. इस का पौधा सामान्य आकार का होता है. इस की औसत पैदावार 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
आजाद अरबी-1 : यह कम अवधि की किस्म है. यह रोपाई के 120 दिन बाद तैयार हो जाती है. इस की पैदावार 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
पंचमुखी : यह किस्म कंद रोपाई के 180 से 200 दिन बाद तैयार हो जाती है. इस के प्रत्येक पौधे में 5 मुखपुत्री होती हैं. इस कारण इस को पंचमुखी कहा जाता है. इस की औसत पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.
व्हाइट गोरैया : यह किस्म रोपाई के 180 से 190 दिन बाद खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. इस के कंद खुजलाहटमुक्त होते हैं. यह किस्म औसतन 180-190 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार दे देती है.