शरदकालीन गन्ने की खेती जो किसान भाई करना चाहते हैं तो इस के लिए सही समय अक्तूबरनवंबर माह का होता है. गन्ना घास समूह का पौधा है. इस का इस्तेमाल बहुद्देश्यीय फसल के रूप में चीनी उत्पादन के साथसाथ अन्य मूल्यवर्धित उत्पादों जैसे कि पेपर, इथेनाल और दूसरे एल्कोहल से बनने वाले कैमिकल, पशु खाद्यों, एंटीबायोटिक्स, पार्टीकल बोर्ड, जैव उर्वरक व बिजली पैदा करने के लिए कच्चे पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
गन्ने को खासतौर पर व्यापारिक चीनी उत्पादन करने वाली फसल के रूप में इस्तेमाल में लाया जाता है, जो कि दुनिया में उत्पादित होने वाली चीनी के उत्पादन में तकरीबन 80 फीसदी योगदान देता है. गन्ने की खेती दुनियाभर में पुराने समय से ही होती आ रही है, पर 20वीं सदी में इस फसल को एक नकदी फसल में रूप में पहचान मिली है.
भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि आधारित होने के चलते गन्ने का इस में खासा योगदान है. गन्ने के क्षेत्र, उत्पादन व उत्पादकता में भारत दुनियाभर में दूसरे नंबर पर है. वर्तमान में गन्ना उत्पादन में भारत की विश्व में शीर्ष देशों में गिनती होती है. वैसे, ब्राजील व क्यूबा भी भारत के तकरीबन बराबर ही गन्ना पैदा करते हैं. भारत में 4 करोड़ किसान रोजीरोटी के लिए गन्ने की खेती पर निर्भर हैं और इतने ही खेतिहर मजदूर निर्भर हैं.
गन्ने के महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि देश में निर्मित सभी प्रमुख मीठे उत्पादों के लिए गन्ना एक प्रमुख कच्चा माल है. इतना ही नहीं, इस का इस्तेमाल खांड़सारी उद्योग में भी किया जाता है.
उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, पंजाब, हरियाणा मुख्य गन्ना उत्पादक राज्य हैं. मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और असम के कुछ इलाकों में भी गन्ना पैदा किया जाता है, लेकिन इन राज्यों में उत्पादकता बहुत कम है. इस के अलावा महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात में भी गन्ने का उत्पादन किया जाता है.
कुल उत्पादित गन्ने का 40 फीसदी हिस्सा चीनी बनाने में इस्तेमाल किया जाता है. उत्तर प्रदेश देश की कुल गन्ना उपज का 35.8 फीसदी, महाराष्ट्र, 25.4 फीसदी और तमिलनाडु 10.3 फीसदी पैदा करते हैं यानी ये तीनों राज्य देश के कुल गन्ना उत्पादन का 72 फीसदी उत्पादन करते हैं.
गन्ने के बीज का चयन करते समय यह ध्यान रखें कि गन्ना बीज उन्नत प्रजाति का हो, शुद्ध हो व रोगरहित होना चाहिए. गन्ने की आंख पूरी तरह विकसित और फूली हुई हो. जिस गन्ने का छोटा कोर हो, फूल आ गए हों, आंखें अंकुरित हों या जड़ें निकली हों, ऐसा गन्ना बीज उपयोग न करें.
शरदकालीन गन्ने की बोआई के लिए अक्तूबर माह का पहला पखवाड़ा सही है. बोआई के लिए पिछले साल सर्दी में बोए गए गन्ने के बीज लेना अच्छा रहेगा. बोने से पहले खेत की तैयारी के समय ट्राईकोडर्मा मिला हुआ प्रेसमड गोबर की खाद 10 टन प्रति हेक्टेयर का प्रयोग जरूर करें.
कैसे बचाएं कीटों से
जिन खेतों में दीमक की समस्या है या फिर पेड़ी अंकुर बेधक कीटों की समस्या ज्यादा होती है, वहां पर इस की रोकथाम के लिए क्लोरोपाइरीफास 6.2 ईसी 5 लिटर प्रति हेक्टेयर या फ्लोरैंटो नीपोल 8.5 ईसी 500 से 600 मिलीलिटर प्रति हेक्टेयर का 1,500 से 1,600 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.
गन्ने की खेती के लिए जैव उर्वरक : शोध के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि गन्ने की खेती के लिए जैव उर्वरक काफी फायदेमंद साबित होते हैं. सही माने में देखा जाए तो जैविक खाद लाभकारी जीवाणुओं का ऐसा जीवंत समूह है जिन को बीज जड़ों या मिट्टी में प्रयोग करने पर पौधे को अधिक मात्रा में पोषक तत्त्व मिलने लगते हैं. साथ ही, मिट्टी की जीवाणु क्रियाशीलता व सामान्य स्वास्थ्य में भी बढ़वार देखी गई है.
गन्ने की खेती के लिए जीवाणु वातावरण में मौजूद नाइट्रोजन स्तर का प्रवर्तन कर उसे पौधों के लायक बना देते हैं. साथ ही, यह पौधे के लिए वृद्धि हार्मोन बनाते हैं. अकसर देखा गया है कि एसीटोबैक्टर, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम वगैरह ऐसे जीवाणु हैं, जो गन्ने की खेती को फायदा पहुंचाते हैं.
जैविक खाद के बेअसर होने की वजह : प्रभावहीन जीवाणुओं का उपयोग, जीवाणु तादाद में कम होना, अनचाहे जीवाणुओं का ज्यादा होना, जीवाणु खाद को उच्च तापमान या सूरज की रोशनी में रखना, अनुशंसित विधि का ठीक से प्रयोग न करना, जीवाणु खाद को कैमिकल खाद के साथ प्रयोग करना, इस्तेमाल के समय मिट्टी में तेज तापमान या कम पानी का होना, मिट्टी का ज्यादा क्षारीय और अम्लीय होना, फास्फोरस और पोटैशियम की अनुपलब्धता और मिट्टी में जीवाणुओं व वायरस का अधिक होना भी उत्पादन को प्रभावित करता है.
कितनी करें सिंचाई : यह बात सही है कि जैविक खाद कैमिकल खाद की जगह नहीं ले सकती, लेकिन किसान अगर दोनों का सही मात्रा में अपनी खेती में इस्तेमाल करते हैं, तो माली फायदे के साथ में पानी भी दूषित नहीं हो सकेगा.
जैविक खाद का इस्तेमाल करना किसानों के लिए हितकारी ही नहीं, लाभकारी भी होगा. उष्णकटिबंधीय इलाकों में पहले 35 दिनों तक हर 7वें दिन, 36 से 110 दिनों के दौरान हर 10वें दिन, बेहद बढ़वार की अवस्था के दौरान 7वें दिन और पूरी तरह पकने की अवस्था के दौरान हर 15 दिन बाद सिंचाई की जानी चाहिए. इन दोनों को बारिश होने के मुताबिक अनुकूलित करना पड़ता है. गन्ने की खेती में तकरीबन 30 से 40 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है.
कम पानी में कैसे हो खेती
गन्ना एक से अधिक पानी की जरूरत वाली फसल है. एक टन गन्ने के उत्पादन के लिए तकरीबन 250 टन पानी की जरूरत होती है. वैसे तो बिना उत्पादन में कमी लाए पानी की जरूरत को अपनेआप में कम नहीं किया जा सकता है, मगर सिंचाई के लिए पानी की जरूरत में कमी पानी को उस के स्रोत से पाइपलाइन के द्वारा खेत जड़ क्षेत्र तक ला कर रास्ते में होने वाले रिसाव के कारण नुकसान को रोक कर या फिर सूक्ष्म सिंचाई विधियों को अपना कर लाई जा सकती है.
जब पानी की कमी के हालात हों, तब हर दूसरे हफ्ते में पानी से सिंचाई की जा सकती है या फिर मल्च का प्रयोग कर के पानी की जरूरत में कमी लाई जा सकती है. सूखे के हालात में 2.5 फीसदी यूरिया, 2.5 फीसदी म्यूरेट औफ पोटाश के घोल को पाक्षिक अंतराल पर 3 से 4 बार छिड़काव कर उस के प्रभाव को कम किया जा सकता है.
पानी के सही प्रयोग के लिए टपक सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त रखना बेहद जरूरी है. इस के लिए समयसमय पर पानी की नालियों के अंत के ढक्कन खोल कर इन में से पानी को तेजी से बह कर साफ करें. टपक प्रणाली के अंदर की सतह पर जमे पदार्थ को हटाने के लिए 30 फीसदी हाइड्रोक्लोरिक एसिड को इंजैक्ट करें. जब सिंचाई के पानी का स्रोत नदी, नहर और खुला कुआं वगैरह हों, तो व्यक्ति कवच वगैरह के लिए 1 पीपीएम ब्लीचिंग पाउडर से साफ करना चाहिए. एसिड उपचार और साफ करते समय यह पानी की क्वालिटी पर निर्भर करती है.
उन्नत प्रजातियां
जल्दी पकने वाली प्रजातियां : कोषा 681, कोषा 8436, कोषा 90265, कोषा 88230, कोषा 95435, कोषा 95255, कोषा 96258, कोसे 91232, कोसे 95436, कोएच 92201, कोजा 64 प्रमुख हैं.
मध्यम और देर से पकने वाली प्रजातियां : कोशा 7918, कोशा 8432, कोशा 767, कोशा 8439, कोशा 88216, कोशा 90269, कोशा 92263, कोशा 87220, कोशा 87222, कोशा 97225, कोपंत 84212, कोपंत 90223, यूपी 22, यूपी 9529, कोसे 92234, कोसे 91423, कोसे 95427, कोसे 96436 खास हैं.
सीमित सिंचित इलाकों के लिए : कोशा 767, कोशा 802, कोशा 7918, कोशा 8118 व यूपी 5 वगैरह हैं.
जलभराव वाले इलाकों के लिए : कोशा 767, कोशा 8001, कोशा 8016, कोशा 8118, कोशा 8099, कोशा 8206, कोशा 8207, कोशा 8119, कोशा 95255, कोसे 96436, यूपी 1, कोशा 9530 वगैरह हैं.
ऊसर जमीन के लिए : को 1158, कोशा 767 खास हैं.
गन्ने के साथ लें दूसरी फसल भी
गन्ने की शुद्ध फसल में गन्ने की बोआई 75 सैंटीमीटर और आलू, राई, चना, सरसों के साथ मिलवां फसल में 90 सैंटीमीटर की दूरी पर बोना चाहिए. एक आंख का टुकड़ा लगाने पर प्रति एकड़ 10 क्विंटल बीज लगेगा. 2 आंख के टुकड़े लगाने पर 20 क्विंटल बीज लगेगा.
पौलीबैग यानी पौलीथिन के उपयोग से बीज की बचत होगी और ज्यादा उत्पादन मिलेगा. बीजोपचार के बाद ही बीज बोएं. 205 ग्राम अर्टन या 500 ग्राम इक्वल को 100 लिटर पानी में घोल कर उस में तकरीबन 25 क्विंटल गन्ने के टुकड़े उपचारित किए जा सकते हैं.
जैविक उपचार प्रति एकड़ 1 लिटर एसीटोबैक्टर प्लस 1 लिटर पीएसबी का 100 लिटर पानी में घोल बना कर रासायनिक बीजोपचार के बाद गन्ने के टुकड़ों को सूखने के बाद सही घोल में 30 मिनट तक डुबो कर उपचार करने के बाद ही बोआई करें.
गन्ने को भी दें खादउर्वरक : गन्ने में खादउर्वरकों का इस्तेमाल मिट्टी जांच के आधार पर जरूरत के मुताबिक पोषक तत्त्वों का उपयोग कर के उर्वरक खर्च में बचत कर सकते हैं. अगर मिट्टी जांच न हुई हो तो बोआई के समय प्रति हेक्टेयर 60 से 75 किलोग्राम नाइट्रोजन, 70 से 80 किलोग्राम फास्फोरस, 20 से 40 किलोग्राम पोटाश व 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का इस्तेमाल करना चाहिए.
गन्ने की लगाई तकरीबन 10 फीसदी फसल खराब होने की मुख्य वजह फसल को दी गई खाद के साथ पोटाश की सही मात्रा का उपलब्ध न होना है.
शोधों से पता चला है कि गन्ने की खेती में अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए प्रति एकड़ तकरीबन 33 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है, इसलिए गन्ने की खेती में पोटाश का प्रयोग जरूर करें.