तोरिया नकदी फसल के रूप में जानी जाती है. तोरिया की उन्नत किस्मों की खेती वैज्ञानिक तरीके से कर के अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है.
बीज की मात्रा, बीजोपचार व बोआई : तोरिया की बोआई के लिए 4 किलोग्राम (जब 1000 दानों का वजन 3 ग्राम हो) या 5-6 किलोग्राम (जब 1000 दानों का वजन 4-5 ग्राम हो) बीज प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचित व असिंचित दोनों हालात में लगते हैं.
बोआई से पहले बीजों को 2 ग्राम मैंकोजेब या 3 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. बोआई से पहले ही सफेद गेरुई व तुलासिता रोगों से बचाव के लिए बीजों को मेटालेक्सिल की 1.5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें.
पेंटेड बग की रोकथाम के लिए बीजों को एमिडाक्लोप्रिड (70 डब्ल्यूएस) की 5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोआई करें. जैविक उर्वरक के रूप में एजोटोवैक्टर 200 ग्राम पीएसवी व माइकोराइजन की 200 ग्राम मात्रा प्रति 10 किलोग्राम बीज की दर से ले कर बीजों को उपचारित करें. इस के बाद ही बोआई करें.
जमीन का उपचार : मिट्टी से होने वाले रोगों की रोकथाम के लिए बायोपेस्टीसाइड ट्राइकोडर्मा बिरडी 1 फीसदी डब्ल्यूपी या ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 2 फीसदी डब्ल्यूपी की 2.5 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 60 से 70 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिला कर 10-15 दिनों तक रखने के बाद जमीन में मिलाएं.
बोआई का समय : तोरिया की बोआई सितंबर के पहले पखवाड़े से ले कर सितंबर के आखिर तक की जाती है. बोआई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 30-45 सेंटीमीटर, पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर और गहराई 5 सेंटीमीटर रखें. असिंचित क्षेत्रों में बीजों की गहराई नमी के मुताबिक रखनी चाहिए. भवानी प्रजातियों की बोआई सितंबर के दूसरे पखवाड़े में ही करें. वैसे प्रयोगों द्वारा साबित हो चुका है कि तोरिया की बोआई 15 सितंबर के आसपास करने से सफेद रोली व माहूं द्वारा नुकसान कम होता है.
सिंचाई प्रबंधन : पहली सिंचाई बोआई के 20-35 दिनों बाद (फूल शुरू होने पर) करें और दूसरी सिंचाई 55-60 दिनों बाद (फली में दाना भरते समय) करें.
खाद व उर्वरक : तोरिया में तीनों खादों यानी रसायनिक, जैविक खाद व जैविक उर्वरक की मिलीजुली मात्रा देनी चाहिए. सिंचित दशा में 8-10 टन व असिंचित दशा में 4-5 टन अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद के साथ हलकी मिट्टी में 2.5-3.0 किलोग्राम ववेरियाव्रेसियाना को मिला कर 15-20 दिनों तक नमी वाले स्थान में बोरे से ढक कर रखने के बाद बोआई से पहले इस्तेमाल करने से दीमक व भूमिगत कीटों की काफी हद तक रोकथाम की जा सकती है. जिस मिट्टी में जस्ते की मात्रा 0.6 पीपीएम से कम हो, उस में जुताई के समय करीब 20 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी तरह मिला दें.
तोरिया में मिट्टी की जांच के मुताबिक उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. मिट्टी की जांच न होने की दशा में सिंचित क्षेत्रों में 80-100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40-50 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम सल्फर और 2 किलोग्राम बोरान प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. बरानी क्षेत्रों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश और सल्फर के लिए 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. केंचुआ खाद 5 टन या 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद और 75 फीसदी संतुलित उर्वरक के इस्तेमाल से पैदावार में 5-10 फीसदी का इजाफा होता है.
असिंचित क्षेत्रों में 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फासफोरस, 30 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम सल्फर, 2 किलोग्राम बोरान और सल्फर के लिए 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.
बरानी क्षेत्रों में उर्वरकों की पूरी मात्रा बोआई के समय देनी चाहिए. फास्फोरस को सिंगल सुपर फास्फेट से देने पर सल्फर की उपलब्धता हो जाती है. यदि डीएपी का इस्तेमाल किया गया हो तो बोआई से पहले 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. सिंचित दशा में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय नाई या चोंगा द्वारा बीज से 2-3 सेंटीमीटर नीचे देना फायदेमंद होता है. नाइट्रोजन की बाकी मात्रा बोआई के 25-30 दिनों बाद टाप ड्रोसिंग के रूप में देनी चाहिए. ज्यादा उपज हासिल करने के लिए फूल आने की अवस्था में थायोयूरिया के 0.1 फीसदी घोल का छिड़काव करें.
विरलीकरण : तोरिया में बोआई के करीब 15-20 दिनों के अंदर घने व दुर्बल पौधों को निकाल कर पौधों से पौधों की दूरी 15-20 सेंटीमीटर कर देना जरूरी है. सही तौर पर 2.5-3.0 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर पर या 25-30 पौधे प्रति वर्गमीटर पर होने से सही उपज मिलती है. तोरिया की खेती के साथ मधुमक्खीपालन काफी लाभप्रद होता है.
खरपतवारों की रोकथाम : पौधों की संख्या ज्यादा होने की दशा में बोआई के करीब 15-20 दिनों बाद फालतू पौधों को निकाल दें. इस के साथसाथ खरपतवारों को भी निराई कर के खेत से निकाल दें. करीब 45-60 दिनों तक खेत खरपतवारों से मुक्त होना चाहिए. रासायनिक तरीके से खरपतवारों की रोकथाम के लिए फ्लूक्लोरेलिन की 1.25 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से पहले जमीन में मिला दें या 0.7 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई के बाद इस्तेमाल करें. पेंडिमिथेलीन 30 ईसी की 3.30 लीटर मात्रा का बोआई के बाद प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें. सूखी बोआई की हालत में बोआई कर के फ्लूक्लोरेलिन का छिड़काव कर के सिंचाई करें. बोआई के करीब 20-25 दिनों बाद आइसोप्रोट्यूरान की 0.75 किलोग्राम मात्रा का घोल बना कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर सकते हैं.
सिंचाई : पहली सिंचाई बोआई के 30-40 दिनों बाद, फूल आने से पहले करें. दूसरी सिंचाई बोआई के 70-80 दिनों बाद फलियां बनने की अवस्था में करें. बलुई दोमट मिट्टी में 12 मीटर की दूरी पर नोजल लगा कर फव्वारा सेट 7 घंटे चला कर 2 बार सिंचाई करने पर सतही विधि के बराबर उपज हासिल करने के साथसाथ 40 फीसदी पानी की बचत की जा सकती है. बरानी क्षेत्रों में धान के पुआल से 2 टन प्रति हेक्टेयर की दर से माचिंग करने से पानी की बचत के साथ 30-40 फीसदी उपज में इजाफा हो जाता है.
खास रोगों की रोकथाम
पत्ती धब्बा रोग : इस की पहचान पत्तियों व फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे आपस में मिल कर पूरी पत्ती झुलसा दते हैं. इस की रोकथाम के लिए थीरम 75 फीसदी डब्ल्यू की 2.5 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें.
सफेद गेरुई रोग और तुलासिता रोग : सफेद गेरुई रोग में पत्तियों में निचली सतह पर सफेद फफोले बनते हैं, जिन से पत्तियां पीली हो जाती हैं. फूल आने की अवस्था में फूल क्रम बिगड़ जाता है, जिस से कोई भी फली नहीं बनती है और तुलासिता रोग में पुरानी पत्तियों की ऊपरी सतह पर छोटेछोटे धब्बे बन जाते हें, पत्तियों की निचली सतह पर धब्बों के नीचे सफेद रोएंदार फफूंद उग जाते हैं. धीरेधीरे पूरी पत्ती पीली हो कर सूख जाती है. इन दोनों रोगों की रोकथाम के लिए मेटालेक्सिल 35 फीसदी डब्ल्यूएस की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजों को उपचारित कर के बोआई करें.
खास कीटों की रोकथाम
बालदार सूंड़ी (आरा मक्खी) : यह कीट अंकुरण के 7-10 दिनों में यह कीट ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इस की रोकथाम के लिए क्यूनालफास 1.5 फीसदी या मैलाथियान 5 फीसदी या मिथाइल पैराथियान 2 फीसदी या कार्बारिल 5 फीसदी चूर्ण की 20-25 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से सुबह या शाम के समय बुरकाव करें.
माहूं : माहूं कीट की समस्या होने पर फसल में इमिडाक्लोरोपिड 70 एसएल की 0.5 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी के साथ छिड़कें. डाईमेथोएट 30 फीसदी या क्लोरोपाइरीफास 20 फीसदी की 1.0 लीटर मात्रा या नीम आयल 0.15 फीसदी की 2.5 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़कें.