भारत गेहूं की पैदावार में दुनिया में दूसरा बड़ा देश है. इस का पूरा श्रेय शोध, प्रचार कार्यक्रमों और देश के प्रगतिशील किसानों की लगन को जाता है.
गेहूं की कम उत्पादकता के खास कारण
* बासमती धान गेहूं फसलचक्र के कारण गेहूं की बोआई का देर से होना.
* धान के बाद गेहूं की बोआई में खरपतवारों का होना.
* समय से उन्नतशील प्रजातियों के बीज मौजूद न होना.
* उन्नत शस्य क्रियाएं जैसे बीज उपचार व सही विधि और सही गहराई पर बोआई न करना, सही खरपतवारनाशी का इस्तेमाल न करना, सही उर्वरक का इस्तेमाल न करना, ढंग से सिंचाई न करना और सही समय कीटबीमारियों की रोकथाम न करना.
प्रजातियों का चुनाव : उन्नतशील प्रजाति का चयन कर के समय पर सही विधि से बोआई करने पर पैदावार 15-20 फीसदी तक बढ़ जाती है.
बोआई की विधि और बीजों की मात्रा
छिटकवां विधि : 125-130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.
शून्य या बिना जुताई बोआई : 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.
हल के पीछे कूड़ों में (पोरा विधि) : 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.
फर्टिकम सीड ड्रिल : 80-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.
बेड बोआई : 40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर.
बीज उपचार : मिट्टी के बर्तन में 20 लीटर कुनकुने पानी में 10 किलोग्राम बीज डालने पर बेकार और हलके बीज ऊपर तैरने लगे हैं, उन्हें निकाल कर अलग कर दें. उस के बाद 4 लीटर देशी गाय का मूत्र, 3 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट व 2 किलोग्राम गुड़ आपस में अच्छी तरह मिलाएं. तैयार मिश्रण 1 एकड़ के हिसाब से है.
तैयार मिश्रण को 6 से 8 घंटे के लिए अलग रखें. इस के बाद जूट के बोरे में मिश्रण रख कर हलका पानी छिड़कें, फिर 2 ग्राम बावस्टीन और 1 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से या 2-3 ग्राम ट्राइकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक, 7.5 ग्राम पीएसवी कल्चर और 6 ग्राम एजोवैक्टर को प्रति किलोग्राम बीज दर से बीजों पर अच्छी तरह चढ़ाएं. इस के बाद करीब 10-12 घंटे इन बीजों को किसी नमी युक्त जूट के बोरे में अंकुरण के लिए रखें, अंकुरण के बाद बीज बोआई के लिए तैयार हो जाते हैं. जहां दीमक या भूमिगत कीड़ों का हमला होता है, उस क्षेत्र में ब्यूवेरिया वेसियाना 2.5-3.0 किलोग्राम को 80-100 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट में मिला कर बोआई से पहले खेत में आखिरी जुताई के समय मिला दें.
उर्वरकों का इस्तेमाल : मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए. सामान्य तौर पर 150:60:40:25 के अनुपात में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करने के लिए 263-275 किलोग्राम यूरिया, 130-140 किलोग्राम डीएपी, 67-70 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. देरी से बोआई करने पर 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस, 30 किलोग्राम पोटाश और 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. इस के लिए 140 किलोग्राम यूरिया, 94 किलोग्राम डीएपी, 50 किलोग्राम पोटाश और 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.
नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस, पोटाश व जिंक की पूरी मात्रा बोआई के समय जड़ क्षेत्र में इस्तेमाल करनी चाहिए. बाकी नाइट्रोजन (यूरिया) की आधी मात्रा पहली सिंचाई यानी करीब 25 दिनों बाद और आधी मात्रा 45-50 दिनों बाद दौज बनने की अवस्था में दूसरी सिंचाई के बाद जब पैर चिपकने लगे तब डालनी चाहिए. बढ़वार की अवस्था में 2 फीसदी यूरिया के घोल का छिड़काव करने से 20-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया की बचत की जा सकती है.
जिंक की कमी : इस से ऊपर से तीसरी पत्ती पर सफेटपीले ऊतकों की एक पट्टी बन जाती है, जो आमतौर पर मध्य शिरा और पत्ती के किनारों के बीच दिखाई देती है. जिंक की कमी दूर करने के लिए 5 किलोग्राम जिंक और 2.5 किलोग्राम बुझा चूना या 2.5 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 1.25 किलोग्राम बुझा चुना या 12.5 किलोग्राम यूरिया 500 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिनों के फासले पर 2 बार छिड़काव करें.
मैंगनीज की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.5 फीसदी मैंगनीज सल्फेट के छिड़काव के लिए 2.5 किलोग्राम मैंगनीज सल्फेट 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें.
सिंचाई : गेहूं में 5-6 बार मिट्टी और मौसम के मुताबिक सिंचाई की जाती है. पहली सिंचाई ताज मूल अवस्था पर न होने की दशा में उपज में भारी गिरावट आती है.
खरपतवारों की रोकथाम : गेहूं में ज्यादातर गेहूं का बथुआ, चटरीमटरी, हिरन खुटी, सेंजी, जंगली गाजर, कृष्ण नील, जंगली पालक, जंगली जई, मोथा और गेहूंसा आदि खरपतवार पाए जाते हैं. सब से अच्छा तो यह है कि गेहूं की फसल को बोआई के 30-35 दिनों व 55-60 दिनों की अवस्था में खुरपी या कुदाल द्वारा निराईगुड़ाई कर के खरपतवारों से मुक्त रखा जाए.