Onion Seed| प्याज के शुद्ध व विश्वसनीय बीज पैदा करने के लिए सही कृषि क्रियाओं, प्रजातियों, छंटाई, कीड़ों व बीमारियों की रोकथाम, परागण, कटाई, सुखाई, मड़ाई, बीज की सफाई, भराई व भंडारण के बारे में सही ज्ञान होना बहुत जरूरी है.
बीज उत्पादन के लिए प्याज को 2 वर्षीय कहा गया है. सभी जातियों का (जो भारत में उगाई जाती हैं) बीज उत्पादन मैदानी क्षेत्रों में आसानी से किया जाता है.
प्याज के बीजोत्पादन की विधि
कंद से बीज उत्पादन विधि : इस विधि में कंदों को बनने के बाद उखाड़ लिया जाता है और अच्छी तरह चुन कर के दोबारा खेतों में रोपा जाता है. इस विधि से गाठों की छंटाई संभव होती है, शुद्ध बीज बनता है और उपज भी ज्यादा होती है. लेकिन इस विधि में लागत ज्यादा आती है और समय अधिक लगता है.
1 वर्षीय विधि : इस विधि में बीजों को मईजून में बोया जाता है और पौधों की रोपाई जुलाईअगस्त में की जाती है. कंद नवंबर में तैयार हो जाते हैं. कंदों को उखाड़ कर छांट लिया जाता है. अच्छे कंदों को 10-15 दिनों बाद दोबारा दूसरे खेत में लगा दिया जाता है. इस विधि से मई तक बीज तैयार हो जाते हैं. क्योंकि इस से 1 साल में ही बीज बन जाते हैं, लिहाजा इसे 1 वर्षीय विधि कहते हैं. इस विधि से खरीफ प्याज की प्रजातियों का बीजोत्पादन होता है.
2 वर्षीय विधि : इस विधि में बीज अक्तूबनवंबर में बोए जाते हैं और पौधे दिसंबर के आखिर या जनवरी के शुरू में खेत में लगाए जाते हैं. कंद मई के अंत तक तैयार हो जाते हैं. चुने हुए कंद अक्तूबर तक भंडार में रखे जाते हैं.
नवंबर में फिर चुन कर अच्छे कंद खेत में लगा दिए जाते है. क्योंकि इस विधि के द्वारा बीज पैदा होने में तकरीबन डेढ़ साल लग जाते हैं, इसलिए इसे 2 वर्षीय विधि कहते हैं. इस विधि से रबी प्याज की प्रजातियों का बीजोत्पादन करते हैं.
प्याज कंद उगाने की उन्नत विधि
सही जलवायु : अच्छी पैदावार के लिए 14-21 डिगरी सेल्सियस तापमान, 10 घंटे लंबे दिन और 70 फीसदी आर्द्रता मुनासिब होती है.
जमीन और उस की तैयारी : बलुई दोमट, सिल्टी दोमट और गहरी भुरभुरी 6.5-7.5 पीएच वाली मिट्टी प्याज के लिए अच्छी होती है. 3-4 जुताइयां कर के खेत की अच्छी तैयारी कर लेते हैं.
बोआई और रोपाई का समय
खरीफ के प्याज की बोआई जूनजुलाई और रोपाई जुलाईअगस्त में करनी चाहिए. रबी के प्याज की बोआई अक्तूबरनवंबर और रोपाई दिसंबरजनवरी में करनी चाहिए.
दूरी : रोपाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 15 सेंटीमीटर और लाइन में पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हैं. रोपाई के फौरन बाद हलकी सिंचाई कर देनी चाहिए.
बीज की मात्रा : 1 हेक्टेयर की रोपाई के लिए 6-8 किलोग्राम बीज सही होता है.
खाद : गोबर की खाद 50 टन, कैल्सियम अमोनियम नाइट्रेट 400 किलोग्राम या यूरिया 200 किलोग्राम, सिंगल सुपर फास्फेट 300 किलोग्राम और म्यूरेट आफ पोटाश 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. नाइट्रोजन खाद को 2 भागों में रोपाई के 30 और 45 दिनों के अंतर पर देना चाहिए.
सिंचाई: सिंचाई समय पर जरूरत के मुताबिक 8-15 दिनों के अंतर पर करते हैं.
खरपतवार निकालना : अच्छी फसल के लिए शुरू में 2-3 बार खरपतवार निकालना आवश्यक होता है. रोपाई के 3 दिनों बाद या रोपाई से पहले 3.5 लीटर स्टांप खरपतवारनाशी 800 लीटर पानी में डाल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से खरपतवार खत्म करने में मदद मिलती है.
फसल सुरक्षा: प्याज में थ्रिप्स नामक कीट लगने पर 500 लीटर पानी में 750 मिलीलीटर मैलाथियान या 375 मिलीलीटर मोनोक्राटोफास या सैंडोविट मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करते हैं.
स्टेमफिलियम झुलसा और पर्पल ब्लाच रोग से बचाव के लिए डाईथेन एम 45 या इंडोफिल एम 45 की 2.5 किलोग्राम मात्रा या कवच की 2 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करते हैं.
खुदाई : 50 फीसदी पत्तियां जमीन पर गिरने के 1 हफ्ते बाद खुदाई करने से भंडारण में होने वाली हानि कम होती है. खुदाई कर के पौधों को कतारों में रख कर सुखा लेते हैं. पत्तों को गर्दन से 2.5 सेंटीमीटर ऊपर से अलग कर लेते हैं और फिर 1 हफ्ते तक सुखाते हैं.
कंदों को सीधे सूर्य की रोशनी में नहीं सुखाना चाहिए और भीगने से बचाना चाहिए, वरना भंडारण में काफी नुकसान होता है.
भंडारण : अच्छी, समान रंग की पतली गर्दन वाली, दोफाडे़ रहित प्याजों का भंडारण करते हैं. 4.5 सेंटीमीटर से 6.5 सेंटीमीटर व्यास के प्याज कंद बीज उत्पादन के लिए सही होते हैं. उन्हीं का भंडारण करते हैं. इस से छोटे व बड़े कंदों को बाजार में बेच देना चाहिए.
गांठों का चयन और बोआई : बीजोत्पादन के लिए 4.5 से 6.5 सेंटीमीटर व्यास वाले कंद लगाने से पैदावार अच्छी होती है. कंद एक जैसे और स्वस्थ होने चाहिए.
बीजोत्पादन के लिए कंदों को लगाने का समय : नवंबर का पहला हफ्ता या दिसंबर के मध्य तक का समय बीज उत्पादन के लिए होता है. रबी प्रजातियों को नवंबर के मध्य और खरीफ की प्रजातियों को दिसंबर मध्य तक लगाना चाहिए. चुने हुए कंदों का एक तिहाई हिस्सा काट कर गांठों को 0.1 फीसदी कार्बेंडाजिम के घोल में डुबा कर लगाया जाता है. कंदों को अच्छी तरह तैयार किए गए खेतों में समतल क्यारियों में 45×30 सेंटीमीटर की दूरी पर 1.5 सेंटीमीटर गहरा लगाया जाना चाहिए. बोआई के बाद हलकी सिंचाई करनी चाहिए.
1 हेक्टेयर जमीन में लगने के लिए तकरीबन 25-30 क्विंटल कंद काफी होते हैं. खरीफ के प्याज को लगाने से पहले कंदों को 1 फीसदी केएनओ के घोल में मिला कर रखें, इस से अंकुरण अच्छा होता है.
खाद व उर्वरक : कंदों को लगाने से 20-25 दिनों पहले 20 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिला देनी चाहिए. बाद में 100 किलोग्राम यूरिया, 300 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 100 किलोग्राम म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में कंदों के लगाने के स्थान पर खुरपी से बनाए गए गड्ढों में अच्छी तरह मिलाने के बाद कंदों को लगाते हैं. यदि ऐसा न किया जाए तो कंद खाद के संपर्क में आने पर सड़ने शुरू हो जाते हैं. कंदों के लगाने के 30 दिनों बाद 100 किलोग्राम यूरिया या 200 किलोग्राम किसान खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पौधों की जड़ों के पास मिला देते हैं.
राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान ने अपने प्रयोगों द्वारा पूसा रेड की गांठों को 30×45 सेंटीमीटर की दूरी पर लगा कर और 60 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर दे कर करनाल और नासिक क्षेत्रों में सब से अच्छी बीज की पैदावार हासिल की है. नासिक में एग्रीफाउंड डार्क रेड प्रजाति के बीजोत्पादन में 30×30 सेंटीमीटर दूरी रखने और 120 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से डालने से ज्यादा पैदावार मिली है. खेत में 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पीएसबी का इस्तेमाल भी करना चाहिए.
खरपतवारनाशक दवाओं का इस्तेमाल : स्टांप प्रति हेक्टेयर 3.5 लीटर की दर से कंद लगाने से पहले क्यारियों में छिड़कते हैं. 1 बार खरपतवारों को हाथों से निकालते हैं, इस से खरपतवारों पर नियंत्रण रहता है और पैदावार भी अच्छी होती है.
सिंचाई व फसल की देखभाल : मौसम व मिट्टी के अनुसार हर 7-10 दिनों के अंतर पर बराबर सिंचाई करनी चाहिए. बोआई के 2 महीने बाद पौधों की जड़ों के पास मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए.
इस से उन्हें सहारा मिलता है और फूल निकलते समय गिरने से बच जाते हैं. ड्रिप इरीगेशन से भी प्याज का बीजोत्पादन किया जाता है.
अलगाव दूरी : प्याज में परपरागण होता है, इसलिए जब 2 जातियों के प्रमाणित बीज पैदा करने हों, तो उन के बीच में कम से कम 500 मीटर की दूरी होनी चाहिए.
खराब पौधों की छंटाई : रोगग्रस्त और उन पौधों को जो उस जाति से अलग दिखाई पड़े जिस का बीज बनाया जा रहा है, फूल आने से पहले ही निकाल देना चाहिए. इस से शुद्ध बीजोत्पादन में मदद मिलती है.
परागण को सुधारने के लिए ध्यान देने वाली बातें : प्याज में परपरागण होता है, इसलिए मधुमक्खियों का अधिक संख्या में होना जरूरी होता है. अच्छी तरह पर परागण के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
* मधुमक्खियों की कालोनी खेत के बीच में रखनी चाहिए.
* फूल आने के समय और बीज बनने के समय सिंचाई बराबर करनी चाहिए.
* फूल आने के समय किसी ऐसी दवा का छिड़काव नहीं करना चाहिए, जो मधुमक्खियों के लिए हानिकारक हो.
* अधिक तेज हवा से भी मधुमक्खियां फूलों पर बैठ नहीं पाती इस से परागण अच्छी तरह नहीं होता.
तेज हवा से बचाने के लिए प्याज बीजोत्पादन के खेत के चारों तरफ ऊंचे पौधों की बाड़ लगानी चाहिए.
फसल की सुरक्षा : थ्रिप्स और शीर्ष छेदक कीटों के आक्रमण के समय इंडोसल्फान या जोलोन की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए.
बैगनी धब्बा और स्टेमफिलियम झुलसा रोग की रोकथाम के लिए मैंकोजेब की 2 किलोग्राम मात्रा को प्रति 800 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 दिनों के अंतर पर छिड़काव करना चाहिए. दवा छिड़कने से पहले घोल में चिपकने वाली दवा अवश्य मिला दें. नासिक और करनाल में मैंकोजेब 0.25 फीसदी और मोनोक्रोटाफास 0.05 फीसदी का 5-6 बार छिड़काव करने से रोगों का नियंत्रण अच्छा रहा और उत्पादन बढ़ा.
कटाई, मड़ाई, बीज की सफाई, सुखाई, भंडारण और पैकिंग : बोआई के 1 हफ्ते बाद अंकुरण शुरू हो जाता है. तकरीबन ढाई महीने बाद फूल वाले डंठल बनने शुरू हो जाते हैं. फूल गुच्छ बनने के 6 हफ्ते के अंदर ही बीज पक जाते हैं.
गुच्छोें का रंग जब मटमैला हो जाए और 20 फीसदी कैपसूल के काले बीज दिखाई देने लगें, तो गुच्छों को कटाई लायक समझना चाहिए.
फूलों के गुच्छे समान रूप से नहीं पकते, इसलिए उन्हीं गुच्छों को काटना चाहिए जिन के बीज छितरने वाले हों. कटे हुए गुच्छों को कैनवास के कपड़े पर या हवादार और छायादार जगह पर बने पक्के फर्श पर फैला कर सुखाना चाहिए. इस के बाद बीजों की सफाई मशीन से कर देनी चाहिए. यदि बीज अच्छी तरह साफ न हो पाएं तो ग्रेविटी सेपरेटर से दोबारा साफ करने चाहिए.
साफ बीजों को यदि टीन के डब्बों, अल्यूमिनियम फायलों या मोटे प्लास्टिक के लिफाफों में भरना हो, तो उन्हें 5 फीसदी नमी तक सुखाना चाहिए.
सुखाने के बाद बीजों को 2-3 ग्राम थाइरम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के लिफाफे या डब्बों में बंद करना चाहिए.
अगर बीजों को अच्छी तरह से सुखा कर बंद डब्बों या मोटे प्लास्टिक के लिफाफे में भरा गया हो, तो 18 से 20 डिगरी सेल्सियस तापमान और 30 से 40 फीसदी नमी में 2 सालों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
औसत उपज : औसत उपज 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.