हमारे यहां शरद ऋतु में उगाई जाने वाली सब्जियों में पत्तागोभी का विशेष स्थान है, फिर भी इस की खेती विभिन्न ऋतुओं में लगभग पूरे साल की जाती है. इन में खनिज पदार्थ, विटामिन ए, बी1 व सी अधिक मात्रा में पाया जाता है.
बीजोत्पादन पर्वतीय क्षेत्रों में 1800 से 3000 मीटर की ऊंचाई में सफलतापूर्वक किया जा सकता है. अच्छी गुणवत्ता वाली किस्मों के बीजोत्पादन के समय बीज की शुद्धता व गुणवत्ता बनाए रखने के लिए तकनीकी जानकारी का होना बेहद जरूरी है.
जलवायु
पत्तागोभी की फसल के लिए 15 से 20 डिगरी सैल्सियस तापमान की जरूरत होती है, जो पर्वतीय क्षेत्रों में अलगअलग ऊंचाई पर अलगअलग समय में होती है. पत्तागोभी के पौधों में फूल बनने के लिए कम से कम डेढ माह से दो माह तक 5 से 10 डिगरी सैल्सियस तापमान का मिलना बेहद जरूरी है. अगर यह तापमान लंबी अवधि तक मिलता है, तो पौधे में जल्दी फूल बनते हैं. इस के उलट अगर तापमान अधिक हो, तो पौधे वानस्पतिक अवस्था में ही रह जाते हैं.
भूमि
अच्छे जलधारण एवं जल निकास वाली भूमि पत्तागोभी के बीजोत्पादन के लिए सब से अच्छी होती है. पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 6.5 होना चाहिए.
भूमि की तैयारी व शोधन
पत्तागोभी का अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत में एक गहरी व एक हलकी जुताई करनी चाहिए. साथ ही, खेत की अच्छी तरह से तैयारी के बाद खेत को छोटीछोटी क्यारियों में बांट लेते हैं. इस के बाद मिट्टी में लगने वाली फफूंदी रोगों की रोकथाम के लिए ट्राईकोडर्मा जैविक फफूंदीनाशक से भूमि शोधन करना चाहिए.
उन्नतशील किस्में
अगेती किस्में (सितंबर माह): अर्ली ड्रम हैड, प्राइड औफ इंडिया, गोल्डन एकड़, पूसा मुक्ता, क्रांति आदि प्रमुख किस्में हैं.
मध्य व पछेती किस्में (अक्तूबर माह): क्विस्टो, पूसा ड्रम हैड, लेट लार्ज ड्रम हैड, लेट ड्रम हैड, ऐक्सप्रैस, हाईब्रिड 10, सलेक्शन 8 आदि प्रमुख किस्में हैं.
पत्तागोभी का व्यावसायिक व सफल बीज उत्पादन की दृष्टि से गोल्डन एकड़ और ग्रीन ऐक्सप्रैस 2 प्रमुख किस्में हैं. पत्तागोभी का औसत वजन 750 ग्राम से 1000 ग्राम तक होता है.
बीज उत्पादन तकनीक
पत्तागोभी का बीज उत्पादन पर्वतीय क्षेत्रों में किया जाता है. पत्तागोभी का आनुवांशिक शुद्ध बीज प्राप्त करने के लिए पत्तागोभी व गोभीवर्गीय 2 किस्मों के मध्य 1000 मीटर की दूरी रखना अनिवार्य है. बीज उत्पादन करने के लिए 2 मौसमों की आवश्यकता होती है. पहले मौसम में बंद और दूसरे मौसम में बीज का उत्पादन होगा. इसलिए पत्तागोभी का बीज उत्पादन 2 तरीकों से किया जाता है.
अ. बंद से बीज बनाना: इस विधि में नवंबरदिसंबर माह में पूरी तरह से विकसित बंद उखाड़ कर दोबारा 60×60 सैंटीमीटर की दूरी पर प्रतिरोपित करते हैं. पत्तागोभी में बीज उत्पादन के समय फूल और बीज का सुगमता से उत्पादन के लिए 3 विधियों को अपनाया जाता है:
स्टंप विधि: इस विधि में बंद को आधार के ठीक नीचे धारदार चाकू से काटा जाता है, जिस से तने को पत्तियों के बाहरी आवरण/घेरे के साथ रखा जाता है.
केंद्रीय कोर अक्षुण्ण विधि के साथ स्टंप: इस विधि में बंद को ऊपर से नीचे की ओर चारों तरफ से लंबवत काटा जाता है, ताकि केंद्रीय कोर क्षतिग्रस्त न हो.
सिर अक्षुण्ण विधि: इस विधि में बंद को ऊपर से 2 चीरे इस प्रकार से लगाए जाते हैं कि उस के सिर पर धन या क्रौस का कट बन जाए.
ब. बीज से बीज बनाना: इस विधि में बंदों को दूसरी क्यारी में स्थानांतरित नहीं किया जाता है, बल्कि शुरू में ही 60×60 सैंटीमीटर की दूरी पर प्रति रोपित किया जाता है.
बीजों का स्रोत व उपचार
पत्तागोभी का सफल बीजोत्पादन करने के लिए सही स्रोत से ही बीज प्राप्त करना चाहिए, जिस से उस की शुद्धता बनाए रखना आसान रहे, अच्छी अंकुरण क्षमता के साथ बीज कवकनाशी रसायनों से शोधित होना चाहिए. प्रजनक, आधारीय बीज किसी सरकारी संस्था व कृषि विश्वविद्यालय से प्राप्त करना चाहिए.
बीज दर एवं नर्सरी प्रबंध
पत्तागोभी की अच्छी पौध तैयार करने के लिए पौधशाला खुले स्थान पर बनानी चाहिए और हर साल पौधशाला तैयार करने के लिए नई जगह चुननी चाहिए. कैप्टान नामक रसायन के 0.3 फीसदी के घोल से 5 लिटर प्रति वर्गमीटर की दर से पौधशाला लगाने के लिए चुनी गई भूमि को उपचारित करना चाहिए और बीज को पंक्तियों में 5 से 6 सैंटीमीटर की दूरी पर 1.0 से 1.5 सैंटीमीटर की गहराई में लगाते हैं. पौधशाला की क्यारियां एक मीटर से अधिक चैड़ी नहीं होनी चाहिए और क्यारियां जमीन से 10 से 15 सैंटीमीटर ऊंची होनी चाहिए.
पौधशाला के लिए एक नाली क्षेत्र में 10 से 12 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है और रोपाई करने के लिए 5 से 6 वर्गमीटर पौध क्षेत्र पर्याप्त होता है. पौधशाला में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करते रहना चाहिए और तैयार की गई पौध 4 से 5 सप्ताह में रोपाई के योग्य हो जाती है.
पौध रोपण
पत्तागोभी का बीज उत्पादन के लिए पौध रोपण के लिए पौध से पौध की दूरी 60 सैंटीमीटर और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सैंटीमीटर रखते हैं, जिस से अच्छा व गुणकारी शुद्ध बीज प्राप्त किया जा सके.
खाद एवं उर्वरक
पत्तागोभी को बीजोत्पादन के लिए 4 से 5 क्ंिवटल सड़ी गोबर की खाद, 2.5 किलोग्राम डीएपी, 3 किलोग्राम म्यूरेट औफ पोटाश एक नाली क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है. गोबर की खाद, डीएपी व पोटाश की पूरी मात्रा और यूरिया की एकतिहाई मात्रा पौध रोपण से पहले अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दी जाए. यूरिया की बची मात्रा की आधी मात्रा रोपाई से 25 से 30 दिन बाद और शेष भाग फूल की शाखाएं फूटते समय जमीन में मिला देनी चाहिए.
प्रथक्करण
पत्तागोभी एक परसेचित फसल है. प्रमाणित बीज उत्पादक के लिए पत्तागोभी की 2 किस्मों या गोभीवर्गीय फसलों के खेतों के बीच की दूरी कम से कम 1.5 किलोमीटर रखनी चाहिए.
कटाई
पत्तागोभी की फलियां जब हलके हरे रंग की हो जाए, तो उन्हें टहनियों से अलग कर लेना चाहिए.
मंड़ाई
कटी हुई टहनियों को 4 से 5 दिन तक ढेर में छायादार जगह पर रखने के पश्चात फलियों को बोरी में भर कर उन्हें धूप में सुखाने के बाद मंडाई करते हैं.
बीज को सुखाना
पत्तागोभी के बीज में नमी को सुरक्षित स्तर तक लाने के लिए उन को अच्छी तरह साफ कर धूप में सुखाते है, जब तक बीज की नमी 7 से 8 फीसदी तक न आ जाए. इस के बाद बीज का श्रेणीकरण करते हैं, ताकि उच्च गुणवत्ता वाला बीज अलग किया जा सके.
उपज
असिंचित पर्वतीय क्षेत्रों में 8 से 10 किलोग्राम बीज एक नाली क्षेत्र में उत्पादित हो जाती है. मध्यम ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों में पत्तागोभी की फसल रोपाई से लगभग 320 से 330 दिन में पक कर तैयार हो जाती है.
बीज उत्पादन के चरण
ब्रीडर सीड = फाउंडेशन सीड = प्रमाणित सीड
प्रमुख कीट की रोकथाम
माहू: इस कीट के नियंत्रण के लिए फूल आने से पूर्व मार्च माह में 15 मिलीलिटर रोगोर नामक कैमिकल को 15 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करते हैं.
गोभी की सूंड़ी: गोभी की सूंड़ी के नियंत्रण को इमिडाक्लोप्रिड नामक कैमिकल के 0.04 फीसदी घोल छिड़क कर नष्ट किया जा सकता है.
कटवर्म कीट: इस कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफास नामक कैमिकल के 0.2 फीसदी घोल को छिड़क कर नष्ट किया जा सकता है.
बीमारियों की रोकथाम
आर्द्र पतन: रोग नर्सरी अवस्था में लगता है. इस में पौधें गलने लगते हैं.
नियंत्रण: नियंत्रण के लिए मृदा का कैप्टान/फार्मलिन से रासायनिक उपचार करते हैं , क्यरियों में समुचित जल निकास की व्यवस्था होनी चाहिए, बीज घना नहीं बोना चाहिए और हर साल पौधशाला का स्थान बदलते रहें.
काला विगलन: बीजाणु बीज की सतह पर, उस के अंदर और पौधे के मलबे में पाए जाते हैं.
नियंत्रण: रोगरहित बीजों को लगाना चाहिए, लंबा फसल चक्र अपनाना चाहिए और बीज को गरम पानी से उपचार करना चाहिए.