तिलहनी फसलों में तिल एक प्रमुख फसल है, जिसे कम लागत और सीमित संसाधनों में उगा कर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है. तिल का क्षेत्रपल धीरेधीरे बढ़ रहा है. डायरैक्टोरेट औफ इकोनौमिक्स और सांख्यिकी, भारत सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार, देश में साल 2019 में तिल का कुल क्षेत्रफल 1.3 मिलियन हेक्टेयर और कुल उत्पादन 3.99 लाख मिलियन टन रिकौर्ड किया गया, जबकि साल 2018 में कुल उत्पादन 1.78 लाख मिलियन टन रिकौर्ड किया गया था.

देश में उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश प्रमुख तिल उत्पादक राज्य हैं. साल 2019 में उत्तर प्रदेश में तिल का कुल क्षेत्रफल 4.17 लाख हेक्टेयर, कुल उत्पादन 99 हजार मिलियन टन और कुल उत्पादकता 239 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रिकौर्ड की गई.

एक रिपोर्ट के अनुसार, तिल के क्षेत्रफल और उत्पादन की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के 10 जिलों (झांसी, हमीरपुर, महोबा, जालौन, बांदा, हरदोई, उन्नाव, फतेहपुर, सीतापुर और शाहजहांपुर) में झांसी अग्रणी रहा है.

तिल की उन्नत खेती

तिल की फसल से अधिक उपज प्राप्त करने में भूमि का चुनाव, खेत की तैयारी, खाद और उर्वरक की संतुलित मात्रा, सही समय पर रोगों और कीटों की पहचान, उन का निदान इत्यादि विधियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है.

भूमि का चुनाव और खेत की तैयारी

अधिक पैदावार के लिए उत्तम जल निकास वाली भूमि तिल की फसल के लिए अच्छी मानी जाती है, क्योंकि अधिक जल भराव की दशा में पौधे सड़ जाते हैं और फसल खराब हो जाती है.

बीज बोआई से पहले खेत को अच्छी तरह से तैयार कर लेना चाहिए. 2-3 जुताइयां मिट्टी पलटने वाले हल से कर के भूमि को समतल बना लेना चाहिए. खेत की तैयारी के दौरान की 5 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी हुई खाद, नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा भूमि में मिला कर पाटा लगा देना चाहिए.

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