गन्ने की फसल किसानों के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकती है अगर वे वैज्ञानिक तरीके से गन्ने की खेती करें.
देश के अनेक खेती के माहिर वैज्ञानिक किसानों के लिए लगातार काम कर रहे हैं. इस के तहत नई किस्म के बीजों पर शोध का काम चल रहा है. इस के नतीजे काफी चौंकाने वाले मिल रहे हैं.
गन्ने की खेती ज्यादातर उत्तर प्रदेश में की जाती है, लेकिन पिछले कुछ सालों से हो रहे घाटे के चलते गन्ने की फसल से किसानों का मोह भंग हो रहा है. खेती के माहिर विशेषज्ञ गन्ने की खेती ट्रैंच विधि से करने की सलाह दे रहे हैं. इस से किसानों का फायदा बढ़ सकता है.
खेती के माहिरों का मानना है कि अगर किसान ट्रैंच विधि से गन्ने को बोएं तो सामान्य विधि के मुकाबले 30-40 फीसदी ज्यादा उपज मिल सकती है.
इस विधि से बोआई शरद, वसंत व देर वसंत ऋतु में आसानी से की जा सकती है. अगर किसान इस विधि से फसल करते हैं तब उन्हें परंपरागत विधि से ज्यादा फायदा होगा.
ट्रैंच विधि है क्या
इस तकनीक में खेत तैयार करने के बाद ट्रैंच ओपनर से एक फुट चौड़ी और 25-30 सैंटीमीटर गहरी नाली बनाते हैं. एक नाली से दूसरी नाली के बीच की दूरी 120 सैंटीमीटर होनी चाहिए.
नाली बनाने के बाद सब से नीचे खाद डालते हैं. खाद की मात्रा एक हेक्टेयर में 180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस, 60 किलोग्राम पोटाश और 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट होती है. बोआई के समय इस में नाइट्रोजन की कुल मात्रा का एकतिहाई इस्तेमाल करते हैं. बाकी फास्फोरस, पोटाश और जिंक सल्फेट डाल कर बोते हैं.
फसल तभी अच्छी होती है जब उसे समय पर बोया जाए. यहां सब से बड़ी परेशानी यही है कि उन्हें समय का खयाल ही नहीं रहता, जिस से लागत ज्यादा आने के साथ ही उत्पादन भी कम हो जाता है इसलिए किसी भी फसल की बोआई में समय बहुत अहम होता है.
अच्छा बीज ही चुनें
गन्ने के बीज के लिए ऐसे गन्ने को चुनें, जो एकदम सेहतमंद हों और तकरीबन 8 से 10 महीने के हों. ध्यान दें कि गन्ने के बीज में किसी तरह का रोग व कीट न लगा हो. इस के अलावा यह ध्यान रखना होगा कि बीज के लिए ऐसे गन्ने को चुनें जिस में सही मात्रा में पोषक तत्त्व हों. गन्ना खेत में गिरा हुआ नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस तरह के गन्ने में रोग लगने का अंदेशा ज्यादा होता है. साथ ही, जो गन्ना आप बोने के लिए ले रहे हैं, वह बहुत पतला नहीं हो. इस से उत्पादन प्रभावित होता है.
बीज का उपचार
गन्ने को बोने से पहले बीज को उपचारित करना बहुत जरूरी है. इस की वजह यह है कि गन्ने के बीज में दीमक व दूसरे कीड़े नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे. बीज को उपचारित करने के लिए बाविस्टिन के 0.1 फीसदी घोल (112 ग्राम दवा को 112 लिटर पानी में मिला कर) में गन्ने के जो टुकड़े हों, उन्हें कम से कम 5 मिनट तक डुबोना चाहिए, उस के बाद बोना ज्यादा बेहतर रहेगा.
बीज की दर
प्रति हेक्टेयर गन्ने की बोआई के लिए तकरीबन 70-75 क्विंटल गन्ने की जरूरत होती है. नाली में 2 आंख यानी गन्ने की गांठ या पोर 10 गन्ने के टुकड़े प्रति मीटर की दर से डालने चाहिए.
परंपरागत तरीके में एक के बाद एक गन्ने के टुकड़े डालते जाते थे, जबकि ट्रैंच विधि में गन्ने के टुकड़े सीढ़ीनुमा तरीके से डालने चाहिए. इस से पैदावार ज्यादा होती है.
बोआई व जमीन का उपचार
नाली में 2 आंख यानी गन्ने की गांठ या पोर के उपचारित 10-12 गन्ने के टुकड़े प्रति मीटर की दर से सीढ़ीनुमा तरीके से इस तरह डालें कि उन की आंखें अगलबगल में हों. दीमक व अंकुर बेधक नियंत्रण के लिए गन्ने के टुकड़ों के ऊपर रीजैंट 20 किलोग्राम या फोरेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का छिड़काव या क्लोरोपाइरीफास 5 लिटर प्रति हेक्टेयर को 1875 लिटर पानी के साथ गन्ने के टुकड़ों पर छिड़काव करना चाहिए.
गन्ने के टुकड़ों को ढकने में सावधानी बरतनी चाहिए, जिस से गन्ने के टुकड़ों के ऊपर 2-3 सैंटीमीटर से ज्यादा मिट्टी न पड़े. इस के उलट सामान्य बोआई में गन्ने के ऊपर ज्यादा मात्रा में मिट्टी के अंदर गन्ने के टुकड़ों को दबा देते थे, जिस से कम मात्रा में अंकुरण होता था.
गन्नों का जमाव
इस विधि से बोआई करने में किसानों को काफी फायदा होता है, क्योंकि ज्यादातर गन्ने के बीजों में अंकुरण आ जाता है. बोने के बाद एक हफ्ते में जमाव शुरू हो जाता है और एक माह में पूरा हो जाता है.
इस विधि से जमाव 80-90 फीसदी तक होता है जबकि सामान्य विधि से 40 से 50 फीसदी तक ही होता था. जमाव ज्यादा व समान रूप से होने और गन्ने के टुकड़ों को ७सीढ़ीनुमा तरीके से रखने में नाली में दोहरी लाइन की तरह जमाव दिखता है. इस वजह से कोई खाली जगह नहीं होती.
ऐसे करें सिंचाई
बोआई के समय खेत में नमी की मात्रा देख कर पहली सिंचाई बोने के तुरंत बाद करें. अगर खेत में नमी की दशा में बोआई की गई हो तो पहली सिंचाई 2-3 दिन पर भी कर सकते हैं. मिट्टी के मुताबिक गरमियों में सिंचाई करना जरूरी होता है. बरसात में 20 दिन तक बारिश न होने की दशा में सिंचाई जरूर करें.
किसानों को ट्रैंच विधि से सिंचाई करने में प्रति सिंचाई 60 फीसदी तक पानी की बचत होती है. इस की वजह यह है कि पूरे खेत में पानी नहीं भरना होता, बल्कि सिर्फ नालियों में ही सिंचाई करनी होती है. इस से किसानों को पूरे सीजन में तकरीबन 20 घंटे सिंचाई की बचत होती है.
खरपतवार पर नियंत्रण
नाली में गुड़ाई कर के खरपतवार नियंत्रण करना कठिन होता है, इसलिए मेट्रीब्यूजीन 725 ग्राम प्रति हेक्टेयर और 24डी सोडियम 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर को 1000 लिटर पानी में जरूरत पड़ने पर 30 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव करने चाहिए.
अगर खेती छोटे रकबे में की जा रही हो तब किसान खरपतवार को परंपरागत तरीके से निकाल सकते हैं.
मिट्टी चढ़ाना
जून के आखिरी हफ्ते में बैलचालित ट्रैंच ओपनर से जड़ों पर मिट्टी चढ़ानी चाहिए. इस से नाली की जगह पर मेंड़ और मेंड़ की जगह पर नाली बन जाती है जो पानी निकालने का काम करती है.
ट्रैंच विधि से फायदा
खेतीकिसानी के माहिर इस विधि को किसानों के लिए काफी अच्छा बता रहे हैं, क्योंकि इस विधि से खेती करने में पानी की 60 फीसदी तक बचत होती है. इस से किसानों की लागत कम हो जाती है. साथ ही, गन्ने की फसल के साथ दूसरी फसल भी बोई जा सकती है, ऐसा करने से किसानों की लागत पहले ही निकल आएगी.
* इस विधि से फसल का जमाव 80-90 फीसदी तक होता है, जबकि सामान्य विधि में 35-40 फीसदी तक ही होता है.
* प्रति सिंचाई 60 फीसदी पानी की बचत होती है.
* उर्वरकों की बरबादी नहीं होती है.
* गन्ना अपेक्षाकृत कम गिरता है.
* मिल योग्य गन्ने एकजैसे मोटे व लंबे होते हैं. इस वजह से परंपरागत विधि की तुलना में 35-40 फीसदी तक ज्यादा उपज व 0.5 इकाई ज्यादा चीनी हासिल होती है.
* सामान्य विधि की तुलना में इस विधि से पेड़ी गन्ने की पैदावार 20-25 फीसदी ज्यादा होती है.
* मिट्टी में लगने वाले कीड़े, ह्वाइट ग्रब और दीमक का हमला होता है.
* इस विधि से खराब गन्ने के कुप्रभाव को कम किया जा सकता है, क्योंकि पेड़ी के बाद जहां गन्ना नहीं होता, वहां पर गन्ने के कुप्रभाव को कम किया जा सकता है, क्योंकि पेड़ी के बाद गन्ने की बोआई फिर से की जा सकती है.
* उत्तर भारत में उपज की कूवत व वास्तविक उपज में 35-40 फीसदी तक का फर्क होता है, जिसे इस विधि को अपना कर आसानी से उपज की कूवत को पूरा किया जा सकता है.
* क्षेत्रफल को बढ़ाए बिना ही गन्ने का उत्पादन बढ़ाने में यह विधि किसानों के लिए ज्यादा फायदेमंद है.