चना, गेहूं, मटर, मूंग, चावल, बाजरा, कोदो, जौ, मक्का, ज्वार, कुटकी, रागी, उड़द वगैरह तमाम तरह की फसलें पुराने समय में काफी बडे़ रकबे में उगाई जाती थीं. इन लघु धान्यों को अनाज भी कहा जाता है.

दानों के आकार के आधार पर मोटे अनाजों को 2 भागों में बांटा गया है : पहला मोटा अनाज, जिन में ज्वार और बाजरा आते हैं. दूसरा है लघु धान्य अनाज, जिन में बहुत छोटे दाने वाले मोटे अनाज जैसे रागी (फिंगरमिलेट), कंगनी (फौक्स टेलमिलेट), कोदो (कोदोमिलेट), चीना (प्रोसोमिलेट), सांवा (बार्नयार्ड मिलेट) और कुटकी (लिटिलमिलेट) वगैरह.

मोटे अनाजों की खेती करने के अनेक फायदे हैं जैसे:

* सूखा सहन करने की कूवत.

* पकने की छोटी अवधि.

* उर्वरकों, खादों की न्यूनतम मांग के कारण कम लागत.

* कीटों से लड़ने की रोग प्रतिरोधक कूवत.

लघु धान्य फसलें

प्रोसोमिलेट : यह सब से ज्यादा पौष्टिक और स्वादिष्ठ अनाज है. इस की खेती सभी तरह की मिट्टी में की जा सकती है. अन्य अनाजों की तुलना में यह एक लघु मौसमी फसल होती है, जो बोआई के 60 से 75 दिनों में पक जाती है.

फिंगरमिलेट : यह लाल रंग का दानेदार अनाज है. इस का फसल चक्र 3 से 6 महीनों में पूरा होता है.

बता दें कि दक्षिण भारत में इस की खेती बहुतायत की जाती है. पोषक तत्त्वों की उपलब्धता के कारण इस में कैल्शियम और प्रोटीन बहुत ज्यादा मात्रा में पाया जाता है.

इस में पाई जाने वाली खूबियां इसलिए भी और ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं क्योंकि इस में सभी जरूरी अमीनो एसिड्स पाए जाते हैं, जिन की भरपाई इनसान द्वारा अपनी खुराक के द्वारा  होती है.

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