ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई से खेतों की उर्वराशक्ति, जल संवर्धन में वृद्धि एवं कीटों व रोगों के आक्रमण में भी कमी आती है.

इस मौसम में जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने पर खेत की ऊपर की मिट्टी नीचे और नीचे की मिट्टी ऊपर हो जाती है. इस जुताई से जो ढेले पड़ते हैं, वे धीरेधीरे हवा व बरसात के पानी से टूटते रहते हैं. साथ ही, जुताई से मिट्टी की सतह पर पड़ी फसल अवशेष और पत्तियां, पौधों की जड़ें एवं खेत में उगे हुए खरपतवार आदि नीचे दब जाते हैं, जो सड़ने के बाद खेत की मिट्टी में जीवाश्म, कार्बनिक खादों की मात्रा में बढ़ोतरी करते हैं, जिस से भूमि की उर्वरता स्तर, मिट्टी की भौतिक दशा और जल धारण करने की क्षमता में वृद्धि होती है.

ग्रीष्मकालीन में जुताई करने से खेत के खुलने से प्रकृति की कुछ प्राकृतिक क्रियाएं भी सुचारु रूप से खेत की मिट्टी पर प्रभाव डालती हैं. वायु और सूरज की किरणों का प्रकाश मिट्टी के खनिज पदार्थों को पौधों के भोजन बनाने में अधिक सहायता करते हैं. इस के अतिरिक्त खेत की मिट्टी के कणों की संरचना (बनावट) भी दानेदार हो जाती है, जिस से भूमि में वायु का संचार एवं जल धारण क्षमता बढ़ जाती है.

इस गहरी जुताई से तेज धूप से खेत के नीचे की सतह पर पनप रहे कीड़ेमकोड़े, बीमारियों के जीवाणु, खरपतवार के बीज आदि मिट्टी के ऊपर आने से खत्म हो जाते हैं. साथ ही, जिन खेतों में गेहूं व जौ की फसल में निमेटोड का प्रयोग होता है, वहां पर इस रोग की गांठें जो मिट्टी के अंदर होती हैं, जो जुताई करने से ऊपर आ कर कड़ी धूप में मर जाती हैं. इसलिए ऐसी जगहों पर ग्रीष्मकालीन जुताई करना बहुत जरूरी होता है.

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