ग्रीष्मकालीन जुताई से खरपतवार और फसल अवशेष दब कर मिट्टी में मिल जाते हैं और नुकसानदायक कीड़ेमकोड़े व उन के अंडे, दूसरे परजीवी, खरपतवार के बीज वगैरह मिट्टी के ऊपर आने से खत्म हो जाते हैं, साथ ही जिन जगहों या खेतों में गेहूं व जौ की फसल में निमेटोड का इस्तेमाल होता है, वहां पर इस रोग की गांठें जो मिट्टी के अंदर होती हैं, जो जुताई करने से ऊपर आ कर कड़ी धूप में मर जाती हैं. इसलिए ऐसी जगहों पर गरमी की जुताई करना बहुत जरूरी होता है.
बारानी खेती वर्षा पर निर्भर करती है, इसलिए बारानी हालात में वर्षा के पानी का अधिकतम संचयन करने के लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना बहुत जरूरी है.
अनुसंधानों से भी यह साबित हो चुका है कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से 31.3 फीसदी बरसात का पानी खेत में समा जाता है. मानसून की वर्षा के बाद हैरो, कल्टीवेटर या रोटावेटर से जुताई करने पर खेत भरपूर हो कर बोआई या रोपाई के लिए तैयार हो जाता है.
ग्रीष्मकालीन जुताई के फायदे
* ग्रीष्मकालीन जुताई करने से मिट्टी की ऊपरी कठोर परत टूट जाती है और गहरी जुताई से वर्षा जल की मिट्टी में प्रवेश क्षमता व पारगम्यता बढ़ जाने से खेत में ही वर्षा जल का संरक्षण हो जाता है. नतीजतन, पौधों की जड़ों को कम प्रयास में मृदा जल का संरक्षण हो जाता है. पौधों की जड़ों को कम प्रयास में मृदा जल की अधिक उपलब्धता प्राप्त होती है.
* मृदा वायु संचार में सुधार होने से मृदा सूक्ष्म जीवों का बहुगुणन तीव्र गति से होता है. नतीजतन, मृदा कार्बनिक पदार्थ का अपघटन तीव्र गति से होने से अगली फसल को पोषक तत्त्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है.
* रबी फसलों में इस्तेमाल किए गए कीटनाशकों व खरपतवारनाशकों का असर जमीन में गहराई तक हो जाता है. ग्रीष्मकालीन जुताई कर देने से तेज धूप से ये जहरीले रसायन विघटित हो जाते हैं, जिस से खेत में उन का प्रभाव खत्म हो जाता है.
* खेत में इस्तेमाल किए गए रासायनिक उर्वरकों का अधिकतम हिस्सा अघुलनशील हालत में खेत में पड़ा रह जाता है, जो धीरेधीरे खेत को बंजर बनाता है. गरमी की जुताई से सूरज की तेज धूप से ये रसायन विघटित हो कर घुलनशील उर्वरकों में बदल जाते हैं और अगली फसल को पोषण देते हैं.
* मिट्टी के पलट जाने से जलवायु का प्रभाव सुचारू रूप से मिट्टी में होने वाली प्रतिक्रियाओं पर पड़ता है और हवा व सूरज की रोशनी की सहायता से मिट्टी में विद्यमान खनिज अधिक सुगमता से पौधे के भोजन में बदल जाते हैं.
कीट और रोग नियंत्रण में सहायक
* ग्रीष्मकालीन जुताई कीट और रोग नियंत्रण में सहायक है. हानिकारक कीड़े व रोगों के रोगकारक भूमि की सतह पर आ जाते हैं और तेज धूप से नष्ट हो जाते हैं.
* पौधों के परजीवी निमेटोड बड़ेछोटे जीव हैं, जो सर्वव्यापी हैं और मिट्टी में रह कर हर आने वाली फसल को नुकसान पहुंचाते हैं और कभीकभी पूरी फसल नष्ट हो जाती है. गरमी की गहरी जुताई और फसल
चक्र इन के प्रबंधन की 2 मुख्य विधियां हैं.
* ग्रीष्मकालीन जुताई मिट्टी में जीवाणु की सक्रियता बढ़ाती है और यह दलहनी फसलों के लिए ज्यादा उपयोगी है.
* ग्रीष्मकालीन जुताई खरपतवार नियंत्रण में भी मददगार है. खरपतवारों के बीज गरमी और धूप से नष्ट हो जाते हैं.
* ग्रीष्मकालीन जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मिट्टी के कटाव में भारी कमी होती है यानी अनुसंधान के नतीजों में यह पाया गया है कि गरमी की जुताई करने से भूमि के कटाव में 66.5 फीसदी तक की कमी आती है.
* ग्रीष्मकालीन जुताई से गोबर की खाद और दूसरे कार्बनिक पदार्थ जमीन में अच्छी तरह मिल जाते हैं, जिस से पोषक तत्त्व शीघ्र ही फसलों को उपलब्ध हो जाते हैं.
* खेत में ढलान के आरपार जुताई करने से ढलान की निरंतरता में रुकावट आती है, जिस से वर्षा जल से मृदा कटाव नहीं होता. साथ ही, जुताई के बाद मिट्टी के मोटेमोटे ढेलों के रूप में होने से हवा द्वारा कटाव भी नहीं होता है.
इस का मतलब यह कि खरीफ फसलों के उत्पादन में गरमियों की जुताई सब से अहम होती है. जुताई का समय रबी फसल कटाई के फौरन बाद से ले कर मई महीने के आखिरी हफ्ते तक सही माना गया है. तय अवधि में जुताई करने पर फसलों की पैदावार बढ़ सकती है.