इस मौसम की खास फसल गेहूं है. ठंड व पाले का प्रकोप भी में चरम पर होता है. इस समय गेहूं फसल पर सब से ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है. 25 से 30 दिन के अंतर पर गेहूं में सिंचाई करते रहें. इस के अलावा खरपतवारों को भी समयसमय पर निकालते रहना चाहिए.
जौ की फसल का भी मुआयना करें. सिंचाई के अलावा जौ के खेतों की निराईगुड़ाई करना भी जरूरी है, ताकि तमाम खरपतवारों से नजात मिल जाए.
सरसों के खेतों की निराईगुड़ाई करें. अगर पौधों में फूल व फलियां आ रही हों, तो सिंचाई करना न भूलें. राई व सरसों की फसलों पर इस दौरान बालदार सूंड़ी का हमला हो सकता है. इस की रोकथाम के लिए उचित कीटनाशक दवा का छिड़काव करें. सरसों की फसल में इस समय चेंपा का भी प्रकोप होता है. इस की उचित तरीके से रोकथाम करें.
इस माह सरसों की फसल में फलियां बनने लगती हैं, इसलिए खेत में नमी जरूरी है. नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई जरूर करें. इस से दाने मोटे और ज्यादा लगेंगे.
आलू की अगेती फसल जनवरी माह में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है. जब पत्तियां व तने पीले पड़ने लगें, तो समझ लें कि आलू की फसल तैयार हो गई है.
मजदूरों से या आलू खुदाई मशीन पोेटैटो डिगर से भी आलू की खुदाई कर सकते हैं. इस के बाद आलू की ग्रेडिंग भी कर सकते हैं. आलू के ढेर को पुआल वगैरह से ढक कर रखना चाहिए, वरना हवापानी के संपर्क में आने पर आलू हरा हो जाता है.
चने व मटर के खेतों में फूल आने से पहले सिंचाई करें. ध्यान रखें कि इन फसलों में फूल बनने के दौरान सिंचाई करना मुनासिब नहीं होता. जब फूल पूरी तरह से आ चुके हों, तब फिर से सिंचाई करें.
चारा फसल बरसीम, रिजका व जई की हर कटाई के बाद सिंचाई करते रहें. इस से बढ़वार अच्छी होगी और उम्दा किस्म का चारा मिलता रहेगा. जई में कटाई के बाद यूरिया भी डालें.
फूलगोभी, पत्तागोभी व गांठगोभी इस समय तैयार हो चुकी होती है. अच्छी तरह से कटाईछंटाई कर के मंडी में भेजें व आगे के लिए बीज बनाने के लिए सेहतमंद पौधों का चुनाव करते रहें. इन्हें सुरक्षित रखें, ताकि उन से बीज भी तैयार किया जा सके.
मैदानी इलाकों में जनवरी माह के अंत तक फ्रैंचबीन बोई जा सकती है. झाड़ीनुमा किस्म जैसे पूसा सरवती के 35 किलोग्राम बीज को 2-2 फुट की लाइनों में और 8 इंच की दूरी पर पौधों को रोपें. लंबी ऊंची किस्म हेमलता के 15 किलोग्राम बीज को 3-3 फुट की लाइनों में और 1 फुट की दूरी पर पौधे रोपें.
पालक और मैथी की हर 15-20 दिन बाद कटाई करते रहें. पत्तेदार सब्जियों की फसल में कीट नियंत्रण के लिए दवा का प्रयोग कम से कम करें.
गन्ने की पेड़ी फसल व शरदकालीन बोआई वाले गन्ने की कटाई का काम पूरा करें. गन्ने की कटाई के दौरान निकली पत्तियों को जलाएं नहीं. इन पत्तियों को जमा कर के कंपोस्ट बनाने में इस्तेमाल करें.
गन्ने की पत्तियों को फसल में पलवार के लिए भी इस्तेमाल कर सकते हैं. ऐसा करने से खेत में काफी समय तक नमी बनी रहती है और खरपतवार भी ज्यादा नहीं निकलते हैं.
जनवरी के महीने में पाले से बचाव के लिए छोटे फलों वाले पौधों व सब्जियों की नर्सरी को टाट वाली बोरियों या घासफूस के छप्परों से सही तरीके से ढक दें.
आम के बाग का भी ध्यान रखें. मौसम आने पर उन में कोई कमी नहीं आनी चाहिए. संतरा, किन्नू, नीबू जैसे पेड़ों की कटाईछंटाई करें और कृषि वैज्ञानिकों से सलाह ले कर इन की देखभाल के जरूरी काम निबटाएं.
अंगूर की बेलों की काटछांट का काम इस महीने के आखिर तक हर हालत में निबटा लें. जगह हो, तो अंगूर की नई बेलें भी लगाएं. नई बेल लगाने के बाद सिंचाई करना जरूरी होता है.
जनवरी माह में अधिक ठंड होने के चलते पशुओं की भी देखभाल जरूरी है. उन्हें सूखी जगह पर रखें और ठंड से बचाव करें. उन को नियमित रूप से संतुलित आहार दें. पशुओं को कृमिनाशक दवाएं देना न भूलें. इस मौसम में पशुओं को गुड़ भी खिलाते रहें.
मुरगियों को ठंड से बचाने के लिए खास ध्यान दें. मुरगीघरों में बिछावन को गीला न होने दें. अधिक ठंड के समय बिजली के बल्बों को जला कर रखें.