दिनोंदिन बढ़ती हुई जनसंख्या व घटती कृषक जोत एक बड़ी चिंता का विषय है, जो हमें इस के बारे में चिंतन करने को विवश करता है, ताकि बढ़ती हुई जनसंख्या का भरणपोषण हो सके. साथ ही, आर्थिक लाभ में बढ़ोतरी हो और दूसरी तरफ मृदा का स्वास्थ्य भी बना रहे.

आज किसान अधिक उपज लेने के लिए अधिक मात्रा में पादप पोषक तत्त्वों का उपयोग कर रहे हैं.

उर्वरकों के इस अंधाधुंध प्रयोग से एक ओर मृदा का स्वास्थ्य दिनोंदिन खराब होता जा रहा है, वहीं दूसरी ओर उर्वरकों के दाम आसमान को छू रहे हैं, जैसे फास्फेटिक उर्वरक, यह उर्वरक रौक फास्फेट से बनता?है, लेकिन हमारे देश में उपलब्ध रौक फास्फेट में फास्फोरस की मात्रा बहुत कम है.

रौक फास्फेट से फास्फोरस उर्वरक बनाने के लिए 30 प्रतिशत से अधिक मात्रा वाला रौक फास्फेट दूसरे देशों जैसे मोरक्को, अफ्रीकी, अमेरिकन देशों से आयात करते हैं और छूट के साथ सरकार इसे किसानों को उपलब्ध कराती है, लेकिन अब एक ओर इस के दामों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बहुत इजाफा हुआ है, वहीं बाजार में इन उर्वरकों की उपलब्धता भी कम होती गई है.

वर्तमान समय की मांग है कि हम उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें, जिस से हमारी मृदा की उर्वरता व स्वास्थ्य लंबे समय तक बना रहे. इस के लिए सब से महत्त्वपूर्ण है, फसल बोआई से पूर्व मिट्टी का परीक्षण और उर्वरकों की मात्रा का चयन मिट्टी परीक्षण के परिणाम के आधार पर करना चाहिए.

मिट्टी परीक्षण क्यों जरूरी है

* मिट्टी में उपलब्ध पोषक तत्त्वों की मात्रा का पता लगाने के लिए.

* मिट्टी की अम्लीयता, लवणता और क्षारीयता की यथास्थिति को पहचानने के लिए.

* मिट्टी सुधारकों की मात्रा निर्धारण के लिए जैसे कि क्षारीयता में जिप्सम, अम्लीयता में चूना व अन्य कार्बनिक खादों का आकलन करना.

* मिट्टी की उपजाऊ शक्ति का पता लगाना और उसी के अनुसार खाद व उर्वरकों की मात्रा का निर्धारण करने के लिए.

* उर्वरकों के प्रयोग से होने वाले लाभ का आकलन करना और मिट्टी में मिलाए गए पोषक तत्त्वों का फसल उत्पादन पर प्रभाव मालूम करना.

* मिट्टी उर्वरता का मानचित्र तैयार करना और मिट्टी को पोषक तत्त्वों के अनुसार विभिन्न भागों में बांटना.

* मिट्टी में समय के साथसाथ होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन करना और उर्वरक वितरण में मार्गदर्शन करना.

प्रयोगशालाओं में मिट्टी व जल परीक्षण की आवश्यकता

वर्तमान समय में भारत के अधिकांश क्षेत्रों का पानी फसल सिंचाई के मापदंडों पर खरा नहीं उतरता है. मिट्टी की सेहत को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए मिट्टी परीक्षण के साथसाथ पानी की गुणवत्ता की जांच भी आवश्यक है.

सिंचाई जल के परीक्षण के लिए जल की वैद्युत चालकता, सोडियम अधिशोषण अनुपात, अवशिष्ट सोडियम कार्बोनेट, विषाक्त आयन जैसे बोरोन, फ्लोराइड और नाइट्रेट इत्यादि का परीक्षण प्रयोगशालाओं में मिट्टी के नमूनों में मुख्यत: मिट्टी का पीएच मान, वैद्युत चालकता, विनिमय योग्य सोडियम प्रतिशत (ईएसपी), जिप्सम की मात्रा, उपलब्ध नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, सल्फर, जैविक कार्बन और दूसरे सूक्ष्म तत्त्वों (जस्ता, लोहा, मैगनीज व कौपर) का परीक्षण किया जाता है.

मिट्टी परीक्षण कैसे करें?

यहां ध्यान रखने की बात यह है कि मिट्टी नमूना कैसे लें और कहां से लें, कितनी लें और कब लें. इस के बाद इस को कैसे परीक्षणशाला तक पहुंचाएं.

एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 15-20 मिट्टी नमूना एकत्र करना चाहिए. नमूने हमेशा टेढ़ेमेढ़े तरीके से खुरपी या फावड़े की मदद से लेना चाहिए. लेकिन अगर नमूने का मकसद सूक्ष्म पादप पोषक तत्त्वों के परीक्षण के लिए किया जा रहा है, तो लोहे की वस्तु का प्रयोग न करें.

इस के बाद ये भी ध्यान रखें कि मिट्टी जांच का उद्देश्य फसल है या बागबानी और फल वाले पेड़ हैं, क्योंकि मिट्टी में उपस्थित पौधे की जड़ों से पेड़पौधों को मिलने वाले पोषक तत्त्वों की मात्रा को मापते हैं.

मिट्टी नमूना कृषि फसलों के लिए 15 सैंटीमीटर की गहराई से लेते हैं. इस के लिए खुरपी की सहायता से ‘ङ्कब आकार का गड्ढा खोदते हैं और दोनों दिशाओं में 2.5 सैंटीमीटर की पतली परत नमूने के लिए ले लेते हैं.

एक खेत से 15-20 नमूने को मिला कर ढेर बना लेते हैं. इस के बाद इस ढेर के दो विपरीत भाग को हटा कर बाकी मिट्टी को तब तक इस प्रक्रिया को दोहराते रहते हैं, जब तक कि मिट्टी आधा किलोग्राम न रह जाए.

इस के बाद इस मिट्टी नमूने को पेड़ की छांव में भलीभांति सुखा लेना चाहिए. इस के बाद इस में नमूने की परची लगा कर परीक्षणशाला को भेज देनी चाहिए. लेकिन ध्यान रहे कि परची पर फसल का नाम (आगामी या पूर्वी) खाद की मात्रा, खरपतवार व कीटनाशकों का उपयोग, गोबर खाद का उपयोग व सिंचाई इत्यादि के बारे में जरूर लिखें.

Soil Trstingनमूना तैयार करना

खेत से लिए गए सभी नमूनों को एक बिलकुल साफ सतह पर या कपड़े या पौलीथिन शीट पर रख कर अच्छी तरह मिला कर एकसमान कर लें. पूरी मात्रा को एकसमान मोटाई में फैला लें और हाथ से 4 बराबर भागों में बांट लें. आमनेसामने वाले 2 भाग हटा दें और शेष 2 को फिर मिला कर 4 भागों में बांट दें. यह क्रिया तब तक दोहराते रहें, जब तक मिट्टी की कुल मात्रा लगभग आधा किलोग्राम न बच जाए.

सावधानियां

* मिट्टी का नमूना हमेशा टेढ़ेमेढ़े तरीके से लें.

* नमूना मेंड़, पानी का स्रोत, गोबर खाद का ढेर आदि के पास से न लें.

* मिट्टी नमूने को पेड़ की छांव में ही सुखावे.

* मिट्टी नमूने को एकत्रित करने के लिए उर्वरकों के खाली बैग का उपयोग न करें.

* यंत्र जंग व खुरदरी सतह वाला नहीं होना चाहिए.

* नमूना लेने से पहले यंत्र को अच्छी तरह से पानी से साफ करना चाहिए.

फसल उत्पादन में पोषक तत्त्वों की भूमिका

प्राथमिक पोषक तत्त्वों जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम को मुख्य रूप से फसलों के उर्वरक कार्यक्रम में शामिल किए जाते हैं. पौधों में नाइट्रोजन, अमीनो एसिड, विटामिन, प्रकाश संश्लेषण व प्रोटीन के गठन के लिए आवश्यक है और नाइट्रोजन, की कमी से पौधों की बढ़वार बहुत कम, पौधे पतले, पीले व फसल का फुटाव कम होता है.

पुरानी पत्तियां कम उम्र में पीली पड़ जाती है. फास्फोरस पौधों के जल्दी जड़ गठन, प्रकाश संश्लेषण, श्वसन ऊर्जा भंडारण और हस्तांतरण को नियंत्रण कर के फसल, उत्पादों की भी गुणवत्ता को बढ़ाता है.

फास्फोरस की कमी से पौधों में जड़ें कम बनती हैं और पौधों की बढ़वार कम हो जाती है. पौधों का रंग नीला हरा अथवा बैंगनी दिखाई देता है.

पोटैशियम पौधों में पानी के उपयोग की दक्षता को बढ़ाता है और पौधों में रोग प्रतिरोध क्षमता व बीज और फल की गुणवत्ता को बढ़ाता है. पोटाश की कमी से पुरानी पत्तियां पूरी तरह से भूरी हो जाती हैं और जली हुई सी दिखाई देती हैं. सल्फर एक द्वितीयक पोषक तत्त्व है, जो अमीनो एसिड का एक अभिन्न हिस्सा है और तिलहनी फसलों में तेल की मात्रा व उपज को बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है.

सल्फर की कमी से नई पत्तियों में पीलापन आ जाता है. सूक्ष्म तत्त्व विभिन्न धात्विक एंजाइमों के मुख्य घटक होने के कारण पौधों की विभिन्न उपापचय क्रियाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण करते हैं.

मिट्टी परीक्षण का सही समय

वैसे तो मिट्टी नमूना किसी भी समय ले सकते हैं, परंतु फसल कटाई के बाद शुष्क मौसम में लेना अधिक लाभदायक रहता है. फसल बोने या रोपाई करने के एक माह पूर्व, खाद व उर्वरकों के प्रयोग से पहले ही मिट्टी परीक्षण कराएं. आवश्यकता हो तो खड़ी फसल से भी कतारों के बीच से नमूना ले कर परीक्षण के लिए भेज सकते हैं, ताकि खड़ी फसल में पोषण सुधार के लिए जरूरी क्रियाकलाप किए जा सकें.

क्षारीय व लवणीय मिट्टी से लवणों की पपड़ी को हटा कर नमूने अलग से लेना चाहिए. इन नमूनों को मिट्टी के अन्य नमूनों से अलग रखना चाहिए.

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