Field Fertility| ग्लोबल वार्मिंग की वजह से मौसम गरम हो रहा है, गेहूं की फसल समय से पहले पक जाती है. गेहूं की कटाई किसान ज्यादातर कंबाइन मशीन द्वारा करते हैं, जिस से समय की बचत के साथसाथ बदलते मौसम के नुकसान से बचा जा सकता है. इस प्रकार कटाई करने से गेहूं के दाने मशीन द्वारा इकट्ठा कर के भंडारगृह में रख लेने से नुकसान कम होता है. लेकिन इस की नरई खेत में खड़ी रह जाती है, जिस को भूसा बनाने की मशीन द्वारा भूसा बना कर आमदनी बढ़ाई जा सकती है.
कई किसान नरई को नष्ट करने के लिए जानकारी न होने की वजह से खेत में आग लगा देते हैं. इस से खेत तो साफ हो जाता है, लेकिन नरई जलाने में जरा सी चूक हो जाए तो आसपास खड़ी हजारों एकड़ जमीन पर गेहूं की फसल जल कर राख हो जाती है. किसानों के परिवारों द्वारा साल भर सजाए अरमानों पर पानी फिर जाता है.
इन सभी से बचने के लिए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे नरई प्रबंधन कर के मिट्टी में घटती हुई जीवांश पदार्थ की मात्रा को रोक सकते हैं.
नरई का प्रबंधन करने के लिए किसानों को चाहिए कि जब खेत कंबाइन द्वारा कट जाए तो उस के बाद भूसा बनाने वाली मशीन (रीपर) से नरई का भूसा बनवा लें. नरई को खेत में सड़ाने के लिए किसानों को चाहिए कि जैसे ही खेत की कटाई कंबाइन से हो जाए, उस के तुरंत बाद ही खेत में पानी लगा दें. शाम के समय 5-7 फीसदी यूरिया घोल यानी तकरीबन 200 लीटर पानी में 10-15 किलोग्राम यूरिया घोल कर प्रति एकड़ दर से छिड़काव कर दें. इस के बाद हैरो या मिट्टी पलटने वाले हल से खेत में पलट दें.
इस समय किसान यूरिया का तकरीबन 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव जरूर करें. जब पलटाई को तकरीबन 15-20 दिन हो जाएं तब पानी लगा कर दोबारा पलटाई कर दें, जिस से खेत में खड़ी नरई सड़ कर खेत में मिल जाएगी. जिस खेत में अगली फसल धान की रोपाई करनी हो उस में हरी खाद के रूप में सनई या ढैंचा की बोआई कर दें और सही समय और नमी पर पलटाई कर के धान की रोपाई कर दें.
नरई को सड़ाने के बाद कार्बनिक पदार्थ 1092 किलोग्राम प्रति एकड़ पोषक तत्त्व दोबारा जमीन में वापस हो जाते हैं. यानी नाइट्रोजन 14.3 किलोग्राम प्रति एकड़ और अन्य पोषक तत्त्व भी जमीन को वापस हो जाते हैं. इस प्रकार से नरई का प्रबंधन अगर किसान करेंगे तो उन के खेतों की घटती उर्वरता व कार्बनिक पदार्थ की मात्रा 0.3-0.5 फीसदी से बढ़ा कर 0.8 फीसदी या इस से ज्यादा की जा सकती है और हरी खाद से तकरीबन 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन की बचत कर सकते हैं, साथ ही खेत में खरपतवार भी कम हो जाते हैं.
नरई जलाने से नुकसान
* नरई जलाने से पशुओं के चारे में रूप में साल भर इस्तेमाल में आने वाला भूसा नहीं मिल पाता है, जिस से किसानों को पशुपालन में अधिक खर्च उठाना पड़ सकता है.
* भूसा प्राप्त न होने की वजह से किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है, जो कि गेहूं की उत्पादन लागत को बढ़ा देता है.
* नरई जलाने से जमीन के अंदर मौजूद फायदेमंद असंख्य जीवाणु जल कर मर जाते हैं, जिस की वजह से आने वाली फसल का उत्पादन कम हो जाता है व जमीन में पोषक तत्त्वों की मौजूदगी कम हो जाती है.
* नरई जलाने से कार्बनिक पदार्थ व ह्यूमस नहीं मिल पाते हैं, जिस से जमीन की उर्वरता पर बुरा असर पड़ता है. साथ ही साथ जमीन में बारबार पानी लगाना पड़ सकता है.
* भूसे या गेहूं के पौधों की जड़ों के सड़ने से पौधों को जो जरूरी पोषक तत्त्व वापस मिल सकते हैं, वे नहीं मिल पाते, जिस से अगली फसलों के लिए किसान को पोषक तत्त्व फालतू मात्रा में डालने पड़ते हैं. नतीजतन उन्हें कम फायदा होता है.
* नरई जलाते समय अगर एक भी चिंगारी किसी दूसरे खेत में चली जाए तो पूरा खेत जल कर राख हो जाता है, जिस के कारण किसान को काफी घाटा उठाना पड़ता है.
* नरई जलाने से वायुमंडल में प्रदूषण फैलने के साथसाथ वायुमंडल के तापमान में बढ़ोतरी होती है.
नरई की रासायनिक संरचना
नरई में कार्बन 42.0, नाइट्रोजन 5.50, फास्फोरस 0.40, पोटाश 10.40, सल्फर 0.60, कैल्शियम 2.90, मैग्नीशियम 0.60, कार्बन/नाइट्रोजन 76.4, कार्बन/फास्फोरस 105.0, कार्बन/सल्फर 466.7, नाइट्रोजन/सल्फर 13.8 ग्राम प्रति किलोग्राम पाया जाता है.
इस के अलावा यदि किसान अपने खेत में फसल कंबाइन से काटने के बाद उस की नरई जमा कर लें, तो उस से बाद में नाडेप कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट या अन्य कंपोस्टिंग के द्वारा कंपोस्ट खाद बनाई जा सकती है.
उसे खेत में डाल कर बाद में फसल उत्पादन के समय जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल में लाया जा सकता है.