टमाटर अपने लाभदायक गुणों व तमाम उपयोगों के कारण सब से महत्त्वपूर्ण सब्जी वाली फसल है. यह एक बहुत अहम सुरक्षित खाद्य पदार्थ है. इस की खेती सभी जगहों पर की जा सकती है. संसार में आलू व शकरकंद के बाद टमाटर ही सब से अधिक पैदा की जाने वाली सब्जी है.
टमाटर का इस्तेमाल टमाटर सूप, सलाद, अचार, टोमेटो कैचप, प्यूरी व चटनी वगैरह बनाने में किया जाता है. इस के अलावा लगभग हर सब्जी के साथ टमाटर का भी इस्तेमाल किया जाता है.
टमाटर गरम मौसम की फसल है. इस की फसल उन इलाकों में ज्यादा अच्छी होती है, जहां पाला नहीं पड़ता है. लेकिन ज्यादा गरमी और सूखे मौसम में अधिक वाष्पीकरण होने के कारण टमाटर के कच्चे व छोटे फल तेजी से गिरने लगते हैं.
टमाटर की फसल में 38 डिगरी सेंटीग्रेड से ज्यादा तापमान होने पर फल नहीं बनते और पहले से मौजूद फलों का आकार भी बिगड़ जाता है. इसी तरह बहुत कम तापमान (0 से 12 डिगरी सेंटीगे्रड) पर भी फल नहीं बनते. टमाटर में लाइकोपिन नामक वर्णक की मात्रा 20-25 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान पर अधिक बनती है और 27 डिगरी सेंटीग्रेड पर इस वर्णक का उत्पादन तेजी से गिरने लगता है. तापमान 32 डिगरी सेंटीग्रेड के ऊपर पहुंचने पर लाइकोपिन बनना बंद हो जाता है.
तापमान व फसल में लगने वाले कीड़ों व बीमारियों को ध्यान में रखते हुए अगर टमाटर की खेती पौलीहाउस में की जाए तो कम और ज्यादा तापमान से भी फसल को बचाया जा सकता है. साथ ही फसल को कीड़ों व बीमारियों से भी बचा कर अधिक उत्पादन लिया जा सकता है.
आजकल नेचुरल वैंटीलेटेड पौलीहाउस बनाए जाते हैं, जिन में अलग से पंखे लगाने की जरूरत नहीं होती.
मिट्टी व उस की तैयारी
पौलीहाउस के अंदर टमाटर की खेती के लिए चिकनी दोमट, दोमट या बलुई दोमट जीवांश युक्त मिट्टी जिस का पीएच मान 6.5-7.0 हो, अच्छी रहती है. जमीन की 4-5 बार जुताई कर के उस में 1 मीटर चौड़ा 8-9 इंच उठा हुआ बैड बना देना चाहिए.
बीज की मात्रा : 1 हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए देशी किस्मों का 400 ग्राम बीज या संकर किस्मों का 200 ग्राम बीज जरूरी होता है.
डिटरमिनेट प्रजाति: पूसा अर्ली ड्वार्फ, आजाद टी 6, पूसा गौरव, डीवी आरती 1 व डीवी आरती 2. आमतौर पर अगेती प्रजातियां डिटरमिनेट किस्म की होती हैं. इन की बढ़वार सीमित होती है.
इनडिटरमिनेट प्रजाति : अर्का सौरभ, अर्का विकास, पूसा रूबी, पंत बहार, पंत टमाटर 3 व केएस 17. इन प्रजातियों की लंबाई लगातार बढ़ती रहती है.
संकर किस्में : पूसा हाइब्रिड 2, रूपाली, अविनाश 2, एमटीएच 15, नवीन, राजा, अपूर्वा, अजंता व रश्मि.
खाद व उर्वरक
टमाटर की फसल में उन्नतशील प्रजाति के लिए प्रति हेक्टेयर 200-250 क्विंटल गोबर की खाद, 120-150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60-80 किलोग्राम फास्फोरस और 80-100 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है. गोबर की खाद 1 माह पहले खेत की तैयारी के समय खेत में मिला देनी चाहिए. नाइट्रोजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पहले खेत में डाल कर 1 मीटर चौड़ा व 8-9 इंच ऊंचा बैड बना देना चाहिए.
नर्सरी और रोपाई
1 हेक्टेयर खेत में रोपाई के लिए टमाटर की नर्सरी तैयार करने के लिए 8-9 इंच ऊंची, 1 मीटर चौड़ी व 3 मीटर लंबी क्यारियां लगभग 200 वर्ग मीटर में तैयार की जाती हैं. क्यारियां (बैड) तैयार करते समय 10-15 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद व 15-20 ग्राम डीएपी प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाएं और 3-4 बार खुदाई कर के बैड को समतल कर लें. फिर उठी हुई क्यारियों में लगभग 1 सेंटीमीटर की गहराई पर 2 सेंटीमीटर की दूरी पर बीजों की बोआई करें. लाइन से लाइन की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें. बोआई के बाद हजारे द्वारा हलकी सिंचाई करें.
1 हेक्टेयर खेत की रोपाई के लिए सामान्य किस्म का 400 ग्राम व संकर किस्मों का 200 ग्राम बीज लगता है. बीज हमेशा कार्बंडाजिम या थायरम से उपचारित कर के ही बोआई करें. जब पौधे 5-6 पत्ती वाले या 25-30 दिनों के हो जाएं तो तैयार खेत में 3 इंच गहरे गड्ढे खोद कर पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर और लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर रखते हुए रोपाई कर देनी चाहिए.
मैदानों व पौलीहाउसों में टमाटर की फसल साल में 2 बार ली जा सकती है. पहली फसल के लिए जुलाईअगस्त में बोआई की जाती है और रोपाई का काम अगस्त के आखिर तक किया जाता है. दूसरी फसल नवंबरदिसंबर में बोई जाती है और पौधों की रोपाई दिसंबरजनवरी में की जाती है.
टमाटर जल्दीजल्दी व उथली निराईगुड़ाई चाहने वाली फसल है, लिहाजा हर सिंचाई के बाद ‘हैंड हो’ या खुरपी द्वारा खेत की ऊपरी सतह को भुरभुरी बनाना चाहिए. गहरी निराईगुड़ाई नहीं करनी चाहिए, इस से जड़ों को नुकसान हो सकता है.
कटाईछंटाई व स्टैकिंग
बाजार में टमाटर शीघ्र उपलब्ध कराने के लिए पौधों की कटाई कर के एक तने के रूप में कर के तार द्वारा ऊपर चढ़ा देते हैं. इस से पौधे अधिक बढ़ते हैं. टमाटर बड़े आकार के होते हैं और ज्यादा पैदावार होती है.
सिंचाई : पौलीहाउस में टमाटर की फसल में सिंचाई ड्रिप (बूंदबूंद) या स्प्रिंकलर विधि द्वारा की जाती है. इस से लगभग 40-50 फीसदी पानी की बचत होती है. गरमियों में 4-5 दिनों के अंतर पर और सर्दियों में 8-10 दिनों के अंतर पर सिंचाई करते हैं.
पौधों को सहारा देना
इनडिटरमिनेट और संकर प्रजातियों में पौधों को सहारा देने की जरूरत होती है. इस के लिए लोहे के तारों को पौलीहाउस के पोलों में बांध देते हैं. जरूरत के मुताबिक तार बांधने के लिए बांसों को जमीन में गाड़ देते हैं. लोहे के तारों से सुतली या प्लास्टिक की रस्सी नीचे लटका कर पौधों की जड़ों के पास बांध देते हैं. इस प्रकार पौधों को सहारा मिल जाता है और वे ठीक ढंग से बढ़ते हैं.
कटाई : टमाटर के फल पकने की अवस्था उसे उगाने के मकसद व एक जगह से भेजे जाने वाली दूसरी जगह की दूरी पर निर्भर करती है. इस के फलों की तोड़ाई इन अवस्थाओं में की जाती है :
हरी अवस्था : अधिक दूर के बाजारों में भेजने के लिए हरे परंतु पूरी तरह विकसित फलों की तोड़ाई करते हैं.
गुलाबी अवस्था : स्थानीय बाजारों के लिए गुलाबी टमाटरों की तोड़ाई करते हैं.
पकी हुई अवस्था : घर के पास लगे पौधों से तुरंत इस्तेमाल के लिए पके लाल टमाटर तोड़े जाते हैं.
पूरी तरह पकी अवस्था : अचार व प्यूरी बनाने व डब्बों में बंद करने के लिए पूरी तरह पके टमाटर तोड़े जाते हैं.
उपज : पौलीहाउस में टमाटर की उपज 800-1000 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हासिल हो जाती है.
बीमारियां
आर्द्रगलन : बीज से पौधा बनते ही नर्सरी में पौधा मुरझा जाता है. ये लक्षण कुछ दिनों बाद दिखाई देते हैं. इस के उपचार के लिए क्यारियों को 1 भाग फार्मलीन में 7 भाग पानी मिला कर बोआई से 15-20 दिनों पहले से शोधित करें और पौलीथीन से ढक दें.
क्यारियों को मैंकोजेब (25 ग्राम दवा को 10 लीटर पानी में मिला कर) और कार्बंडाजिम (20 ग्राम दवा को 10 लीटर पानी में मिला कर) के घोल से लक्षण दिखाई देते ही सींचें.
मरोडिया (लीफ कर्ल) रोग : यह विषाणु से होने वाली बीमारी है, जो सफेद मक्खी द्वारा फैलती है. इस में टमाटर की पत्तियां मुड़ जाती हैं, उन का आकार छोटा हो जाता है, उन की सतह खुरदरी हो जाती है और बढ़वार रुक जाती है. इस की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्में जैसे एस 12 लगाएं. इस के अलावा इमिडाक्लोरोपिड 0.5 मिली लीटर को 1 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें. पौधशाला में मच्छरदारी का प्रयोग करें.
जड़ों की गांठ वाले सूत्रकृमि : ये सूक्ष्मदर्शी जीव मिट्टी में रहते हैं. इन के प्रकोप से जड़ों में गांठें बन जाती हैं और पौधे पीले पड़ कर मुरझा जाते हैं. इस से बचाव के लिए सूत्रकृमि रहित पौधशाला से ही पौधे लें. रोगग्रस्त इलाकों में 2-3 सालों के लिए प्रतिरोधी किस्म एस 12 लगाएं. हर साल पौधशाला की जगह बदलें और 5-10 ग्राम फ्यूराडान 3जी की मात्रा प्रति वर्ग मीटर की दर से क्यारियों में मिलाएं.
कीट
फलछेदक कीट : यह टमाटर का खास दुश्मन है. इस कीड़े की इल्लियां हरे फलों में घुस जाती हैं और फलों को सड़ा देती हैं.
जैसिड : ये हरे रंग के छोटे कीड़े होते हैं, जो पौधों की कोशिकाओं से रस चूस लेते हैं, जिस के कारण पौधों की पत्तियां सूख जाती हैं.
सफेद मक्खी : ये सफेद छोटे मच्छर जैसे कीड़े होते?हैं, जो पौधों से रस चूस लेते हैं. ये पत्तियां मुड़ने वाली बीमारी फैलाते हैं.
उपचार : फसल की शुरुआती अवस्था में सफेद मक्खी और जैसिड की रोकथाम के लिए 0.05 फीसदी मेटासिस्टाक्स या रोगार का छिड़काव करना चाहिए.
फल छेदक कीट से प्रभावित फलों और कीड़ों के अंडों को जमा कर के नष्ट कर दें और 0.05 फीसदी मेलाथियान या 0.1 फीसदी कार्बारिल का छिड़काव करें. 10 दिनों बाद दूसरा छिड़काव करें.