पाल गांव (जिला जोधपुर) के जागरूक और प्रगतिशील किसान इंतखाब आलम अंसारी ने मीठे पानी से गेहूं (Wheat) के बीजोपचार की विधि विकसित की है. पेश है उन की विधि की जानकारी उन्हीं की जबानी:

मेरे खेत का पानी खारा है. लैब की रिपोर्ट के अनुसार इस की ईसी 14 के करीब आई. ऐसे में फसल लेना चुनौती भरा काम था. इतने खारे पानी को किसी भी भौतिक तरीके से सिंचाई लायक बनाना मुमकिन नहीं था. आलम तो यह था कि इस में बीज अंकुरित ही नहीं होता था, फसल लेना तो दूर की बात. बरसों तक खेती धरी रही और खेत पड़े रहे. मगर मेरे मन में तो खेती की लगन बनी रही.

गेहूं का बीज, बड़ा बीज है. वजन की दृष्टि से इसे सरसों आदि से कई गुना अधिक मात्रा में बोना पड़ता है. खारे पानी में गेहूं का बीज खारिज चला जाता था, लिहाजा फार्म पर रखे गए बटाईदार हाली को भी कोई फायदा नहीं दिख रहा था और न ही मुझे. मैं ने इस के कारणों को गहराई से जानने की कोशिश की. अंकुरण के लिए मैं ने पीने लायक मीठे पानी में घर पर बीजों को 10 से 12 घंटे तक भिगो कर रखा. फिर बीजों का जैव उर्वरक के घोल में रासायनिक या जैविक बीजोपचार करने के बाद 2-3 जुताइयों से तैयार खेत में बोआई की. इस प्रकार पहले से उगने के लिए पर्याप्त नमी ले चुके बीजों को अंकुरित होने में अधिक कठिनाई नहीं हुई.

बीज अंकुरण की समस्या हल होने के बाद मुझे सफलता की किरणें दिखाई देने लगीं. बोआई के लिए मैं ने ‘राज 3077’ बीज का इस्तेमाल किया था और बीजों को छिड़काव कर के बोया था.

खेतों की मिट्टी की जांच से प्राप्त नतीजों के आधार पर मुझे मालूम था कि खेत की नमी बरकरार रखने के लिए देशी खाद की जरूरत रहेगी. मैं ने प्रतिबीघे 2 ट्राली गोबर की खाद डलवाई. मैं यह खाद परंपरागत रूप में ही डालता था.

बीजोपचार में ही कवक, फफूंद व दीमक आदि से बचाव के लिए केपटान, क्लोरोफाइरोस का इस्तेमाल करना मेरे लिए फायदेमंद रहा और घर पर टाटबोरी में बीज भिगोने के कारण खेत में बीज उगने में समय की बचत भी हुई और बीजों को खारेपन का नुकसान नहीं हुआ.

क्यारियों की ऊंचाई करीब 10 इंच से 1 फुट तक रखी, ताकि करीब 6-7 इंच पानी टिका रह सके. पहली सिंचाई इतनी ज्यादा करने का कारण यह था कि खाद भी गल जाती और बीज उग कर अंकुर आने के कई दिनों तक नमी बनी रहती. मैं नए पौधों को सिंचाई देने में थोड़ा सी देरी कर के करीब 1 इंच गहरी जड़ें जाने तक पौधों को प्यासा रखता हूं. इस से पौधे गहरी जड़ें पकड़ लेते हैं.

खारे पानी की ज्यादा सिंचाई से यह समस्या आती थी कि ज्यादा मात्रा में सोडियम फारमेशन खेत में बन जाता था, इसलिए मैं ने सिंचाई की मात्रा घटा कर संख्या बड़ा दी. कम पानी देते रहने से क्यारियों में कभी सफेद लवणीय पपड़ी नहीं जमती थी. खाद की मात्रा ज्यादा रखने से पानी के लवण देशी खाद को सड़ाने में भी काम आ जाते और फसल पर उन के खराब असर से बचाव हो जाता.

मैं ने महसूस किया कि खारे पानी में केमिकल खाद देने पर पानी के रसायन और खाद के रसायन आपस में प्रतिक्रिया कर लेते थे, नतीजतन मेरी फसल खाद के खनिज तत्त्व नहीं ले पाती थी. लिहाजा मैं ने बोआई से पहले, उस के साथ और बाद में भी सिंचाई से पहले या साथ में कभी भी यूरिया को दानेदार रूप में नहीं डाला. मैं ने यूरिया, जिंक और चूने का संयुक्त स्प्रे किया. 3 किलोग्राम यूरिया, आधा किलोग्राम जिंक और 600 ग्राम बुझे हुए चूने (जिसे रात को बुझा दें और सुबह 2-3 बार चलनी से छानें) का घोल बना कर प्रति एकड़ की दर से पहला स्प्रे 40 से 45 दिनों पर करें. दूसरा स्प्रे तब करें, जब गेहूं की बाली में दाने बनने लगें, तब गेहूं को कैल्शियम की बहुत जरूरत होती है. चूने के स्प्रे से यह फायदा होता है कि जब जोर के साथ कटाई करते हैं, तो गेहूं की बालियां नहीं झड़तीं. तीसरा स्प्रे करीब 90 दिनों के आसपास करना चाहिए. ऐसा करने से गेहूं के दाने का औसत वजन बढ़ता है.

बोआई के समय एक बार भरपूर सिंचाई करने के बाद तकरीबन 12-13 सिंचाइयों से जरूरत जितना पानी ही देता था. दूसरी सिंचाई देने तक सभी पौधों की जड़ें करीब 1 इंच गहरी चली जाती हैं. इस के बाद समयसमय पर नाममात्र की सिंचाई ही करता हूं. लेकिन गेहूं की बालियां आने पर बाली का पोटा (गर्भ) बनने के दौरान पौधों को पर्याप्त पानी की जरूरत पड़ती है. इसलिए उस वक्त भरपूर पानी देता हूं.

कच्चे गेहूं के हरे दानों में दूध पड़ने के समय स्टार्च बनता है, जो बाद में पक कर आटा बनता है. ऐसे समय में पौधों की सिंचाई में कभी कंजूसी नहीं करनी चाहिए. मैं आखिरी सिंचाई 90 से 100 दिनों के बीच में करता हूं, ताकि गेहूं पकने तक पौधा सूखने न पाए. इस दौरान यदि सिंचाई न की जाए तो बीज फूले हुए नहीं, बल्कि सिकुड़े हुए रह जाते हैं.

इस खेती में मुझे सब से बड़ा सहारा मेड़ों और बाड़ पर उगे नीम के करीब 500 पेड़ों का मिला. इन की पत्तियों की खाद के इस्तेमाल से मैं फसल को कवक/फफूंद से बचाता था. मैं नीम की निंबोलियों को इकट्ठा कर के गौशाला में भिजवाता था, बदले में मुझे देशी गोबर की खाद मिल जाती थी.

खारे पानी में गेहूं उगाना कोई हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि देशी गेहूं की खार्चिया और बाजिया किस्में खारे पानी में फसल देती रही हैं.

कुल 125 बीघे खेत में मैं औसतन 22 किलोग्राम बीज प्रति बीघे की दर से इस्तेमाल करता हूं और औसतन 12 से 13 बार सिंचाई करता हूं. मैं औसतन 2 ट्राली देशी खाद प्रति बीघे की दर से इस्तेमाल करता हूं. मुझे औसतन 35 किलोग्राम उत्पादन प्रति 1 किलोग्राम बोआई पर मिल जाता?है.

मुझे अधिकतम 50 किलोग्राम उत्पादन प्रति 1 किलोग्राम बोआई पर साल 2005 में, गेहूं की किस्म ‘पीबी 343’ पर मिला था.

मेरी तकनीक में कोई भी खर्चा घरेलू खर्चों से ही एडजस्ट किया जा सकता है. साधारण पानी (जिस का टीडीएस करीब 2000 अंक तक हो), मीठा पानी या पीने लायक पानी आदि के नवाचार बिल्कुल भी महंगे नहीं हैं.

बीज का मूल्य तो सब को देना ही होता है, लेकिन थोड़ी अच्छी किस्म के इस्तेमाल से जरा सा खर्च बढ़ जाता है, पर उस का फायदा लाखों में बढ़ सकता है.

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