हलदी (Turmeric) खास मसाला फसल है. भारत में तमाम व्यंजनों में मसाले के तौर पर इस का इस्तेमाल होता है. हलदी (Turmeric) का इस्तेमाल तमाम औषधियों में भी किया जाता है. हलदी (Turmeric) एक उष्ण कटिबंधीय फसल है. इस की खेती के लिए नमी वाली जलवायु अच्छी मानी जाती है.

जमीन : खेती के लिए जमीन समतल, अच्छे पानी के निकास वाली, बलुई दोमट मिट्टी, जिस का पीएच मान 7-7.5 हो, सही मानी जाती है. अम्लीय, क्षारीय, लवणीय और पानी खड़ा रहने वाली जमीन इस के लिए ठीक नहीं है.

खेत की तैयारी : मिट्टी पलटने वाले हल से या ट्रैक्टर हैरो से 2-3 बार अच्छी जुताई करें व सुहागा लगा कर खेत को खरपतवार व ढेले रहित तैयार करें. अन्य घासफूल को अच्छी तरह से निकाल दें. इस के बाद 3 मीटर चौड़ी व 20 मीटर लंबी क्यारियां बना लें. 2 क्यारियों के बीच 20 सेंटीमीटर की जगह छोड़नी चाहिए, जिस से फसल की अच्छी देखभाल हो सके और हलदी के फुटाव के लिए भी सही जगह मिल सके.

हलदी की खास किस्में : रश्मि, सुरमा, रोमा व सोनाली के अलावा हलदी की अन्य लोकप्रिय किस्में लाकाडाग, डुग्गीगली, टेकुटपेटो, कस्तूरी पुष्पा, पीटीएस 10, पीटीएस 24, टी सुंदर, अल्लेटंपी, लोखड़ी, फुलबनी लोकल, मद्रास मगल, राजा बोट, कटहड़ी सुवर्णा, रजतरेखा, प्रतिभा, नूरी प्रभा वगैरह हैं.

बोने का समय : हलदी की अच्छी फसल लेने के लिए बिजाई अप्रैल के आखिरी हफ्ते में करें. जहां सिंचाई की सहूलियत नहीं है, वहां जुलाई के पहले हफ्ते में बिजाई की जाती है. देर से बिजाई करने पर पौधों की बढ़वार व उपज कम होती है.

बीज की मात्रा व बोने का तरीका : हलदी की बोआई कंदों से की जाती है. इस के लिए 6-8 क्विंटल स्वस्थ व एक साइज के कंद प्रति एकड़ बिजाई के लिए सही रहते हैं.

कंदों के आकार का उत्पादन पर बहुत गहरा असर पड़ता है. ज्यादा वजन वाले कंद जल्दी स्थापित हो जाते हैं. बीज के लिए कंदों का वजन 30-40 ग्राम होना चाहिए. हलदी की बोआई लाइन से लाइन की दूरी 30 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रख कर करनी चाहिए. इस के बाद कंद जमने तक खेत में नमी बनाए रखनी चाहिए. बोआई से पहले कंदों को डाइथेन एम 45 की 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोल कर उस में 30 मिनट तक डुबो कर रखें.

खाद व उर्वरक : खेत की तैयारी के समय 10-12 टन गोबर की अच्छी गलीसड़ी व सूखी खाद प्रति एकड़ की दर से खेत में मिलाएं.

सिंचाई : हलदी जमने में लंबा समय लेती है, जिस के लिए खेत में नमी बनी रहनी चाहिए. अप्रैल से जून में 8-10 दिनों के अंतर से और सर्दियों में 20-25 दिनों के अंतर से हलकी सिंचाई करें. बारिश हो जाने पर इस फसल को अलग से पानी लगाने की जरूरत नहीं पड़ती.

निराईगुड़ाई : फसल में उगने वाले खरपतवारों को समयसमय पर निकालते रहें. आजकल निराईगुड़ाई के लिए साइकिलनुमा तमाम यंत्र सस्ते दामों पर मौजूद हैं.

खुदाई व पत्तियों से मुनाफा : हलदी को किस्मों के आधार पर 7-10 महीने के बाद जब पत्तियां सूख कर पीली पड़ जाएं, तब पत्तियों को काट कर उन का वाष्प आसवन विधि से तेल निकालें. पत्तियों में 1 फीसदी तेल होता है. इस के तेल से अतिरिक्त आमदनी होती है. जमीन को खोद कर या जुताई कर के कंदों को निकाल लिया जाता है. बीज के लिए रखी जाने वाली हलदी को छांट कर बिना साफ किए छायादार जगह पर ढेर बना कर हलदी की पत्तियों से ढक कर ऊपर मिट्टी डाल दी जाती है.

प्रसंस्करण : बेची जाने वाली हलदी की जड़ों से मिट्टी को साफ किया जाता है और 1 हफ्ते तक छाया में सुखाने के बाद हलदी को 100 लीटर पानी में 100 ग्राम सोडियम बाईकार्बोनेट या सोडियम कार्बोनेट घोल कर तांबे, गेल्बनाइज्ड लोहे या मिट्टी के बरतन में भर कर 1-2 घंटे तक उबालते हैं.

पीला रंग लाने के लिए 50 ग्राम सोडियम बाइसल्फेट और 50 ग्राम हाइड्रोक्लोरिक अम्ल भी डाल देते हैं. जब पानी से सफेद धुआं आने लगे, हलदी दबाने पर मुलायम हो जाए, तब उबालना बंद कर देते हैं. इन कंदों को जमीन पर फैला कर 10-15 दिनों तक सुखाया जाता है. जब पलटने पर धात्विक ध्वनि आने लगे, तब पालिश करने वाले ड्रम में भर कर घुमा कर चमकाते हैं. पालिश करने के बाद इस की सतह पर चमकदार पीला रंग चढ़ाया जाता है.

उपज : हलदी की उपज (गीली) 100-120 क्विंटल प्रति एकड़ होती है, जो सूखने पर 10-12 क्विंटल बचती है और पत्तियों के आसवन से 8-12 किलोग्राम तेल प्रति एकड़ हासिल हो सकता है.

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