देश के सभी प्रदेशों में लोबिया उगाया जाता है. यह एक बहुद्देशीय फसल है.
जलवायु : खरीफ में उगने वाली यह एक प्रमुख दलहन फसल है. यह गरम और नम जलवायु की फसल है.
जमीन : लोबिया की खेती भारी जमीन के बजाय हलकी जमीन पर दोमट या मटियार दोमट मिट्टी में की जा सकती है, जिस का पीएच मान 7.5 हो.
तापमान : 25-30 डिगरी तापमान की अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है. वैसे, 40 डिगरी सैल्सियस तापमान भी इस के लिए नुकसानदायक नहीं है.
अंतरफसली चक्र : लोबियाज्वारगेहूं, लोबियाधानगेहूं, लोबियामक्कागेहूं, लोबियाबाजरागेहूं और लोबियागन्ना.
अच्छी किस्में : पूसा 2 फसली, पूसा ऋतुराज, पूसा फाल्गुनी, सी 152, पूरा कोमल, टाइप 2, स्वर्ण (बी 38), बी 940.
बोने का समय : खरीफ की फसल को बारिश के शुरू होते ही बो देना सही रहता है, ग्रीष्मकालीन फसल 15 फरवरी से 15 अप्रैल तक बोई जा सकती है.
बीज : खरीफ की फसल के लिए बीज 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज काफी रहता है.
बीज का उपचार : लोबिया के बीज को बोआई से पहले राइजोबियम जीवाणु से उपचारित करना चाहिए. साथ ही, फफूंदीनाशक दवा जैसे कैप्टान या सीरम की 3 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचारित करें.
बोआई की विधि : बोआई हमेशा लाइनों में ही करनी चाहिए. लाइन से लाइन की दूरी 30-45 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 8-10 सैंटीमीटर रखें. यदि अंतरफसली के रूप में बोआई करनी है तो मक्का, ज्वार और बाजरा के साथ पंक्ति में बोआई की जा सकती है.
बीज की गहराई : बोआई हमेशा 3-5 सैंटीमीटर की गहराई पर ही करें. अधिक गहराई पर बोने से अंकुरण ठीक तरह से नहीं होता है.
खाद : लोबिया की फसल के लिए खाद उड़दमूंग की तरह ही देना लाभदायक है. यदि लोबिया को अंतरफसली चक्र में बोया गया है तो खाद की मात्रा का फासला फसली चक्र के अनुपात में देना चाहिए.
20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 55 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर अच्छी पैदावार के लिए सही रहता है.
खरपतवार की रोकथाम : लोबिया की फसल में खरपतवार की रोकथाम के लिए बसालिन 2 लिटर प्रति हेक्टेयर बोआई से पहले 600-700 लिटर पानी में घोल कर मिट्टी की ऊपरी सतह पर अच्छी तरह से छिड़काव करें. इस से खरपतवार नहीं पनप पाते.
सिंचाई : मिट्टी में 50 फीसदी नमी रहने पर सिंचाई जरूरी है. वसंतकालीन फसल में 15-20 दिन के अंतर पर सिंचाई करना जरूरी है. गरमी में फसल में 10-15 दिन के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए.
रोग और रोकथाम
शुष्क मूल गलन : इस की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों और फसल चक्र का ही उपयोग करें.
चूर्णित आसिता रोग : इस की रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों को बोएं. रोग दिखाई देने पर 3 किलोग्राम सल्फेक्स या इलसेन को 1000 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.
मौजेक रोग : इस की रोकथाम के लिए रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर खत्म कर दें. फफूंदनाशक दवा थाइरम 3 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल कर जरूरत के मुताबिक छिड़काव करें.
हानिकारक कीट
फलीबीटल : इस की रोकथाम के लिए 20 किलोग्राम थिमेट प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल सही है.
ब्रुकिड : यह कीट भंडारगृह में लोबिया के बीज को नुकसान पहुंचाता है. इस की रोकथाम के लिए कीटनाशक दवा धुमुन (फ्यूमिगेशन) का छिड़काव करें और भंडारगृह की साफसफाई का ध्यान रखें.
50 फीसदी फलियों के पकते ही तोड़ लेना चाहिए या फलियों के पकने के लक्षण दिखाई देते ही हंसिया से काट लेना चाहिए.
उपज : वसंतकालीन फसल से 10-15 क्विंटल दाना प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो जाता है.