भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां की कुल ग्रामीण आबादी की लगभग आधे से ज्यादा आबादी खेती पर निर्भर है. यह खेती पूरी तरीके से कुदरत पर आधारित है.  सारे पानी की मात्रा का लगभग 70 फीसदी खेती के कामों में सिंचाई के रूप में प्रयोग होता है.

खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित करने, कृषि उत्पादन और उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने, पर्यावरण संरक्षण और कृषि आधारित उपक्रमों में इस्तेमाल जैसे विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पानी का उपयोग विभिन्न माध्यमों और रूपों में किया जाता है.

आजकल खेती के पानी के इस्तेमाल का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि आज इस्तेमाल करने के तौरतरीकों में बहुत ज्यादा बदलाव होने के कारण उपलब्ध पानी का संतुलन बिगड़ चुका है. इन बदलाव के

चलते जल आपूर्ति भी प्रभावित होने के संकेत मिल रहे हैं, जो भविष्य में सभी जीवधारियों के लिए अत्यंत कष्टकारी साबित होंगे, इसलिए जल संरक्षण टिकाऊ कृषि उत्पादन के लिए आज के समय की पहली जरूरत है.

कृषि में जल संरक्षण का मतलब

खेती के कामों में इस्तेमाल में लाया जाने वाला पानी सिंचाई जल के नाम से जाना जाता है. खेती में जल संरक्षण का मतलब है कि पानी का संरक्षण और इकट्ठा करना, ताकि इसे जरूरत के हिसाब से विभिन्न फसलों की सिंचाई के काम में लाया जा सके.

कृषि जल में उपलब्ध पानी की मात्रा का सही इस्तेमाल करना, ज्यादा से ज्यादा फसल उत्पादन लेना, खेती में जरूरत के हिसाब से पानी का इस्तेमाल करना, पानी की बरबादी को रोकना, पानी का कम से कम इस्तेमाल करना, सही तरीके से वैज्ञानिक विधियों और किफायती दर से खेती में पानी का इस्तेमाल करना ही कृषि जल संरक्षण या एकीकृत जल प्रबंधन कहलाता है.

कृषि में जल संरक्षण की जरूरत क्यों?

* कृषि जल की बरबादी को रोकने.

* खाद्यान्न सुरक्षा सुनिश्चित रखने.

* फसलों में पानी की जरूरत और संतुलन बनाए रखने.

* कृषि उत्पादन को लगातार बढ़ाने हेतु.

* कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने.

* पर्यावरण संरक्षण.

कृषि में जल संरक्षण के लाभ

कृषि में जल संरक्षण के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में अनेकों लाभ हैं, जिस में कुछ खास निम्नलिखित हैं :

* सिंचाई और पीने के पानी की उपलब्धता सुनिश्चित होती है.

* भूक्षरण को रोकने में सहायक है.

* प्राकृतिक संसाधनों (पानी, मजदूरी और ऊर्जा) की भी बचत होती है.

* यह जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभावों से बचाने में सहायक है.

* फसल अवशेषों का मिट्टी में नमी होने पर सड़ना आसान हो जाता है, जिस से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ने से मिट्टी की उत्पादन करने की शक्ति बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है.

* मृदा नमी के संरक्षण से फसल द्वारा रासायनिक उर्वरकों की उपयोग क्षमता

बढ़ती है और फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलती है.

* सस्य क्रियाओं को करने में आसानी रहती है.

* भूमि के जल स्तर की बढ़ोतरी में भी मददगार है.

* इस से लाभदायक जीवजंतुओं की क्रियाशीलता बढ़ जाती है.

कृषि जल संरक्षण को प्रभावित करने वाले कारक

कृषि जल संरक्षण में कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं :

* मिट्टी संबंधी कारक.

* किस्मों के आनुवांशिकीय कारक.

* वातावरणीय/जलवायु संबंधी कारक.

* खेती आधारित सस्य घटक संबंधी कारक.

* असंतुलित मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कृषि रसायनों के इस्तेमाल संबंधी कारक.

कृषि जल के प्रमुख स्रोत

* बरसात के पानी को विभिन्न रूपों में देखा जा सकता है जैसे जमीन की सतह पर बहता बरसाती पानी, मकानों की छत से गिरता बारिश का पानी और कुदरती स्रोतों से प्राप्त व बहता पानी.

* जमीन से प्राप्त भूजल.

* कृत्रिम रूप से बनाए गए तालाबों में इकट्ठा पानी.

* नहरों और जलाशयों से प्राप्त पानी.

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