सब से ज्यादा जल यानी पानी की जरूरत खेती में होती है. यही वजह है कि हमारे देश में जमीनी पानी का लैवल लगातार गिर रहा है. भारत में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,544 क्यूबिक मीटर है, जो प्रति व्यक्ति के हिसाब से कम है. ऐसे में यह पानी की कमी के जोन में आता है. अगर इस परेशानी से उबरने के लिए जरूरी उपाय नहीं किए गए तो जल्द ही हमें जल संकट का सामना करना होगा.
पानी से पनपने वाली फसलों की गलत जोनिंग
इकोनौमिक सर्वे के अनुसार, भारत में 89 फीसदी जमीनी पानी का उपयोग खेती के लिए किया जाता है. भारतीय किसान अकसर फसलों को जरूरत से ज्यादा पानी से सींचते हैं. ऐसे में पानी की बरबादी बहुत ज्यादा होती है.
इंडियन काउंसिल फौर रिसर्च औन इंटरनैशनल इकोनौमिक रिलेशंस द्वारा की गई एक स्टडी में पाया गया है कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब में उगने वाले गन्ने और धान की फसलों में प्रति हेक्टेयर लाखों लिटर पानी का इस्तेमाल किया जाता है.
रोचक बात यह है कि अर्द्धशुष्क क्षेत्र होने के बावजूद महाराष्ट्र भारत में कुल गन्ने का 22 फीसदी उत्पादन करता है और पूरी तरह से सिंचाई पर निर्भर है, जबकि बारिश और नदियों वाले क्षेत्र बिहार में इस का उत्पादन मात्र 4 फीसदी होता है.
इसी तरह सब से ज्यादा धान उगाने वाला राज्य पंजाब पूरी तरह बिजली से सिंचाई पर निर्भर है, इसलिए यहां पैदा होने वाले हर किलोग्राम चावल के लिए बिहार की तुलना में 3 गुना और पश्चिम बंगाल की तुलना में दोगुना पानी का इस्तेमाल किया जाता है.
जल प्रबंधन समय की मांग
खेती के लिए सिंचाई हेतु नहरों और जमीनी पानी पर निर्भर रहने के बजाय भारतीय किसानों को जल प्रबंधन के असरदार तौरतरीके अपनाने चाहिए, ताकि जमीनी पानी के लैवल को सुरक्षित रखा जा सके.
इस मामले में भारत इजरायल से सीख सकता है. इजरायल ने रीसाइक्लिंग की शुरुआत की और इस पानी का उपयोग खेती में किया जाने लगा. अब इस देश में खेती में इस्तेमाल होने वाला 80 फीसदी पानी इसी स्रोत से किया जाता है.
खेती के लिए रिसाइकिल किए गए पानी से सिंचाई के अलावा भारत को खेती में सिंचाई के लिए पाइप सप्लाई व ड्रिप इरिगेशन को अपनाना चाहिए. दोनों ही तरीकों में सिंचाई में काम आने वाले तीनचौथाई पानी को बचाया जा सकता है. ड्रिप इरिगेशन से पानी और उर्वरक दोनों की खपत को कम किया जा सकता है.
अगर भारत के साथ घरेलू पानी को रिसाइकिल कर खेती में इस्तेमाल करें तो 300 शहरों को 40,000 मिलियन लिटर पानी रोजाना पहुंचाया जा सकता है. गंदे पानी को साफ करने की लागत भी कम होती है. इस से किसान को मानसून पर निर्भर नहीं रहना पड़ता. इस से हर तरह के मौसम में सिंचाई के लिए किसान आत्मनिर्भर हो जा पाएगा.