जम्मूकश्मीर में प्राकृतिक रूप में पाई जाने वाली कई सब्जियां होती हैं, जिन के लिए खेतीबारी नहीं की जाती है. ये प्राकृतिक तौर पर समय के अनुसार खुद ही तैयार हो जाती हैं. इन्हीं सब्जियों में से एक है कसरोड़, जो खाने में बहुत ज्यादा स्वादिष्ठ होती है.
कसरोड़ का विभिन्न स्थानों में अलगअलग नाम है जैसे जम्मू में कसरोड़, पुंछ में कंदोर, किस्तवाड़ में टेड कहते हैं. जम्मूकश्मीर के रामवन जिले में इसे धोड के नाम से जाना जाता है. हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में लिंगड़, कुल्लू घाटी में लिंगडी, कांगड़ा जिले में कसरोद कहते हैं. उत्तराखंड में कसरोड़ को लिब्रा कहते हैं. त्रिपुरा की लोकल भाषा में मुइखोन कहते हैं.
कसरोड़ आमतौर पर पहाड़ी क्षेत्रों में घने जंगलों और ठंडे क्षेत्र में नदीनालों के पास पाई जाने वाली जंगली सब्जी है. किसानों को इस के लिए खाद नहीं डालनी पड़ती और अन्य किसी प्रकार की देखभाल की जरूरत नहीं होती.
कसरोड़ के पौधों का आकार और रंग अलगअलग क्षेत्रों में अलगअलग है. हिमाचल प्रदेश में पाए जाने वाली कसरोड़ के डंठल मोटे और पत्ते छोटे होते हैं. डंठल के हिस्से का रंग अत्यधिक गहरा होता है. उत्तराखंड में कसरोड़ के पत्ते पतले और कम पाए जाते हैं, जबकि डंठल अधिक मोटा होता है.
जम्मूकश्मीर के पहाड़ी क्षेत्र में पाई जाने वाली कसरोड़ सब्जी का रंग थोड़ा लालिमा लिए होता है. जम्मूकश्मीर के कठुआ जिले में पाया जाने वाला कसरोड़ का डंठल कमजोर होता है, जबकि इस के पत्ते लंबे और घने होते हैं.
जम्मूकश्मीर के बनी, बसोली, लुहाई, मल्हार भद्रवाह, रामवन और पुंछ में हरे और गहरे लाल रंग का कसरोड़ पाया जाता है.
हरे रंग के कसरोड़ में हलकी सी गंध आती है, जबकि गहरे लाल रंग का कसरोड़ खाने में ज्यादा स्वादिष्ठ होता है. इस का मुख्य कारण है, 1,800 से 2,000 मीटर की ऊंचाई पर बहने वाली नदी, नालियों और झरने का पानी शुद्ध होता है, साथ ही किसी प्रकार की गंदगी नदीनालों के पास नहीं पाई जाती. वातावरण भी अनुकूल होता है.
कसरोड़ मार्च महीने से प्रस्फुटित होता है और मई के अंत तक पौधे तैयार होने लगते हैं. यह मई और जून में बाजार में बिकने लगता है और जुलाई में धीरेधीरे कम हो जाता है. इन दिनों इस के डंठल सख्त और पत्ते कम हो जाते हैं.
इस के डंठल में हलकेहलके रुईदार कांटे उंग जाते हैं, फिर यह सब्जी बनाने के काबिल नहीं रहती. सब्जी बेचने वालों को इस की देखभाल करनी पड़ती है. अगर धूप लग जाए तो पत्तों के साथ डंठल तक मुरझा जाते हैं. इस के उखाड़ने के बाद 1-2 दिन तक ही इसे बेचा जा सकता है. इस के मुरझाने के बाद यह किसी काम का नहीं रहता है.
कसरोड़ काली, गहरी, भूरी और नमी वाली मिट्टी में उगता है. इस का डंठल एक सैंटीमीटर पुलाई लिए 9 सैंटीमीटर तक लंबा होता है. इस का सिरा मुड़ा हुआ होता है. इन का डंठल जितना नरम और मुलायम होगा उतनी ही उस की सब्जी और अचार स्वादिष्ठ होंगे.
कसरोड़ की सब्जी बनाने से पहले अच्छी तरह धोया जाता है. धोने से पहले इस की साफसफाई जरूरी है, क्योंकि इस के डंठल नरम होने के कारण उन पर कई प्रकार के सूखे पत्ते चिपके होते हैं. साथ ही, चिकनी मिट्टी इन के पत्तों से चिपकी होती है.
बाजार में इस की कीमत 100 से 150 रुपए प्रति किलोग्राम है. इस की सब्जी में विटामिन ए, विटामिन बी, मैग्नीशियम पोटैशियम, कौपर, आयरन, सोडियम, कैरोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है. इस की सब्जी खाने से मांसपेशियां और हड्डियां मजबूत होती हैं.