आसानी से उगने वाला बेल (Wood Apple) औषधीय पेड़ होता है. बेल के पत्ते वात, शूल व आम बुखार को नष्ट करते हैं. इस के फूल वमन और अतिसार में फायदा पहुंचाते हैं. बेल मीठा और ठंडी तासीर वाला होता है. इस की जड़ की छाल और कच्चे फल का इस्तेमाल दस्त, पेचिश, पेटदर्द और पीलिया में फायदेमंद होता है. बेल के पत्तों का रस जुकाम, खांसी व दमे में फायदा पहुंचाता है.
किस्में : नरेंद्र बेल 1, नरेंद्र बेल 2, नरेंद्र बेल 5, मिर्जापुरी, कागजी, गोंडा, फैजाबाद वगैरह.
बोआई : नर्सरी में बीज फरवरीमार्च में बोए जाते हैं. जब बीजू पौधे पेंसिल के आकार के या इस से ज्यादा बड़े हो जाएं तो फरवरीमार्च या जुलाईअगस्त में पैच बडिंग की जाती है. इस के बाद बारिश के मौसम में तैयार पौधों को खेत में लगा दिया जाता है. पेड़ से पेड़ का फासला 10 मीटर रखा जाता है.
खाद व उर्वरक : 10 किलोग्राम गोबर की खाद (सड़ी), 100 ग्राम यूरिया, 150 ग्राम सुपर फास्फेट व 100 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश 1 साल के पौधे को दें. यह मात्रा इसी दर से 10 सालों तक बढ़ाते रहें. गोबर की खाद व अन्य उर्वरकों की पूरी मात्रा और नाइट्रोजन की आधी मात्रा जून में और नाइट्रोजन की बची आधी मात्रा अगस्त में दें.
सिंचाई : छोटे पेड़ों को 10 से 15 दिनों के अंतर पर नियमित रूप से सिंचाई की जरूरत होती है. बेल के बड़े पेड़ बिना सिंचाई के भी रह सकते हैं.
कटाईछंटाई: पेड़ का अच्छा ढांचा बनाने के लिए जमीन की सतह से 70 सेंटीमीटर ऊंचाई तक मुख्य तने पर कोई दूसरी शाखा नहीं रहने देनी चाहिए.
फूल व फल लगने का समय : बडिंग करने के करीब 5 साल बाद पौधों पर फल आने शुरू होते हैं. इस में मईजून के महीनों में फूल आते हैं और 10 महीने बाद फल पक कर तैयार हो जाते हैं.
पैदावार : अच्छी तरह देखभाल करने पर 10 से 12 साल की उम्र के पेड़ों से 300 से 400 फल प्रति पेड़ की दर से मिलते हैं.
खास कीड़े व बीमारियां
आल्टरनेरिया लीफ स्पाट : इस रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के अनियमित आकार के धब्बे बनते हैं. रोगी पत्तियां झुलस कर गिर जाती हैं. यह रोग अल्टरनेरिया कवक के कारण होता है. रोकथाम के लिए कापरआक्सीक्लोराइड 0.2 फीसदी घोल का छिड़काव 15 दिनों के अंतर पर करें.
अंतर्विगलन रोग : यह रोग संक्रमित फलों में लगता है. इस रोग में फलों का गूदा सड़ कर पूरी तरह नष्ट हो जाता है. ऐसी हालत में फल तोड़ते समय इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि उन में चोट न लगे.
फलों का फटना: कभीकभी सूक्ष्म तत्त्वों की कमी के कारण फल फट जाते हैं. नमी की कमी से भी फल फट जाते हैं. फलों के पकने से पहले ही उन में दरार पड़ जाती है. रोकथाम के लिए सिंचाई का पूरा खयाल रखें. पोषक तत्त्वों की कमी गोबर की खाद डाल कर दूर करें. इस के अलावा सूक्ष्म तत्त्वों का छिड़काव करें.
केंकर : इस बीमारी से प्रभावित भागों पर धब्बे बनते हैं, जो बाद में बढ़ कर भूरे हो जाते हैं. पत्तियों पर छेद हो जाते हैं. रोग से फल भी झड़ जाते हैं. रोकथाम के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 100 पीपीएम (यानी 1 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में) घोल का छिड़काव करें.
जयपुर जिले के सांगानेर तहसील के रूंडल गांव के प्रगतिशील किसान रामगोपाल यादव ने अपने खेत के चारों तरफ बेल के 25 से 30 पेड़ लगा रखे हैं.
इन पेड़ों से हर साल काफी अच्छी आमदनी होती है. किसान रामगोपाल यादव को 20 से 25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से आमदनी होती है.