आम किसानों को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने और आमदनी बढ़ाने के लिए परंपरागत खेती को छोड़ कर उन्नत खेती की तरफ ध्यान देना होगा. सरकार और कृषि विभाग इस के लिए आप को समयसमय पर जानकारी उपलब्ध कराते रहते हैं.
धौलपुर जिले के सरमथुरा क्षेत्र के बड़ागांव निवासी किसान जगदीश ने कृषि विभाग से प्रेरित हो कर कुछ ऐसा ही नया करने का फैसला किया और रतालू की खेती करना प्रारंभ किया. इस की खेती से प्रति बीघा 3 से 4 लाख रुपए तक आमदनी किसान को हो जाती है, जिस में 70 हजार से 1 लाख रुपए तक का खर्चा हो जाता है. शुद्ध लाभ लगभग ढाई लाख से 3 लाख रुपए प्रति बीघा मिल जाता है.
जगदीश ने बताया कि वो आने वाले दिनों में इस की खेती और बड़े स्तर पर करेंगे.
सहायक कृषि अधिकारी पिंटू लाल मीणा ने फील्ड का भ्रमण कर रोग, कीट और व्याधियों के नियंत्रण सहित अधिक उत्पादन लेने के लिए जरूरी सलाह दी. साथ ही, दूसरे किसान, जो रतालू की खेती करना चाहते हैं, उन को इस के बारे में पूरी जानकारी मुहैया करवाई, जो इस प्रकार है:
भूमि और जलवायु
यह उष्ण जलवायु की फसल है. उपजाऊ दोमट भूमि, जिस में पानी नहीं भरता हो, इस की खेती के लिए उपयुक्त रहती है. क्षारीय भूमि इस के लिए उपयुक्त नहीं है.
उपयुक्त किस्में
रंग के आधार पर इस की 2 फसलें प्रचलित हैं, सफेद और लाल.
खेत की तैयारी और बोआई
खेत की गहरी जुताई कर के क्यारियों में 50 सैंटीमीटर की दूरी पर डोलियां बना लेनी चाहिए. इन डोलियों पर 30 सैंटीमीटर की दूरी पर रतालू की बोआई करें. 50 ग्राम तक के टुकड़े 0.2 फीसदी मैंकोजेब के घोल में 5 मिनट तक उपचारित कर के बोआई के काम में लिए जाते हैं. प्रति हेक्टेयर 20 से 30 क्विंटल बीज की जरूरत होती है. रतालू के ऊपरी भाग के टुकड़े सब से अच्छी उपज देते हैं. इसे अप्रैल से जून माह तक बोया जाता है.
खाद व उर्वरक
खेत तैयार करते समय प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश डोलियां बनाने से पहले जमीन में दें.
इस के अलावा 50 किलोग्राम नाइट्रोजन 2 समान भागों में कर के फसल लगाने के 2 व 3 महीने बाद पौधे के चारों ओर डाल दें.
सिंचाई व निराईगुड़ाई
पहली सिंचाई बोआई के तुरंत बाद करें. फसल को कुल 15 से 25 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है. डोलियों पर गुड़ाई कर के मिट्टी चढ़ानी चाहिए. आवश्यकतानुसार निराई भी करते रहें.
खुदाई और उपज
फसल 8 से 9 महीने में तैयार हो जाती है. रतालू के प्रत्येक पौधे को खोद कर निकाला जाता है.
उपज 250 क्विंटल से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त होती है.