धान पूर्वी उत्तर प्रदेश की मुख्य खरीफ की फसल है, जिस की खेती पूर्वी उत्तर प्रदेश के सभी जनपदों में की जाती है. कृषि में सघन विधियां अपनाने एवं अधिक उपज देने वाली फसलों के लगातार उगाने से भूमि में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश के साथसाथ सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों की भी कमी हो जाती है, इसलिए नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश उर्वरकों के भरपूर प्रयोग से भी हम धान की अच्छी पैदावार नहीं ले पा रहे हैं.

किसान अभी तक इन सूक्ष्म तत्त्वों से अनजान हैं. सूक्ष्म मात्रिक तत्त्वों में विशेष रूप से जिंक और कहींकहीं पर लोहा की कमी पाई जाती है. जिंक या जस्ता की कमी के लक्षण स्पष्ट रूप से धान की फसल में देखे जा सकते हैं. इस के अलावा मिट्टी जांच प्रयोगशालाओं में मिट्टी विश्लेषण द्वारा मालूम हुआ कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की मिट्टियों में 0.2 पीपीएम से ले कर 3.2 पीपीएम तक जिंक पाया जाता है, परंतु अधिकतर निचली मिट्टियों में 0.5 पीपीएम से कम ही जिंक पाया जाता है, जो इस की कमी का द्योतक है.

लवण प्रभावित मिट्टियों में भी इस तत्त्व की भारी कमी पाई जाती है. जिन क्षेत्रों में गेहूं के बाद धान की खेती की जाती है, उन क्षेत्रों की मिट्टियों में भी जिंक की कमी पाई गई है. जिंक की कमी के कारण धान की फसल में खैरा रोग लग जाता है, जिस को दूर करने के लिए मिट्टियों में जिंक सल्फेट उर्वरक का प्रयोग किया जाता है.

जिंक की कमी के कारण इन मिट्टियों में इस तत्त्व की कमी निम्नलिखित कारणों से हो सकती है :

* धान के खेत में लगातार पानी भरा रहने के कारण मिट्टी में जस्ता यानी जिंक की कमी हो जाती है, क्योंकि इस में प्राप्त जस्ता रासायनिक क्रियाओं द्वारा अप्राप्त अवस्था में बदल जाता है, जिस को पौधे ग्रहण नहीं कर पाते हैं.

* धान की फसल में अत्यधिक एवं असंतुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से भी जिंक की कमी इन मिट्टियों में हो जाती है.

* मिट्टी में जीवांश पदार्थ की अत्यधिक मात्रा डालने से भी जस्ते की प्राप्यता घटती जाती है, क्योंकि प्राप्त जस्ता कार्बनिक पदार्थ के साथ क्रिया कर के अविलेय जस्ता के यौगिक बना लेता है, जो पौधों के लिए अप्राप्त होते हैं.

* ऊसर मिट्टियों में भी जस्ते यानी जिंक की कमी अधिकतर पाई जाती है, क्योंकि इन मिट्टियों में जस्ता लवणों के साथ रासायनिक क्रिया द्वारा लवण यौगिक बना लेता है, जिस से जस्ते की प्राप्यता घट जाती है.

जिंक की कमी के पूर्वानुमान

मिट्टी में जस्ते की कमी होने पर धान की फसल में खैरा रोग लग जाता है, जिस से धान की पैदावार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. इस रोग को निम्नलिखित लक्षण देख कर पहचाना जा सकता है :

* जब पौधे 3-4 सप्ताह के हो जाते हैं, तो उन की पत्तियों पर सर्वप्रथम लाल, बादामी या कत्थई रंग के धब्बे पत्तियों की नोक पर दिखाई पड़ते हैं, जो धीरेधीरे पूरी पत्ती को ढक लेते हैं. बाद में पत्तियां कागज के समान निर्जीव हो जाती हैं. जस्ते यानी जिंक की भारी कमी होने पर पौधे झुलसे हुए से प्रतीत होते हैं.

* पौधें की बढ़वार रुक जाती है.

* पौधें की जड़ें कमजोर हो जाती हैं और उन का रंग भूरा हो जाता है.

जिंक की कमी को दूर करने के उपाय

आमतौर पर किसानों को जस्ते की कमी को दूर करने के लिए निम्नलिखित कृषि क्रियाएं अपनानी चाहिए :

* खेत में लगातार भरे हुए पानी को बीचबीच में निकालते रहना चाहिए.

* संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.

* कार्बनिक पदार्थ की उचित मात्रा ही खेतों में डालनी चाहिए.

* ऊसर मिट्टियों में मिट्टी की जांच के अनुसार जिप्सम का प्रयोग कर के भी जिंक की प्राप्यता को बढ़ाया जा सकता है.

यदि उपरोक्त विधियों द्वारा भी खड़ी फसल में या मिट्टी में जस्ते यानी जिंक की कमी महसूस हो, तो जिंक सल्फेट उर्वरक का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार से करना चाहिए :

* धान की रोपाई से पूर्व सामान्य मिट्टियों में 20 किलोग्राम और ऊसर मिट्टियों में 30-40 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर या 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट घोल कर खड़ी फसल में पत्तियों पर छिड़काव करें. इस के लिए 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट ले कर तकरीबन 1,000 लिटर पानी में घोल लें, जो एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है.

* यदि खड़ी फसल में एक छिड़काव से सुधार न हो, तो फिर 10 दिन बाद दोबारा दूसरा छिड़काव करें.

* अच्छा होगा कि जिंक सल्फेट के घोल में एक किलोग्राम बुझा चूना या 2 फीसदी यूरिया मिला कर पत्तियों पर छिड़काव करें.

* धान की नर्सरी में 5 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से जिंक सल्फेट का प्रयोग मिट्टी में नर्सरी डालने के पहले करना चाहिए.

* जिंक सल्फेट का मूल्य अधिक होने के करण जिंक सल्फेट का मिट्टी में प्रयोग की अपेक्षा पत्तियों पर घोल के रूप में छिड़काव करना अधिक लाभकारी पाया गया है, क्योंकि घोल के स्प्रे में छिड़काव द्वारा जिंक सल्फेट की मात्रा प्रति हेक्टेयर कम लगती है.

* ऊसर मिट्टियों के साथसाथ सामान्य मिट्टियों में भी जिंक सल्फेट का प्रयोग धान की पैदावार को बढ़ाता है.

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