भारत का भाग्यविधाता, देश की रीढ़, अन्नदाता वगैरह न जाने क्याक्या किसानों को बरगलाने के लिए कहा जाता है, लेकिन ज्यादातर किसानों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है. दिनरात मेहनत कर के वे फसल उगाते हैं, लेकिन जब उसे बेचने के लिए मंडी में ले जाते हैं तो उन्हें वाजिब कीमत भी नहीं मिलती. अकसर फायदा तो दूर, बल्कि लागत भी नहीं निकल पाती, इसलिए बहुत से किसानों को आलू, प्याज व टमाटर वगैरह अकसर खेतों व सड़कों पर फेंकने पड़ते हैं.

इस मसले से निबटने व खेती से ज्यादा कमाई करने के लिए फार्म से फूड तक नए तरीके अपनाने जरूरी हैं. अपनी उपज को मंडी में ले जा कर बेचने के बजाय उस की प्रोसैसिंग कर कीमत बढ़ाना जरूरी है.

अगर किसान ऐसी तकनीक सीख कर गांव में ही अपनी इकाई लगा कर मार्केटिंग के कुछ नुसखे सीख लें, तो वे अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं.

खेती की उपज से तैयार माल बना कर बेचना मुश्किल या नामुमकिन नहीं है. खानेपीने की तमाम चीजों से छोटेबड़े बाजार अटे पड़े हैं. छोटीबड़ी व देशीविदेशी बहुत सी कंपनियां तरहतरह की चीजें बना कर बेच रही हैं. किसान गेहूं से आटा, दलिया, सूजी, मैदा, खील, चने से दाल व बेसन, सरसों, मूंगफली व तिल से तेल व पिसे हुए मसाले वगैरह आसानी से तैयार कर सकते हैं.

फल व सब्जी से अचार, चटनी, मुरब्बा, जैम, जैली, सौस वगैरह बनाए जा सकते हैं. किसान अगर उपज की बेसिक प्रोसैसिंग कर उस की पैकेजिंग, डब्बा या बोतलबंदी करें, तैयार उत्पाद सौ फीसदी खालिस हो और वाजिब कीमत पर बेचे जाएं, तो उस में मुनाफे की गुंजाइश ज्यादा होती है.

खानेपीने की चीजें बनाने वाली कंपनियां किसानों से कच्चा माल खरीद कर चांदी कूट रही हैं. किसानों के पास कच्चा माल होने से उन से ज्यादा फायदा होना लाजिमी है.

बढ़ती भागदौड़ से खानपान के तौरतरीके तेजी से बदले हैं. खाने के लिए तैयार व जल्दी बनने वाली चीजों की मांग बढ़ रही है. अगर गांवों मे खेती के सहायक उद्योगधंधे लगें तो किसानों के बच्चों को रोजगार मिल सकता है. इस से किसानों की आमदनी में इजाफा हो सकता है. पुरानी कंपनियों को पछाड़ने के लिए माल की क्वालिटी उम्दा व सनदशुदा होना जरूरी है.

आजकल सर्टिफिकेशन का जमाना है इसलिए पैकेटबंद सामान पर पहचान के निशान लगे रहते हैं. मसलन, शाकाहारी का हरा व मासाहारी का लाल, असली के लिए हौलमार्क, क्वालिटी के लिए भारतीय मानक ब्यूरो का आईएसआई या बीएसआई, जहर के लिए लाल, नीले, हरे व पीले त्रिभुज, खाने की चीजों पर एफएसएसएआई, फलों से बने जूस, जैम वगैरह पर एफपीओ, अंतर्राष्ट्रीय मानक का आईएसओ नंबर व कृषि उपज से तैयार चीजों पर एगमार्क.

मिलावट व घटिया सामान के बढ़ते दौर में ग्राहकों का भरोसा जीता जा सके, एगमार्क पास का निशान हो तो ऐसा करना मुश्किल या नामुमकिन नहीं है, क्योंकि एगमार्क क्वालिटी की गारंटी का निशान माना जाता है.

जो किसान खेती के साथसाथ पैकेट या डब्बाबंदी का काम करना चाहते हैं, तो उन्हें एगमार्क का निशान लगाने की मंजूरी लेने की जानकारी जरूर होनी चाहिए. इस से बाजार में पकड़ बनाना आसान हो जाता है.

नए उद्यमियों को लगता है कि पता नहीं, बाजार में खरीदार उन का माल पसंद करेंगे भी या नहीं. दरअसल, बाजार में खरीदारों के सामने बहुत सी चीजें होती हैं इसलिए चुनाव करते समय वे सब से पहले माल की क्वालिटी देखते हैं. उस का भरोसा होते ही वे उसे खरीद लेते

हैं इसलिए समझदार उत्पादक अपने तैयार माल पर क्वालिटी की गारंटी वाले एगमार्क की मुहर लगवाने का हक हासिल कर लेते हैं ताकि बाजार में उन की साख मजबूत हो सके.

हुआ यों कि अंगरेजी राज के दौरान भारत से खानेपीने की जितनी चीजें इंगलैंड भेजी जाती थीं, वे सब अव्वल दर्जे की चुनी जाती थीं. साल 1935 से ले कर साल 1941 तक भारत में खेती के सलाहकार रहे मैकडोनाल्ड की सलाह पर उन चीजों को लैब में जांच कर उन की क्वालिटी परखी जाती थी, फिर उन पर एग्रीकल्चरल मार्किंग यानी खेती का निशान लगा होता था.

जांच से हासिल नतीजों के मुताबिक उन पर ए, बी व सी यानी अव्वल, दोयम व सोयम ग्रेडिंग का निशान लगाने के बाद ही उन्हें इंगलैंड भेजा जाता था, ताकि उन को इस्तेमाल करने वाले अंगरेज ग्राहक उन्हें खरीदने से पहले उन पर लगे एगमार्क के निशान पर दर्ज ग्रेड को देख कर आसानी से उन की क्वालिटी का लेबल पहचान सकें.

इस काम को अंजाम देने के लिए अंगरेजों ने साल 1937 में कृषि उपज से तैयार चीजों के लिए बाकायदा एगमार्क कानून बनाया था, जो हमारे देश में आज भी बरकरार है.

हां, बाद में साल 1986 में इस में बदलाव किए गए थे, ताकि यहां के लोगों को खानेपीने के लिए बढि़या क्वालिटी की चीजें मिल सकें और उत्पाद तयशुदा मानकों पर खरे उतर सकें.

कृषि उत्पादों की क्वालिटी चैक करने व उस के सनदीकरण के लिए कृषि एवं विपणन निदेशालय ने एगमार्क सर्टिफिकेशन स्कीम चला रखी है. इस के तहत कार्बनिक, कोडैक्स और भारतीय खाद्य सुरक्षा अभिकरण, एफएसएसएआई के मुताबिक मानक तय हैं. एगमार्क का निशान निर्यात, घरेलू कारोबार व जैविक उत्पादों के लिए दिया जाता है.

एगमार्क (Agmark)

यह एगमार्क दाल, चावल, तेल, शहद, घी, आटा, मैदा, सूजी, दलिया, बेसन, मेवा, फल, सब्जियां, चिप्स, टमैटो सौस, मसाले वगैरह 224 तरह के कृषि एवं खाद्य उत्पादों पर लगाया जाता है. एगमार्क के निशान से ग्राहकों को यकीन हो जाता है कि उस चीज की क्वालिटी बेहतर है.

भारत सरकार के निरीक्षण एवं विपणन निदेशालय ने एगमार्क का निशान देने से पहले उत्पादों की जांचपरख करने के लिए नागपुर में एक बड़ी केंद्रीय प्रयोगशाला व दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, चंडीगढ़, जयपुर, लखनऊ, भोपाल, कोच्चि व गुवाहाटी वगैरह में रीजनल प्रयोगशालाएं खोल रखी हैं.

यों करें किसान

खाद्य उत्पादों की पैकिंग पर एगमार्क का सरकारी निशान भारत सरकार के कृषि एवं विपणन निदेशालय, डीएमआई, फरीदाबाद से हासिल किए बगैर कोई भी उत्पादक मनमाने तरीके से अपने उत्पादों पर नहीं लगा सकता.

एगमार्क लेबल लगाने का हक हासिल करने के लिए मान्यताप्राप्त लैब से अपने उत्पाद की जांच रिपोर्ट हासिल करनी होती है.

ज्यादातर किसान नहीं जानते हैं कि खाद्य सुरक्षा एवं मानकीकरण कानून 2006 के तहत खाद्य तेलों, घी, मक्खन, शहद, कांगड़ा चाय व काली मिर्च के लिए एगमार्क लेना जरूरी है.

एगमार्क के प्रमाणीकरण के लिए अपनी उत्पादन इकाई से संबंधित दस्तावेज, उत्पाद का सैंपल, ट्रेडमार्क के कागजात सहित एगमार्क का फार्म भर कर तयशुदा फीस चुकाने के बाद माल की क्वालिटी के मुताबिक ए, बी या सी ग्रेड मिलता है.

एगमार्क का आवेदन औनलाइन भी किया जा सकता है. एगमार्क के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल करने के लिए इच्छुक किसान या उद्यमी नीचे दिए गए पतों पर संपर्क कर सकते हैं:

निदेशक, केंद्रीय एगमार्क प्रयोगशाला, उत्तर अंबाजरी रोड, रामदासपैठ, नागपुर, 462211, फोन 0712-2561741.

कृषि विपणन सलाहकार, विपणन एवं निरीक्षण निदेशालय, ए ब्लौक, सीजीओ कांप्लैक्स, फरीदाबाद, हरियाणा, 121001, फोन 0129-2415710.

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