महुआ का नाम सुनते ही लोगों के जेहन में सिर्फ एक ही बात आतीहै कि इस से शराब बनाई जाती है. इस के अलावा दूसरा इस्तेमाल नहीं है, लेकिन यह सच नहीं है. आज के समय में भले ही खेतखलिहानों से ले कर जंगलों से महुआ के पेड़ लगातार गायब होते जा रहे हैं. इस की मुख्य वजह है लोगों में जागरूकता की कमी का होना.
एक दौर ऐसा भी था जब महुआ को गरीबों का मेवा कहा जाता था क्योंकि इस में उम्मीद से ज्यादा गुण पाए जाते हैं. इस सब के बावजूद किसानों ने महुआ की खेती करना ही बंद कर दिया है.
महुआ उष्णकटिबंधीय पेड़ है जो उत्तर भारत के मैदानी इलाकों और जंगलों में बड़े पैमाने पर होता है. इस का वैज्ञानिक नाम मधुका लोंगफोलिआ है. हिंदी में महुआ, संस्कृत में मधूक, अंगरेजी में इलुपा ट्री के नाम से जाना जाता है.
यह तेजी से बढ़ने वाला पेड़ है जो तकरीबन 20 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ सकता है. इस के पत्ते आमतौर पर सालभर हरे रहते हैं. इसे औषधीय प्रयोग में लाया जाता है.
पुराने समय में शल्य क्रिया के दौरान रोगी को महुआ के रस का पान कराया जाता था. टूटीफूटी हड्डियों को जोड़ने के दौरान भी यह दर्द कम करने के काम आता था.
आज भी गंवई इलाकों में महुआ का जम कर इस्तेमाल होता है. महुआ का एक बार पौधा लगा देने से आप की 2 से 3 पीढ़ी तक इस से फायदा कमाती रहेंगी.
बहुपयोगी है यह
महुआ भारत के सभी भागों में होता है और पहाड़ों पर 3,000 फुट की ऊंचाई तक पाया जाता है. इस की पत्तियां 5-7 अंगुल चौड़ी, 10-12 अंगुल लंबी और दोनों ओर नुकीली होती हैं. पत्तियों का ऊपरी भाग हलके हरे रंग का और पीठ भूरे रंग की होती है.
हिमालय की तराई और पंजाब के अलावा उत्तर भारत और दक्षिण भारत में इस के जंगल पाए जाते हैं. यह स्वच्छंद रूप से उगता है पर पंजाब में यह सिवा बागों के, जहां लोग इसे लगाते हैं और कहीं नहीं पाया जाता.
इस का पेड़ ऊंचा और छतनार होता है और डालियां चारों ओर फैलती हैं. यह पेड़ 30-40 हाथ ऊंचा होता है और यह सभी तरह की जमीन पर होता है. इस के फूल, फल, बीज, लकड़ी वगैरह सभी चीजें काम में आती हैं.
जलवायु : महुआ की खेती के लिए 800 से 1800 मिलीमीटर बारिश अच्छी मानी जाती है. यह 1,200 मीटर ऊंचाई पर भी आसानी से उग जाता है.
जमीन : इस की खेती के लिए गहरी चिकनी मिट्टी, रेतीली दोमट मिट्टी ज्यादा सही मानी जाती है, लेकिन इस के पौधे हर तरह की मिट्टी पर उगते हैं, जैसे कि पथरीली, मटियार, चूनेदार वगैरह.
ऐसा हो मौसम
महुआ की खेती के लिए जुलाई से अगस्त सब से सही समय होता है. इस महीने अच्छे मानसून के साथ बारिश होती है. इस से मौसम अनुकूल रहता है और पौधे जल्दी बढ़ते हैं.