अजोला की कई प्रजातियां हैं जैसे अजोला कैरोलिनियाना, अजोला निलोटिका, अजोला फिलीकुलाइड्स, अजोला मैक्सिकाना, अजोला माइक्रोफिला और अजोला पिन्नाटा. भारत में सब से ज्यादा अजोला पिन्नाटा पाया जाता है.

अजोला की पत्तियां बहुत छोटी और आकार में मोटी होती हैं. इन पत्तियों के अंदर सहजीवी साइनोबैक्टीरिया (ब्लू ग्रीन अलगी) पाया जाता है, जिसे एनाबिना अजोली कहते हैं, जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थरीकरण करने में सहायक है.

अजोला एक जैव उर्वरक है. अजोला 2 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रतिदिन प्रति हेक्टेयर धान के खेत को उपलब्ध कराता है. अजोला में तकरीबन 94 फीसदी पानी, 1 फीसदी फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैगनीज, आयरन और 5 फीसदी नाइट्रोजन होता है.

उत्पादन विधि : अजोला का उत्पादन छोटीछोटी क्यारियों, धान के खेत, तालाबों, फैब्रीकेटिड टैंकों, कंक्रीट या सीमेंट के टैंकों, पौलीथिन लाइन पिट्स या गड्ढों वगैरह में कर सकते हैं.

हरे चारे के रूप में अजोला

* अजोला उत्पादन के लिए 5 मीटर लंबा, 1 मीटर चौड़ा और 8 से 10 इंच गहरा पक्का सीमेंट का टैंक बना लें. टैंक की लंबाई व चौड़ाई घटाईबढ़ाई जा सकती है. सीमेंट के टैंक की जगह पर जमीन को समतल कर के उस पर ईंटों को बिछा कर एक आयताकार टैंकनुमा गड्ढा बना लें. गड्ढे में 150 ग्राम मोटी यूबी उपचारित सिलपुलिन शीट को गड्ढे में बिछा कर चारों तरफ के किनारे की दीवारों को सीट से ढक कर ईंटों से दबा दें. यह टैंक या गड्ढा छायादार जगह पर होना चाहिए.

* टैंक में तकरीबन 40 किलोग्राम खेत की साफसुथरी छनी हुई भुरभुरी मिट्टी को समान रूप से बिखेर दें.

* तकरीबन 4-5 किलोग्राम 2 दिन पुराना गोबर और 50 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट को 20 लिटर साफ पानी में घोल बना कर अजोला बैड पर डाल दें.

* टैंक में 7 से 10 सैंटीमीटर पानी भर दें और अजोला के अच्छे उत्पादन के लिए टैंक में इतना पानी हमेशा बना रहना चाहिए.

* एक से डेढ़ किलोग्राम शुद्ध मदर अजोला कल्चर को पानी के ऊपर समान रूप से छिड़क दें. उस के बाद अजोला के ऊपर फौरन फव्वारे से पानी का छिड़काव करें.

* 10 से 12 दिन में अजोला पानी के ऊपर समान रूप से फैल कर मोटी चटाई सा दिखाई देने लगता है.

* टैंक में गोबर व खनिज से पोषक तत्त्व अजोला द्वारा सोख लिए जाते हैं. इसलिए सप्ताह में एक बार फिर से गोबर और खनिज का घोल टैंक या गड्ढे में जरूर मिला दें.

* मवेशी के इस्तेमाल के लिए निकाले गए अजोला को 2-3 बार साफ पानी से धो लें, जिस से गोबर की गंध अजोला से निकल जाए.

कार्बनिक खाद के रूप में अजोला

* धान की रोपाई से पहले खेत को अजोला उत्पादन के लिए प्रयोग कर सकते हैं.

* खेत को अच्छी तरह से इकसार कर लें और 20×20 मीटर की क्यारी बना कर ऊंची मेंड़ और सिंचाई के लिए नाली बना लें.

* इन क्यारियों में 10 सैंटीमीटर पानी भर दें और 10 किलोग्राम गोबर को 20 लिटर पानी में घोल बना कर प्रति क्यारी में डालें.

* 4-4 दिन के अंतराल पर 100-100 ग्राम सुपर फास्फेट को 3 बार में प्रत्येक क्यारी में डालें.

* 8 किलोग्राम शुद्ध मदर अजोला कल्चर को प्रति क्यारी के हिसाब से छिड़काव करें.

* 7-8 दिन बाद 100 ग्राम कार्बोफ्यूरान को प्रति क्यारी के हिसाब से कीडे़मकोड़ों को रोकने के लिए छिड़काव करें.

* इस तरह से 15 दिन बाद तकरीबन 100 किलोग्राम अजोला कल्चर प्रति क्यारी हासिल किया जा सकता है.

* जरूरत पड़ने पर फिर से उपरोक्त विधि द्वारा उत्पादन ले सकते हैं.

प्रयोग विधि

अजोला का प्रयोग खेतों में 2 तरह से किया जा सकता है, हरी खाद के रूप में और मवेशियों के चारे के रूप में.

* हरी खाद के रूप में धान को रोपने से पहले जहां खेत में पानी रहता है, वहां अजोला का इस्तेमाल सही खाद के रूप में किया जा सकता है.

* एक टन अजोला कल्चर प्रति हेक्टेयर की दर से जिस खेत में धान लगाया जाना है, उस खेत में 5-10 सैंटीमीटर पानी भर कर छिड़क दें. 25-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से सुपर फास्फेट का 2-3 बार में और 2-3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कार्बोफ्यूरान का इस्तेमाल कीटनाशक के रूप में करें.

* 2-3 हफ्ते बाद खेत में अजोला की मोटी परत बन जाने पर अजोला को जुताई कर मिट्टी में मिला दें और धान की रोपाई कर दें.

* 10-20 टन अजोला हरी खाद के रूप में 20-40 किलोग्राम नाइट्रोजन मुहैया कराता है. अजोला का प्रयोग इस प्रकार से भी धान के खेत में किया जा सकता है:

* धान की रोपाई के हफ्तेभर बाद खेत में पानी भर कर अजोला कल्चर को 0.5-1.0 टन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर दें.

* सुपर फास्फेट को भी 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से धान के खेत में 2-3 बार में इस्तेमाल करें.

* 15-20 दिन बाद खेत में अजोला की मोटी परत बन जाने पर अजोला को मिट्टी में मिला दें.

* मिट्टी में मिला अजोला 8-10 दिन में पूरी तरह से सड़गल जाता है और 35 दिनों में 67 फीसदी नाइट्रोजन मुहैया कराता है.

अजोला के लाभ

धान की खेती में उपयोग से लाभ

* धान  के खेत में अजोला का इस्तेमाल करने से तकरीबन 40 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर स्थिरीकरण करता है, जिस से 40 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन की बचत होती है और धान की औसत उपज में 15-20 फीसदी का इजाफा होता है.

* अजोला धान के पौधों को नाइट्रोजन और दूसरे पोषक तत्त्व मुहैया करता है. यह जमीन में आर्गेनिक कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस और दूसरे कई पोषक तत्त्वों की मात्रा में बढ़वार करता है.

* यह धान के खेत में मौजूद कई सूक्ष्म पोषक तत्त्वों जैसे आयरन, मैगनीज और जिंक को घुलनशील अवस्था में ला कर बढ़ोतरी करता है. अजोला में कार्बोहाइड्रेट और वसा न होने के चलते इस का दवाओं में इस्तेमाल किया जा सकता है.

* अजोला की मोटी परत खरपतवार को उगने से रोक देती है. अजोला से कंपोस्ट खाद बनाई जा सकती है. इसे सागसब्जी की फसलों में इस्तेमाल कर सकते हैं.

* मिट्टी के भौतिक व रासायनिक गुणों में अजोला सुधार करता है.

* अजोला बैड की 6 माह बाद2 किलोग्राम मिट्टी तकरीबन 1 किलोग्राम रासायनिक एनपीके फर्टिलाइजर के बराबर काम करती है.

मवेशियों के चारे के रूप में

* अजोला को दूध देने वाले पालतू मवेशियों को चारे के रूप में खिलाने से दूध की मात्रा और क्वालिटी में एकाएक बढ़ोतरी होती है.

* ताजा शुद्ध अजोला को व्यावसायिक चारे में बराबर मात्रा में मिला कर दूध देने वाले मवेशियों को प्रतिदिन खिलाने से 15 से 20 फीसदी दूध बढ़ जाता है और 20 से 25 फीसदी व्यावसायिक चारे में बचत होती है.

* अजोला को मुरगी, बतख, सूअर और मछलीपालन में चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है.

* अजोला खिलाने से पोल्ट्री बर्ड्स का बहुत तेजी से विकास होता है और 10 से 12 फीसदी वजन दूसरे साधारण चारा खाने वाली चिडि़यों की तुलना में ज्यादा बढ़ जाता है.

* अजोला खाने वाली चिडि़यों के अंडों के आकार और क्वालिटी में बढ़वार होती है.

रखें सावधानी

अजोला में मुख्यत: पाइरालिस, निमपूला और किरोना मास प्रजाति की बीमारियां लगती हैं. इन को रोकने के लिए कार्बोफ्यूरान (50 ग्राम प्रति 100 किलोग्राम शुद्ध अजोला), नीम केक, नीम औयल 200 पीपीएम का इस्तेमाल करें.

राइजोक्टानिया सोलानी, फ्यूजेरियम, स्केलेरोटियम, राइजोपस द्वारा कवक बीमारियों से अजोला उत्पादन में समस्या हो जाती है. इस की रोकथाम के लिए फफूंदीनाशक के रूप में बाविस्टीन को 1 ग्राम प्रति लिटर इस्तेमाल कर सकते हैं.

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