तुलसी एक औषधीय पौधा है, जिस का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाओं, तेल वगैरह में होता है. घरेलू तौर पर भी तुलसी का काफी इस्तेमाल किया जाता है.

जलवायु : तुलसी को हर तरह की जलवायु में पैदा किया जा सकता है. उत्तर भारत के मैदानी भागों में तुलसी को गरमी के दिनों में उगाया जा सकता है.

तुलसी की खेती के लिए दोमट और बलुई मिट्टी जिस में पानी सोखने की कूवत अच्छी हो, सही मानी जाती है. अधिक रेतीली और भारी दोमट मिट्टी इस के लिए ठीक नहीं है.

खेत की तैयारी : खेत को मिट्टी पलटने वाले हल से या कल्टीवेटर से जोत कर तैयार करें. गोबर की सड़ीगली खाद अंतिम जुताई के समय खेत में मिला दें और मईजून के महीने में तुलसी की पौध को खेत में रोप दें.

नर्सरी की तैयारी : मैदानी इलाकों में अप्रैलमई के महीने में नर्सरी तैयार करने के लिए तकरीबन 1 मीटर चौड़ी और 4 मीटर लंबी क्यारियां बनाएं जो थोड़ी ऊंचाई पर हों. हर क्यारी में गोबर की सड़ी हुई खाद मिलाएं. इस के बाद तुलसी का बीज लें. उस में थोड़ा रेत भी मिला लें क्योंकि तुलसी का बीज काफी हलका होता है जो क्यारी में बिखेरने पर उड़ सकता है.

1 एकड़ में रोपाई के लिए 200 से 250 ग्राम बीज काफी रहता है. बीज बोने के बाद नर्सरी को पुआल से ढक दें और उस की सिंचाई करें. तुलसी का बीज तकरीबन 5 से 10 दिनों में जम जाता है. बीज अंकुरित होने के बाद क्यारी से पुआल को हटा दें.

ज्यादा गरमी के दिनों में क्यारी में हलका पानी दोनों समय लगाएं और जब पौधा 10-15 सैंटीमीटर ऊंचा हो जाए तो उसे ध्यान से उखाड़ कर खेत में रोप दें.

रोपाई : नर्सरी से पौध को निकालने के बाद गीले बोरे से ढक कर रखें, जिस से नमी बनी रहे और पौधे मुरझा न पाएं. जब पौध की रोपाई करनी हो तो कोशिश करें कि उसी समय नर्सरी से पौध को उखाड़ें.

पौधों की रोपाई शाम के समय करनी चाहिए. पौधों की लाइन से लाइन की दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सैंटीमीटर रखें. पौधे की रोपाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई करें जिस से पौधे की जड़ों को जमने में आसानी हो.

उर्वरक : अधिक पैदावार के लिए 25 किलोग्राम नाइट्रोजन, 16 किलोग्राम फास्फोरस, 16 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ के हिसाब से काफी है. अंतिम जुताई के समय 8 किलोग्राम नाइट्रोजन और बाकी दूसरे उर्वरकों की पूरी मात्रा मिट्टी में मिला दें. रोपाई के तकरीबन 20-25 दिन बाद 8 किलोग्राम नाइट्रोजन डालें. उस के बाद बाकी बचे हुए नाइट्रोजन को पहली कटाई के तुरंत बाद डालें.

सिंचाई और निराईगुड़ाई : 10-12 दिन के फासले पर खेत की सिंचाई करते रहें और ज्यादा बारिश हो तो खेत में पानी न रुकने दें. निराईगुड़ाई का भी ध्यान रखें.

पहली निराईगुड़ाई फसल बोने के 20-25 दिन बाद और दूसरी 40-45 दिन बाद करें.

तुलसी के खास कीट

तुलसी में भी कीटों व रोगों का प्रकोप हो सकता है. जैसे तुलसी का पर्ण बेलक, रोमयुक्त सूंड़ी. इस के अलावा झुलसा, पत्तियों का झुलसा, उकटा जैसे रोग भी फसल को खराब कर सकते हैं. इन की रोकथाम भी जरूरी है. इस के लिए खराब फसल का नमूना दिखा कर अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र या किसी कृषि विशेषज्ञ से सलाह ले कर समय पर उस का निदान करें.

तुलसी या किसी आयुर्वेदिक पौधों की खेती करने से पहले बेहतर होगा कि आप उस के बारे में अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से जानकारी लें. इस के बाद ही खेती करें, जिस से वह आप के इलाके के हिसाब से आप को सही जानकारी मिल सके. साथ ही, इस उत्पाद को बेचने की जानकारी ले लें. इस से फसल पैदावार मिलने के बाद उसे आसानी से बेच कर अच्छा मुनाफा कमाया जा सके. हालांकि आजकल अनेक आयुर्वेदिक कंपनियां हैं जो किसानों से सीधा माल खरीदती हैं और बाजार में उतारती हैं.

तुलसी की कटाई : तुलसी की फसल तकरीबन 3 महीने में तैयार हो जाती है. तुलसी की साल में 3 कटाई ली जा सकती हैं. पौधों की पत्तियां जब पीली पड़ने लगें तभी फसल की कटाई करें और अंतिम कटाई के समय पूरे पौधे को काट सकते हैं. उस का तेल भी निकलवा सकते हैं. हरे पौधों में तेल की मात्रा तकरीबन 0.4 से 0.5 फीसदी होती है और पहले साल तकरीबन 50 से 60 लिटर तेल प्रति एकड़ हासिल किया जा सकता है. बाद में तेल की मात्रा बढ़ कर 80 से 100 लिटर प्रति एकड़ तक बढ़ सकती है.

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