फरवरीमार्च माह में बिहार के मगध प्रमंडल इलाके में काफी तादाद में मधुमक्खीपालक डेरा डाले दिखाई पड़ते हैं. इस की मुख्य वजह यह है कि इस इलाके में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है.

मुजफ्फरपुर के मीणा गांव के रहने वाले मधुमक्खीपालक आलोक कुमार का कहना है कि सरसों के फूल से भी सही मात्रा में शहद मिलता है. इटालियन मधुमक्खी का मिजाज इनसानों जैसा होता है. अपने बौक्स से निकलने के बाद वह वापस अपने ही बौक्स में आ जाती है. उसे इतनी समझ होती है.

मधुमक्खीपालक चंदन कुमार और सोनू कुमार ने बताया कि जब मगध इलाके में सरसों की फसल खत्म होती है तो हम लोग मुजफ्फरपुर इलाके में चले जाते हैं. वहां लीची की खेती बड़े पैमाने पर होती है.

हम लोग मधुमक्खियों के लिए भोजन की तलाश में झारखंड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ सहित देश की तमाम जगहों पर घूमते रहते हैं. कभीकभी ऐसा भी मौसम आता है, जब इन मधुमक्खी को कहीं से भोजन मिलना मुश्किल हो जाता है तो चीनी खिला कर जिंदा रखना पड़ता है. उस समय खर्चा काफी बढ़ जाता है.

बौक्स को एक जगह से दूसरी जगह ट्रक से ले जाने में भाड़ा काफी लगता है, जिस से मधुमक्खीपालकों को काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.

सर्द भरी रात हो या गरमी की तपती दोपहरी, अपने बीवीबच्चों से दूर रह कर उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. काफी मेहनत करने के बावजूद भी शहद की वाजिब कीमत नहीं मिल पाती है.

बिचौलिया मधुमक्खीपालकों से बहुत कम दाम पर शहद खरीद लेता है और वे बड़ेबड़े नामीगिरामी कंपनियों को अच्छाखासा मुनाफा ले कर बेच देता है.

इस से बचने का एकमात्र यही उपाय है कि मधुमक्खीपालक अगर अपने माध्यम से बड़ी कंपनियों से सीधे ही संपर्क बनाए तो उन के बीच जो बिचौलिए मुनाफा कमाते हैं उस का फायदा इन्हें मिल जाएगा.

अगर सरकार अपने माध्यम से इन मधुमक्खीपालकों से शहद खरीद कर बेचने की व्यवस्था करे तो फायदा मिल सकता है. जिस तरह से कोऔपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से दूध की खरीदबिक्री की जाती है, ठीक उसी तरह मधुमक्खीपालक भी कोऔपरेटिव सोसाइटी बना कर इस व्यवस्था को और भी मजबूती दे सकते हैं.

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