Beekeeping: भारत में कृषि के क्षेत्र में अनेक समस्याएं हैं. कई दफा किसानों को अपनी फसल पैदावार से खेती में लगाई गई लागत भी वापस नहीं मिलती है. ऐसे में कृषि से जुडे़ अनेक सहयोगी काम हैं, जिन्हें किया जा सकता है.

ऐसे ही कामों में से एक काम मधुमक्खीपालन (Beekeeping) है, जिसे अपनाया जा सकता है. जानकारों का मानना है कि मधुमक्खीपालन (Beekeeping) कम खर्च और कम समय में अच्छीखासी आमदनी देने वाला काम है.

इस विषय को ले कर केंद्रीय शुष्क बागबानी संस्थान, बीकानेर, राजस्थान के अध्यक्ष और प्रधान वैज्ञानिक डा. धुरेंद्र सिंह से हमारी बात हुई.

डा. धुरेंद्र सिंह ने बताया कि कृषि से जुडे़ युवा और वे लोग, जो कम लागत में अच्छा रोजगार करना चाहते हैं, उन के लिए मधुमक्खीपालन काफी फायदेमंद कारोबार साबित हो सकता है.

उन्होंने बातचीत में आगे कहा कि लोेगों की बढ़ती इच्छाओं के चलते आज औद्योगीकरण बढ़  रहा है. यातायात वाहन बढ़ रहे हैं, जिस के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है. कहीं अधिक बरसात है, तो कहीं सूखे जैसे हालात बन रहे हैं. मौसम का मिजाज बदल रहा है और मानसून चक्र बिगड़ रहा है. इस का असर खेतखलिहानों तक में हो रहा है.

परंपरागत रूप से पैदा होने वाली बागबानी की फसलों का नामोनिशान मिट गया है. कम पानी और बिना रासायनिक खादों से पैदा होने वाली कई फसलें काश्त से बाहर हो चुकी हैं. उन की जगह गन्ना व आलू जैसी फसलें पैदा की जा रही हैं.

इस का नतीजा सब के सामने है. किसान बेहाल हैं. खेती में लगाई लागत भी वापस नहीं मिल पा रही है और किसान औनेपौने दामों में फसलों की पैदावार को बेच रहे हैं या उसे ऐसे ही सड़कों पर फेंक रहे हैं.

ऐसी स्थिति में जरूरी हो जाता है कि आज के दौर में एक ऐसा सहयोगी रोजगार भी करें, जिसे कर के खेती के साथसाथ अतिरिक्त आमदनी भी हो सके.

बागबानी आधारित मधुमक्खीपालन इस इरादे में भरपूर मदद कर सकता है.

पिछले कुछ सालों से अनेक लोगों का रुझान इस की तरफ बढ़ा है. मधुमक्खीपालन एक छोटा व्यवसाय है, जिस से शहद और मोम प्राप्त होते हैं. यह एक ऐसा व्यवसाय है, जो गंवई इलाकों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है.

डा. धुरेंद्र सिंह ने बताया कि इस व्यवसाय को यदि बागबानी फसलों के साथ किया जाए, तो 20 से 80 फीसदी तक फसल पैदावार में बढ़ोतरी संभव है. नीबू, किन्नू, आंवला, पपीता, अमरूद, आम, संतरा, मौसमी व अंगूर जैसे बागों में और विभिन्न सब्जियों के साथ भी मधुमक्खीपालन आसानी से किया जा सकता है.

इन तमाम फसलों के साथ मधुमक्खीपालन करने से इन फसलों की पैदावार तो बढे़गी ही, साथ ही साथ शहद का उत्पादन भी अच्छा होगा.

मधुमक्खीपालन के लिए सरकार बढ़ावा दे रही है. इस रोजगार को करने के लिए सरकार अनुदान भी देती है. इस रोजगार को शुरू करने से पहले मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग लेनी होती है. फिर अपना काम आप खुद शुरू कर सकते हैं.

मधुमक्खीपालन करने वाले लोगों की खादी ग्राम उद्योग भी मदद करता है. गांवों के लोग मधुमक्खी का धंधा अपना कर आगे बढ़ रहे हैं.

50 बौक्स से मधुमक्खीपालन की शुरुआत करने के लिए 1 से 2 लोगों की जरूरत पड़ती है. मधुमक्खीपालन के लिए दिसंबर से मार्च यानी 4 महीने का समय सब से अच्छा होता है.

बाकी महीनों में समयसमय पर मौसम के हिसाब से हम कई इलाकों में जा कर अपने मौन बौक्सों को लगाते हैं, इसलिए यह काम हमेशा रोजगार देने वाला है.

हां, जब कभी फूलों का मौसम न हो, तो मधुमक्खियों को पालने के लिए चीनी का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिस पर बहुत मामूली खर्च होता है.

वैज्ञानिक तरीके से करें मधुमक्खीपालन

वैज्ञानिक ढंग से मधुमक्खीपालन करने के लिए मधुमक्खियों को आधुनिक ढंग से लकड़ी के बने हुए बौक्सों, जिन्हें आधुनिक मधुमक्षिकागृह या मौन बौक्स कहा जाता है, में पाला जाता है.

इस तरह से मधुमक्खियों को पालने से अंडे और बच्चे वाले छत्तों को नुकसान नहीं पहुंचता. शहद अलगअलग छत्तों में भरा जाता है और उसे बिना छत्तों को काटे मशीन द्वारा आसानी से निकाल लिया जाता है. शहद निकालने के बाद इन खाली छत्तों को वापस बक्सों में रख दिया जाता है, ताकि मधुमक्खियां इन पर बैठ कर फिर से मधु इकट्ठा करना शुरू कर दें.

जरूरी सामान

मधुमक्खियों के लिए लकड़ी का बौक्स, बौक्सफ्रेम, मुंह पर ढकने के लिए जालीदार कवर, दस्ताने, चाकू, शहद रिमूविंग मशीन व शहद इकट्ठा करने के लिए ड्रम वगैरह की जरूरत होती हैं. ये चीजें आसानी से मिल जाती हैं. वैसे तो आप जहां मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग ले रहे हैं, वहां से भी सामान खरीद सकते हैं.

सावधानियां

जहां मधुमक्खियां पाली जाएं, उस के आसपास की जमीन साफसुथरी होनी चाहिए. बड़े चींटे, मोमभझी कीड़े, छिपकली, चूहे, गिरगिट और भालू मधुमक्खियों के दुश्मन हैं, इन से बचाव के पूरे इंतजाम होने चाहिए.

कहां मिलेगा ज्यादा मुनाफा

फूलों की खेती के साथ मधुमक्खीपालन ज्यादा फायदेमंद साबित होता है. सूरजमुखी, गाजर, मिर्च, सोयाबीन, पापीलेनटिल्स ग्रैम, फलदार पेड़ (जैसे नीबू, किन्नू, आंवला, पपीता, अमरूद, आम, संतरा, मौसमी, अंगूर), यूकेलिप्टस और गुलमोहर जैसे पेड़ों वाले क्षेत्रों में मधुमक्खीपालन आसानी से किया जा सकता है.

शहद के अलावा भी मिलती हैं चीजें

मधुमक्खियों से शहद के अलावा मोम भी हासिल किया जाता है, उस से भी मुनाफा होता है. इस के अलावा मधुमक्खीपालन से पोलन सुपरफूड भी हासिल किया जा सकता है, जिस का आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है.

क्या है पोलन सुपरफूड

मधुमक्खियां जब फूलों का रस चूसने जाती हैं, तब उन के पैरों में परागकण चिपक जाते हैं. ये परागकण एक फूल से दूसरे फूल में जाते रहते हैं.

इस प्रक्रिया के साथसाथ पैरों से चिपकी रज के साथ मधुमक्खी अपने निवास स्थान पर पहुंचती है, तब वह एक विशेष प्रकार की प्लेट से हो कर गुजरती है. इस से रज एक पात्र में जमा हो जाते हैं, इसे ही पोलन सुपरफूड कहते हैं.

मधुमक्खीपालन के लिए सरकार ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से लोन सुविधा मुहैया कराई है. इस की ज्यादा जानकारी के लिए आप अपने क्षेत्र के उद्यान विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं. मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग के लिए खास पढ़ाईलिखाई की जरूरत नहीं होती. कम पढ़ालिखा व्यक्ति भी, जो इस व्यवसाय में दिलचस्पी रखता हो, प्रशिक्षण हासिल कर के अपना काम शुरू कर सकता है. कुछ मधुमक्खीपालन करने वाले फ्री में भी ट्रेनिंग देते हैं, क्योंकि इस से उन्हें भी फायदा होता है.

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मधुमक्खी के डंक से अब बन रही है दवा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राणी विज्ञान विभाग में पैरासिटालाजी प्रयोगशाला विभाग के प्रमुख वैज्ञानिक प्रो. संदीप कुमार मल्होत्रा का कहना है कि मधुमक्खी के डंक में मिलने वाले विष यानी जहर से अब दवा भी बनाई जा रही है, जिस की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 10000 रुपए प्रति ग्राम है.

उन्होंने बताया कि विष निकालने के लिए अब तक मधुमक्खियों को मारना पड़ता था. मरे हुए कीटों का डंक निकाला जाता था. लेकिन विभाग में तैयार यह विशेष वेनम एक्सट्रैक्टर मधुमक्खियों को बिना मारे ही विष निकाल कर जमा कर लेगा. इस नए यंत्र की सहायता से मधुमक्खियों को बिना नुकसान पहुंचाए विष निकाला जाता है. एक्सट्रैक्टर को सामान्य रूप से पाली जाने वाली मधुमक्खियों के बक्से के सामने लकड़ी के बक्सों के विशेष फ्रेम में रखा जाता है.

इस फ्रेम के किनारे कटी नाली में फिट बैठने वाले एक छोटे फ्रेम पर लगी कौपर की तार का सर्किट लगाया जाता है, जिस से विद्युत करंट एक छोर से दूसरे छोर की ओर प्रवाहित होता है. इस तार वाले फ्रेम के भीतरी किनारे पर कटी एक और नाली में फिट बैठता समुचित मोटाई का एक शीशा लगा होता है. मधुमक्खी जैसे ही विद्युत करंट वाले तारों के जाल में उलझती है, तो हलका करंट लगते ही वह शीशे पर डंक मार देती है. इसी डंक लगे स्थान पर लार को सूख जाने पर तेजधार ब्लेड से खुरच कर निकाला जाता है.

वे आगे बताते हैं कि मधुमक्खी का विष दर्जनों औषधियों में इस्तेमाल होता है, इस के अलावा इस से कई तरह की क्रीम और इंजेक्शन बनाए जाते हैं. इन का इस्तेमाल तंत्रिका से संबंधित बीमारियों, विभिन्न बीमारियों के दर्द, एलर्जी, दिल के रोग, कैंसर, त्वचा रोग, पीठ के दर्द, थकान वगैरह मिटाने में किया जाता है.

यह विष इनसान के प्रतिरक्षा तंत्र को भी बढ़ाता है, जिस से शरीर में बीमारियों से लड़ने की कूवत बढ़ती है. यह विष कई प्रकार के एंजाइम बनाने में मददगार है, जो मानव शरीर में बहुत जरूरी होते हैं.

भारत सरकार ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की इस परियोजना को पेटेंट कर दिया है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राणी विभाग की परजीवी प्रयोगशाला में बने इस ‘हनी बी वेनम एक्सट्रैक्टर’ को विभाग के इतिहास में प्रथम पेटेंट माना जा रहा है.

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